हरियाणा: नूंह में लगाई गई आग का ज़िम्मेदार कौन है?

नूंह के मेव मुसलमान सदियों से क्षेत्र के हिंदुओं के साथ घनिष्ठ संबंध और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन साझा करते आए हैं, लेकिन 2017 के बाद से शुरू हुईं लिंचिंग की घटनाओं और नफ़रत के चलते होने वाली हिंसा ने इस रिश्ते में दरार डाल दी है.

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31 जुलाई 2023 को नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा दौरान वाहनों में आग लगा दी गई थी. (फोटो: अतुल होवाले/द वायर)

नूंह के मेव मुसलमान सदियों से क्षेत्र के हिंदुओं के साथ घनिष्ठ संबंध और सामाजिक-सांस्कृतिक जीवन साझा करते आए हैं, लेकिन 2017 के बाद से शुरू हुईं लिंचिंग की घटनाओं और नफ़रत के चलते होने वाली हिंसा ने इस रिश्ते में दरार डाल दी है.

31 जुलाई 2023 को नूंह में हुई सांप्रदायिक हिंसा दौरान वाहनों में आग लगा दी गई थी. (फोटो: अतुल होवाले/द वायर)

तीन दशकों में पहली बड़ी सांप्रदायिक झड़प से नूंह बुरी तरह बदनाम होने के एक हफ्ते बाद हमने पाया कि गौरवशाली मेव लोगों की मातृभूमि बंजर में तब्दील हो गई है.

जब हम (कारवां-ए-मोहब्बत की एक टीम)- हिंसा के शिकार हुए इस इलाके से गुज़र रहे थे तो हमें जले हुए वाहनों के अवशेष, कई किलोमीटर तक फैली ध्वस्त झुग्गियों, सड़क किनारे लगे खोखे/ठेलों, मेडिकल स्टोर और इमारतों के खंडहर नज़र आए, मानो किसी भयानक तूफ़ान यहां से गुज़रा हो. इससे ज्यादा दुखदायी था, वहां के निवासियों का उनकी सरकार से उठा हुआ भरोसा, उनकी टूटी उम्मीदें कि अब एक बेहतर भविष्य का निर्माण किया जा सकता है.

79% मुस्लिम आबादी वाला नूंह, उस चमचमाते गुड़गांव के मुहाने पर स्थित है, जो कॉरपोरेट, फाइनेंस और आईटी का ‘हब’ माना जाता है और जहां देश की सबसे बड़ी कंपनियां काम करती हैं. पूर्व में मेवात के नाम से जाने जाने वाले नूंह को 2017 में नीति आयोग ने देश के सबसे कम विकास सूचकांक वाले जिले के तौर पर दर्ज किया था. इसके विपरीत, गुड़गांव को उसी वर्ष यूएनडीपी द्वारा .889 के उच्च मानव विकास सूचकांक के साथ दर्जा दिया गया था. गुड़गांव के रहवासी औसत प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में तीसरे स्थान पर आते हैं.

नूंह के मेव मुसलमानों ने सदियों से सद्भावना के मजबूत धागे जोड़े रखे हैं और अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन साझा किया है. इस्लाम अपनाने से पहले मेव चार से पांच शताब्दी पहले हिंदू राजपूत कुलों का हिस्सा थे. वे कई हिंदू रवायतों को अब भी बरकरार रखा है. वे विभिन्न रूपों से अपने वंश को पांडव अर्जुन, कृष्ण और राम से जोड़ते हैं. उनके सामाजिक जीवन और आजीविका पैटर्न में जाट और गुज्जर जैसी अन्य समुदायों के साथ काफी समानता है. 1947 में विभाजन के बाद हुए दंगों में जब भरतपुर और अलवर में हजारों मेवों का कत्लेआम , क्षेत्र के सांप्रदायिक संघर्ष का एक दुर्लभ उदाहरण था.

