राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रधान सचिवों को भेजे पत्र में कहा है कि पिछले कुछ वर्षों में आयोग ने पाया है कि त्योहार मनाने के कारण बच्चों को स्कूल के शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों द्वारा उत्पीड़न और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने स्कूलों से कहा है कि रक्षाबंधन के दौरान स्कूलों में राखी बंधवाकर व तिलक या मेहंदी लगाकर आने वाले छात्र-छात्राओं को दंडित न किया जाए.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, एनसीपीसीआर ने सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के स्कूल शिक्षा विभाग के प्रधान सचिवों को जारी एक पत्र में कहा कि पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न खबरों के माध्यम से आयोग ने पाया है कि त्योहारों को मनाने के कारण बच्चों को स्कूल के शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों द्वारा उत्पीड़न और भेदभाव का शिकार होना पड़ता है.
एनसीपीसीआर ने कहा, ‘यह देखा गया है कि स्कूल रक्षाबंधन के त्योहार के दौरान बच्चों को राखी बांधकर या तिलक या मेहंदी लगाकर आने की अनुमति नहीं देते हैं और उन्हें शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से परेशान करते हैं. यह ध्यान दिया जा सकता है कि शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम, 2009 की 17 धारा के तहत स्कूलों में शारीरिक दंड निषिद्ध है.’
शीर्ष बाल अधिकार निकाय ने कहा कि इसलिए संबंधित अधिकारियों को आवश्यक निर्देश जारी करने और यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया जाता है कि स्कूल ऐसी किसी भी प्रथा का पालन न करें जिससे बच्चों को शारीरिक दंड या भेदभाव का सामना करना पड़े.
एनसीपीसीआर भारत में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा की देखरेख करने वाली शीर्ष बाल अधिकार संस्था है.
पत्र में कहा गया है कि रक्षाबंधन और अन्य त्योहारों के दौरान राखी, तिलक और अन्य धार्मिक प्रतीक पहनने पर स्कूलों द्वारा छात्रों को कठोर दंड देने के बारे में पहले भी कई खबरें सामने आई हैं.
ऐसे मामलों में कुछ अधिकारियों ने अपने बचाव में छात्रों को स्कूल परिसर में धार्मिक प्रतीकों को प्रदर्शित करने से रोकने के लिए आचार संहिता और एक समावेशी वातावरण बनाए रखने के प्रयास को कारण बताया है.