मणिपुर में स्थितियां अभूतपूर्व, कभी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा: असम राइफल्स के डीजी

असम राइफल्स के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने कहा है कि हमने इतिहास में कभी भी इस तरह की किसी स्थिति का सामना नहीं किया है. नागरिकों के पास ‘बड़ी संख्या में हथियार’ चिंता का एक प्रमुख विषय है. जब तक ये हथियार किसी भी तरह से वापस नहीं आ जाते, ये चुनौती सबसे बड़ी रहेगी. 

असम राइफल्स के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर. (फोटो: यूट्यूब स्क्रीनग्रैब/डीडी त्रिपुरा)

असम राइफल्स के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने कहा है कि हमने इतिहास में कभी भी इस तरह की किसी स्थिति का सामना नहीं किया है. नागरिकों के पास ‘बड़ी संख्या में हथियार’ चिंता का एक प्रमुख विषय है. जब तक ये हथियार किसी भी तरह से वापस नहीं आ जाते, ये चुनौती सबसे बड़ी रहेगी.

असम राइफल्स के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर. (फोटो: यूट्यूब स्क्रीनग्रैब/डीडी त्रिपुरा)

नई दिल्ली: असम राइफल्स के महानिदेशक (डीजी) लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर ने बीते शुक्रवार (1 सितंबर) को हिंसाग्रस्त मणिपुर को लेकर कहा है कि वहां स्थितियां अभूतपूर्व हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल नायर ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में कहा, ‘मणिपुर में हम जिस स्थिति का सामना कर रहे हैं, वह अभूतपूर्व है. हमने इतिहास में कभी भी इस तरह की किसी स्थिति का सामना नहीं किया है. यह हमारे लिए नया है, यह मणिपुर के लिए भी नया है. ऐसा ही कुछ 90 के दशक की शुरुआत में हुआ था जब नगा और कुकी लड़े थे और फिर 90 के दशक के अंत में कुकी समूहों के भीतर भी लड़ाई हुई थी.’

यह बयान महत्वपूर्ण और चिंताजनक है, क्योंकि यह असम राइफल्स की ओर से आया है. यह किसी उग्रवाद की बात नहीं है, बल्कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेइतेई और आदिवासी कुकी समुदाय के बीच जारी जातीय संघर्ष की बात है.

मणिपुर में पिछले चार महीने से जारी जातीय हिंसा के कारण अब तक कम से कम 160 लोगों की मौत हो चुकी है और 2,000 गांवों को जलाए जाने और 360 से अधिक चर्चों को या तो जला दिए जाने या नष्ट कर दिए जाने की खबरें हैं.

लेफ्टिनेंट जनरल नायर ने राज्य में सशस्त्र बलों के सामने आने वाली कई चुनौतियों के बारे में बात की, जो बीते 3 मई से बहुत गंभीर हिंसा से ग्रस्त है. उन्होंने कहा कि नागरिकों के पास ‘बड़ी संख्या में हथियार’ चिंता का एक प्रमुख विषय है.

उन्होंने कहा, ‘समाज हथियारबंद हो गया है. जब तक ये हथियार किसी भी तरह से वापस नहीं आ जाते, ये चुनौती सबसे बड़ी रहेगी. आज, एक-दूसरे के खिलाफ बहुत कुछ है, यह इतना भ्रष्ट है. इसे रोकने की जरूरत है.’

द वायर ने इस पहले रिपोर्ट किया था कि कैसे विभिन्न अनुमानों के अनुसार पुलिस शस्त्रागारों से ‘लूटे गए’ हथियारों की संख्या 3,000 से अधिक थी.

इसके अलावा जून महीने की एक रिपोर्ट के अनुसार, बीते 3 मई को मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा शुरू होने के बाद से कम से कम 4,000 हथियार चोरी/लूट हुई थी. इनमें इंसास और एके-47 जैसी असॉल्ट राइफलें भी शामिल हैं. तब तक इनमें से आधे से भी कम यानी लगभग 1,800 हथियार ही बरामद किए गए थे.

द वायर द्वारा देखी गई एफआईआर एके और इंसास राइफल और बम जैसे अत्याधुनिक हथियारों की लूट का संकेत देती है. लुटेरों ने बुलेटप्रूफ जैकेट भी छीन लीं और पुलिस स्टेशनों में आग लगा दी थी.

सत्तारूढ़ भाजपा मणिपुर में ‘डबल-इंजन’ सरकार होने से वहां तमाम तरह का लाभ मिलने का दावा करती है. हालांकि बीते मई महीने में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के राज्य के दौरे और प्रवास के बावजूद हिंसा पर काबू नहीं पाया जा सका. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने राज्य के मुख्य सचिव को तलब करते हुए टिप्पणी की थी कि ‘मणिपुर में कानून-व्यवस्था ध्वस्त हो गई है’.

सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य पुलिस जांच को ‘धीमी’ और ‘सुस्त’ बताया था. साथ ही अदालत ने हिंसा को नियंत्रित करने या शस्त्रागारों की ‘लूटपाट’ को लेकर राज्य पुलिस की भूमिका पर भी टिप्पणी की थी. साथ ही हिंसा के मामलों को राज्य से बाहर असम की अदालतों में स्थानांतरित कर दिया गया था.

इस बीच बीते 29 अगस्त से मणिपुर के चुराचांदपुर और बिष्णुपुर जिलों की सीमा पर भड़की ताजा हिंसा में कम से कम आठ की मौत हो गई और 29 लोग घायल हो गए.

यही नहीं, केंद्रीय बलों और मणिपुर पुलिस के बीच बहुत कम समन्वय है. असम राइफल्स को राज्य पुलिस के साथ एक और अभूतपूर्व संघर्ष का सामना करना पड़ा है. मणिपुर पुलिस ने पिछले महीने ‘कुकी उग्रवादियों को भागने की इजाजत देने’ के लिए असम राइफल्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी. असम राइफल्स और बिष्णुपुर पुलिस के बीच तीखी नोकझोंक का एक वीडियो पहले वायरल हुआ था.

असम राइफल्स प्रशासनिक रूप से केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन है, लेकिन संचालनात्मक रूप से सेना के अधीन काम करता है. इसकी कमान सेना के अधिकारियों के हाथ में है, जो अधिकारी कैडर का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा है.

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