‘गोरक्षकों’ का उदय

हालांकि, 2017 से लिंचिंग और नफ़रत के चलते हुई हत्याओं की शृंखला ने इन करीबी रिश्तों को तोड़ना शुरू कर दिया. पहली लिंचिंग 2017 में मेव डेयरी किसान पहलू खान की हुई थी. एक भीड़ ने गोहत्या के लिए मवेशी ले जाने का दावा करते हुए उन पर हमला किया था. उनका दावा एक साफ़ झूठ था, लेकिन यह सच राजस्थान की तत्कालीन भाजपा सरकार के गृह मंत्री को पहलू खान को गोतस्कर के रूप में कलंकित करने से नहीं रोका. स्थानीय पुलिस ने खान के परिजनों के खिलाफ आपराधिक मुक़दमे दर्ज किए.

नूंह में दंगों के बीच उग्र समूहों ने कई वाहनों को आग के हवाले कर दिया था. . (फोटो: द वायर)

लिंचिंग के उस मामले में जांच ही लापरवाही भरी थी और अदालतों में अभियोजन पक्ष भी उदासीन था. यह कोई हैरानी की बात नहीं थी कि उसकी हत्या के आरोपी लोगों को बरी कर दिया गया. जिस दिन यह फैसला सुनाया गया उस दिन कारवां-ए-मोहब्बत के मेरे साथी अदालत में थे और उन्होंने बताया कि आरोपी व्यक्तियों ने अपने बरी होने का जश्न मनाते हुए अदालत परिसर में ही जय श्री राम के नारे लगाए थे.

इसके बाद नूंह के मेव निवासियों की हत्याओं की एक श्रृंखला शुरू हो गई और यह सब हत्या के लिए ले जाई जा रही गायों के बहाने किया गया. डेयरी किसानों और ट्रक ड्राइवरों की भीड़ ने यह कहकर मार डाला कि वे गायों को वध के लिए ले जा रहे थे.

गोरक्षा को लेकर बने कड़े कानूनों और कथित गोरक्षकों के साथ हरियाणा पुलिस की घनिष्ठ और स्पष्ट साझेदारी ने मेव समुदाय में भय का वातावरण पैदा कर दिया. लगभग सभी डेयरी किसानों ने आज पीढ़ियों से चली आ रही मुख्य आजीविका- गाय पालना छोड़ दिया है. नफरत भरी लिंचिंग के जरिये किसी भी समुदाय में इस कदर डर भर देने का कोई और उदाहरण नहीं हो सकता.

ऐसा क्या घटा, जिसकी वजह से सांप्रदायिक हिंसा भड़की

यह चिंगारी सबसे पहले 2023 में एक युवक वारिस खान की बेरहमी से पीट-पीटकर की गई हत्या और दो अन्य- नासिर और जुनैद की कार में जिंदा जलाने से भड़की थी. तीनों हत्याओं को तथाकथित गोरक्षकों ने कथित तौर पर गायों को ले जाने की सजा बताया था.

2017 में पहलू खान की पीट-पीटकर की गई हत्या के उलट ये हत्याएं पत्थरों और लाठियों के साथ किसी अज्ञात भीड़ द्वारा नहीं की गई थीं, बल्कि ये हत्याएं संगठित गोरक्षकों द्वारा की गई थीं, जिनके पास आधुनिक ऑटोमेटिक राइफलें थीं. वे फेसबुक पर ट्रकों पर गोलीबारी करते और उसमें सवार लोगों की पिटाई करते हुए अपने लाइव वीडियो पोस्ट करते थे.

हमलावरों द्वारा शुरू में पोस्ट किए गए वीडियो सहित विभिन्न सबूत स्पष्ट रूप से मोहित यादव, जिसे मोनू मानेसर के नाम से जाना जाता है, को हत्याओं के लिए प्राथमिक संदिग्ध के रूप में दिखाते हैं.

मानेसर नूंह में बजरंग दल की गाय संरक्षण इकाई का प्रमुख है और हरियाणा सरकार की ‘गो संरक्षण टास्क फ़ोर्स’ का हिस्सा भी. 10 वर्षों से अधिक समय से बजरंग दल का सदस्य मोनू ने घोषणा की है कि उसका ‘असली मकसद हिंदू धर्म और गायों की रक्षा करना है.’ बड़ी संख्या में फॉलोअर्स वाले मानेसर के फेसबुक पेज पर कथित गो तस्करों पर हमले, कभी-कभी बुरी तरह से पीटे गए लोगों के साथ पोज़ देते हुए वीडियो पोस्ट किए गए. (मानेसर का नाम नासिर और जुनैद की हत्या से जुड़ने के बाद कई वीडियो फेसबुक से हटा दिए गए और उनके पेज को एडिट किया दिया गया है.)

इसके बावजूद, मानेसर को गिरफ्तार नहीं किया गया और वह आज़ाद घूम रहा है. राजस्थान पुलिस, जिसने उसे 2003 की हत्याओं में मुख्य आरोपी के रूप में नामजद किया था, को उसकी तलाश में हरियाणा जाने के बाद खाली हाथ लौटना पड़ा. हरियाणा पुलिस का कहना है कि वह फरार है और उसके खिलाफ कोई आपराधिक आरोप नहीं है.

लेकिन वह लगातार सोशल मीडिया पर सामने आते रहता है और कई मीडिया चैनलों को इंटरव्यू भी दे चुका है.

मोनू मानेसर. (फोटो साभार: फेसबुक)

बीबीसी की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि यह एक रहस्य ही है कि जब मीडिया को आसानी से मानेसर का पता लग सकता है और वह खुद सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट करता रहता है, तो पुलिस उसे क्यों नहीं ढूंढ पाती है. मानेसर स्पष्ट रूप से अपने आप में एक कानून है.

हाल के वर्षों में पीट-पीटकर मारे गए लोगों के परिवारों के साथ कारवां-ए-मोहब्बत के कामों के तहत नूंह की हालिया यात्राओं के दौरान जिन लोगों से हम बार-बार मिले उन्होंने इस बात को लेकर गहरी पीड़ा और आक्रोश व्यक्त किया कि एक ऐसा व्यक्ति जो सार्वजनिक रूप से लोगों को पीटता है और उन पर गोली चलाता है, अक्सर अपने कारनामों का लाइव-स्ट्रीमिंग करता है और हत्याओं से जुड़ा बताया जाता है, उस पर आरोप भी नहीं लगाया गया है, गिरफ्तार करना तो दूर की बात है.

 31 जुलाई की ‘यात्रा’ और उसके बाद

हमने जिन नूंह निवासियों से बात की, उनमें से अधिकांश ने मानेसर को दोषी ठहराया, जिसने हाल ही में यह ऐलान करके सांप्रदायिक आग भड़काई थी कि वह एक ‘बृजमंडल यात्रा’ में नूंह में शिरकत करेगा .

कई स्थानीय लोगों की हत्या के मामले में वांछित मानेसर का दुस्साहस नूंह के लोगों का जानबूझकर किया गया अपमान  था. उनके एक करीबी सहयोगी बिट्टू बजरंगी ने नूंह के निवासियों पर भद्दा मज़ाक किया. ‘हम आपको (मेव मुसलमानों को) पहले से बता रहे हैं कि आपके जीजाजी (‘जीजाजी’, स्पष्ट रूप से मोनू मानेसर की ओर इशारा करते हुए) मिलने आ रहे हैं. यह मत कहो कि हमने तुम्हें सूचित नहीं किया. उनके लिए फूलों और मालाओं के साथ तैयार रहें।’

बिट्टू बजरंगी फरीदाबाद बजरंग फोर्स के प्रमुख हैं और जिनके खिलाफ भड़काऊ वीडियो के लिए मामले दर्ज हैं, जिसमें वह ‘मुस्लिम समुदाय को गाली दे रहे हैं’ और कथित तौर पर हथियार लहरा रहे हैं. (बजरंगी को 31 जुलाई की हिंसा के सिलसिले में गिरफ्तार किया गया था, बाद में उसे जमानत मिल गई.)

मानेसर ‘बृजमंडल जलाभिषेक यात्रा’ के लिए नूंह आने की धमकी दे रहा था, जो हाल ही में एक स्थानीय नलहर शिव मंदिर के लिए शुरू की गई धार्मिक यात्रा थी, जिसमें बजरंग दल जैसे संगठनों के कट्टरपंथी युवाओं की विशेष भागीदारी थी. हर साल इस यात्रा के प्रतिभागी खंजर और असॉल्ट राइफल सहित हथियार लेकर चलते हैं और मुसलमानों का अपमान करने और उन्हें भड़काने के लिए नफरत भरे नारे लगाते हैं. पिछले वर्ष उन्होंने नूंह में एक मजार को भी ध्वस्त कर दिया था.

इस इतिहास को देखते हुए और मोनू मानेसर और उसके सहयोगियों के सोशल मीडिया पर जानबूझकर उकसावे से परेशान होकर नूंह के मेवों के प्रतिनिधिमंडल ने जिला प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की और उनसे यात्रा को अनुमति न देने का आग्रह किया. प्रशासन ने यात्रा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन कथित तौर पर उन्हें आश्वासन दिया कि वे हथियारों या भड़काऊ नारों की अनुमति नहीं देंगे और किसी भी सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए पर्याप्त पुलिस उपस्थिति होगी.

नूंह के नलहर महादेव मंदिर का प्रवेश द्वार. (फोटो: अतुल होवाले/द वायर)

लेकिन ऐसा नहीं हो सकता। कई गवाहों ने पुष्टि की है कि 31 जुलाई को उन्होंने नूंह की सीमाओं को पार किया, घातक हथियार प्रदर्शित किए, भड़काऊ, नफरत भरे नारे लगाए और गुजरती महिलाओं को भद्दे इशारे किए. किसी ने उन पर रोक नहीं लगाई. पुलिस बल नगण्य था. पुलिस अधीक्षक छुट्टी पर थे और गृह मंत्री ने बाद में दावा किया कि उन्हें स्थिति के बारे में जानकारी नहीं दी गई थी.

गुड़गांव से भाजपा सांसद और केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य राव इंद्रजीत सिंह ने बाद में स्पष्ट रूप से पूछा, ‘उन्हें जुलूस के लिए हथियार किसने दिए? जुलूस में तलवार या लाठियां लेकर कौन जाता है? यह गलत है. इस तरफ से भी उकसावे की कार्रवाई हुई. मैं यह नहीं कह रहा हूं कि दूसरी तरफ से कोई उकसावे की कार्रवाई नहीं हुई.’

यात्रा के नूंह में प्रवेश के बाद क्या हुआ यह पूरी तरह से स्पष्ट नहीं है.

नूंह में जिन लोगों से हमने बात की, उनमें से अधिकांश इस बात से सहमत थे कि उकसावे चाहे जो भी रहे हों, युवाओं के एक समूह, जिनमें से कई किशोरावस्था में थे, द्वारा किया गया हिंसक प्रतिशोध पूरी तरह से निंदनीय था. उन्होंने शिव मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर खेड़ला मोड़ पर यात्रा में भाग लेने वालों पर पत्थर फेंके, जहां यात्रा में आए लोगों को कुछ रीति-रिवाज पूरा करने के लिए इकट्ठा होना था. इसके बाद हुई गोलीबारी में दो होमगार्ड समेत चार लोगों की जान चली गई. (कई लोगों का कहना है कि इन कॉन्स्टेबलों की मौत हाथापाई के दौरान एक दुर्घटना में हुई, लेकिन यह अपुष्ट है.) यात्रा में शामिल  कई सदस्यों ने मंदिर में शरण ली और कुछ घंटों बाद बचाव के लिए पहुंची एक बड़ी पुलिस टुकड़ी द्वारा उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया.

इसके बाद जवाबी हिंसा की बाढ़ आ गई जो हरियाणा के पड़ोसी जिलों में फैल गई. उसी रात, गुड़गांव की एक मस्जिद में एक युवा नायब-इमाम हाफ़िज़ साद की चाकू मारकर हत्या कर दी गई. कई मस्जिदों में तोड़फोड़ की गई और उस जिले में मुस्लिम स्वामित्व वाली दुकानों और घरों में आग लगा दी गई.

इस आग की लपटें तेजी से पड़ोसी सोहना और पलवल तक फैल गईं, जहां कई मस्जिदों पर भीड़ ने हमला किया और मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे स्टॉलों में आग लगा दी गई. मुस्लिम श्रमिकों के बहिष्कार और निष्कासन का आह्वान किया गया. कुछ ग्राम पंचायतों ने सभी मुस्लिम निवासियों को निष्कासित करने का भी आह्वान किया. भयभीत प्रवासी मुसलमानों ने गुड़गांव से पलायन करना शुरू कर दिया.

दंडात्मक उपाय

नूंह प्रशासन ने दो तरह से प्रतिक्रिया दी. पहला, सैकड़ों मुस्लिम युवाओं को बड़े पैमाने पर दंडात्मक तरीके से गिरफ्तार कर लिया गया. नूंह के आस-पास के पूरे गांव युवाओं से खाली हो गए, जो छिपकर पहाड़ों पर या राज्य से बाहर भाग गए.

बजरंग दल के कुछेक सदस्यों को ही गिरफ्तार किया गया. नूंह के पुलिस अधीक्षक ने पीयूसीएल प्रतिनिधिमंडल को बताया कि मानेसर को गिरफ्तार करने का कोई सवाल ही नहीं है क्योंकि उन पर हत्या या 31 जुलाई की हिंसा भड़काने के किसी भी अपराध का आरोप नहीं लगाया गया था. घातक हथियार रखने वाले और नफरत भरे नारे लगाने वाले लोगों पर भी आरोप नहीं लगाया गया है.

प्रशासन का दूसरा कदम मुस्लिम निवासियों के घरों और संपत्तियों पर विनाशकारी प्रतिशोधात्मक हमला करना था.

नूंह हिंसा के बाद क्षेत्र में हुई ध्वस्तीकरण कार्रवाई. (फोटो: द वायर)

सरकारी बुलडोज़रों के निशाने पर एक पूरे वर्ग को शामिल किया गया: उन लोगों, जो प्लास्टिक, छप्पर और गत्ते की छोटी झोपड़ियों में रहते थे, जो कचरा बीनकर या सड़क पर सामान बेचकर जीवनयापन करते थे, से लेकर उन लोगों, जो जिंदगी में कुछ बेहतर कर रहे थे, के पक्के मकानों-दुकानों तक, सभी जगह बुलडोज़रों के निशाने बने.

कुल मिलाकर 750 से अधिक इमारतें (झोपड़ियां, मकान, दुकान) ढहा दी गईं. इनमें ‘कम से कम’ 50 दुकानें, मेडिकल लैब और रेस्तरां शामिल थे. सभी मामलों में लोगों ने बताया कि उन्हें विध्वंस की की  कार्रवाई  पूर्व सूचना नहीं दी गई थी, और यदि बुलडोजर द्वारा इमारतों को जमींदोज करने से कुछ घंटे पहले ही नोटिस दिया गया, तो वो पिछली तारीख (back date) से दिया गया नोटिस था.

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विध्वंस के आधिकारिक बचाव में दो तरह के स्वर थे. एक तो यह कि अराजक अतिक्रमणकारियों के खिलाफ यह सिर्फ नियमित प्रशासनिक कार्रवाई थी. इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं था कि बुलडोज़रों द्वारा केवल मुसलमानों की संपत्तियों को ही क्यों तोड़ा गया या इस अभियान के समय वही क्यों था, जब जिला सांप्रदायिक दंगों के बाद झुलस रहा था.

हालांकि, एसडीएम अश्विनी कुमार ने कहा, ‘कुछ अवैध संरचनाओं के मालिक भी धार्मिक जुलूस के दौरान हिंसा में शामिल थे, इसलिए उन्हें ध्वस्त कर दिया गया और यह अभियान जारी रहेगा.’

राजनीतिक स्वरूप अधिक स्पष्ट था, जिसमें साफ कहा गया था कि यह मुसलमानों को दी गई सज़ा थी. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के ओएसडी जवाहर यादव ने कहा, ‘उन्होंने शांति और सद्भाव को बाधित किया है और उन्हें इसकी कीमत चुकानी होगी. उन्होंने जानबूझकर और योजना बनाकर हिंदू यात्रा पर हमला किया, जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे, उन्होंने किसी के लिए कोई दया नहीं दिखाई.’

राज्य की इस दंडात्मक कार्रवाई को रोकने और इसकी असलियत को सामने लाने के लिए पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय को आगे आना पड़ा. न्यायाधीश जीएस संधावालिया और हरप्रीत कौर जीवन ने राज्य सरकार से स्पष्ट रूप से पूछा कि ‘क्या कानून और व्यवस्था की समस्या की आड़ में किसी विशेष समुदाय की इमारतों को गिराया जा रहा है […और] राज्य सरकार द्वारा जातीय सफाए की कवायद की जा रही है.’

आश्चर्य की बात नहीं है कि इन विध्वंसों को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी हिंदुत्व समूहों के सदस्यों का मुखर समर्थन मिला, जिन्होंने अहमदाबाद से लेकर पूरे उत्तर प्रदेश में रैलियां आयोजित कीं. कई रैलियों में प्रतिभागियों ने हरियाणा सरकार से यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तरह ‘बुलडोजर कार्रवाई‘ का सहारा लेने का आग्रह किया.

नूंह हिंसा के बाद क्षेत्र में हुई ध्वस्तीकरण कार्रवाई. (फोटो: द वायर)

स्पष्टतः हरियाणा सरकार ने इस सलाह को अच्छी तरह से अमल में लाया. संविधान और कानून की गारंटी के पूरी तरह से बाहर जाकर राज्य सरकार ने मुस्लिम अल्पसंख्यकों की संपत्तियों को इस पैमाने पर नष्ट करने का काम किया, जैसा दंगाई भीड़ शायद कई दिनों तक भी न कर पाती.

‘हमारी पहचान वो नहीं जो दिखाई जा रही है’

नूंह में हम एक युवक से मिले, जिसका चेहरा आंसुओं में डूबा हुआ था. ‘हम पहले से ही इस देश के सबसे गरीब लोगों में से थे. सालों की जद्दोजेहद से जो थोड़ा-बहुत बना पाए थे उसे प्रशासन ने बर्बाद कर दिया. हमें कम से कम एक पीढ़ी पीछे धकेल दिया गया.’

मेव मुसलमान इस बात से भी परेशान हैं कि मीडिया उन्हें किस तरह हिंसक और घृणित बताता है. ‘हम वैसे नहीं हैं. हम सदियों से अपने हिंदू पड़ोसियों के साथ शांति और सद्भावना के साथ रहते आए हैं. हमारे कुछ युवाओं, जो इस बात से गुमराह थे कि उन्हें अपना आक्रोश कैसे व्यक्त करना चाहिए था, द्वारा की गई इस हिंसात्मक कार्रवाई से हमारी पहचान क्यों जोड़ी जानी चाहिए.’

मेव मुसलमान और उनके हिंदू पड़ोसी सद्भावना और आपसी विश्वास के साथ एक साथ रहते आए हैं और धार्मिक पहचान से परे जाकर उत्सवों में भाग लेते हैं.

विभाजन के दंगों के बाद 19 दिसंबर 1947 को महात्मा गांधी की एक ऐतिहासिक अपील ने मेवों के पाकिस्तान प्रवास को रोक दिया. इसके बाद के वर्षों में हिंदुओं और मेव मुसलमानों के बीच सामाजिक संबंधों में आई दरार ठीक हो गई.

(फोटो साभार: एएनआई)

यहां के निवासियों को पिछली बार 1992 में बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद हुई एक छोटी सांप्रदायिक झड़प याद है. लेकिन अधिकांश क्षेत्रों के लिए, मेव मुस्लिम और उनके हिंदू पड़ोसी सद्भावना से रहते हैं. बच्चे के जन्म और विवाह के उत्सवों में धार्मिक पहचान से परे भाग लेते हैं, अपनी आर्थिक गतिविधियों और अपने संबंधित धार्मिक अनुष्ठानों और रीति-रिवाजों में एक-दूसरे का समर्थन करते हैं.

महाभारत की मेव प्रस्तुतियां और शिव की स्तुति के भजन एक पीढ़ी पहले तक हिंदू ग्रामीण दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देते थे. मेवों के नाम अक्सर हिंदू और मुस्लिम का मिश्रण होते थे. (जुलाई की हिंसा में मारे गए एक मुस्लिम होमगार्ड का नाम नीरज था, जो चिरंजी लाल का बेटा था.)

निवासियों ने मुझसे एक और धार्मिक यात्रा के बारे में बताया, जो जिले के अन्य हिस्सों में सांप्रदायिक दंगों के दौरान ही चल रही थी. यह चौरासी कोस यात्रा है, जिसमें कई महिलाओं और बच्चों सहित हजारों श्रद्धालु 200 किलोमीटर से अधिक पैदल चलते हैं. इस यात्रा का 50 किलोमीटर का हिस्सा नूंह में पड़ता है.

कारवां-ए-मोहब्बत के मेरे सहयोगी भी इस यात्रा को देखने गए और पूरे रास्ते में मुस्लिम घरों में तीर्थयात्रियों के खाने और आराम करने की व्यवस्था को देखकर बहुत प्रभावित हुए.

‘ये सच्चे हिंदू भक्त हैं, बजरंग दल के लोग नहीं जो हथियार और नफरत भरे नारे लेकर आते हैं. और इन हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए हम हर साल अपने घर, रसोई और दिल खोलते हैं, जैसा कि हम पीढ़ियों से करते आ रहे हैं.’

एकजुटता

अपनी निराशा के अंधेरे के बीच, नूंह के लोगों को कई जाट पंचायतों के प्रस्तावों से सबसे ज्यादा राहत मिलती है. कई जाट पंचायतों ने हिंसा भड़काने के लिए बजरंग दल के कार्यकर्ताओं की तीखी आलोचना करते हुए सार्वजनिक बयान जारी किए और सांप्रदायिक शांति और मुस्लिम निवासियों को हमलों और बहिष्कार से बचाने का आह्वान किया.

उन्होंने घोषणा की कि बजरंग दल सालभर चले किसान आंदोलन में कहीं नहीं, महिला पहलवानों द्वारा एक भाजपा नेता पर लगाए गए संगीन आरोपों के बाद के संघर्ष से भी नदारद था, ऐसे में उनके भाई वे नहीं थे, बल्कि नूंह के मेव मुसलमान थे.

हिसार के एक गांव में भारतीय किसान मजदूर यूनियन द्वारा एक महापंचायत की भी खबर आई, जिसमें अंतर-सामुदायिक भाईचारे को मजबूत करने का जोरदार आह्वान किया गया. महापंचायत का आयोजन करने वाले सुरेश कोथ ने उन लोगों की निंदा की जिन्होंने मुसलमानों को गांवों में प्रवेश न करने देने की धमकी दी थी. ‘हम उन्हें चुनौती देते हैं कि वे यहां आएं और हमारे भाइयों को गांवों में प्रवेश करने से रोकें.’

महापंचायत ने मेवात में शांति बहाल करने का आह्वान करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया, साथ ही मोनू मानेसर, बिट्टू बजरंगी और अन्य लोगों की निष्पक्ष जांच और गिरफ्तारी की भी मांग की, जिन्होंने दंगे भड़काने के लिए भड़काऊ भाषण दिए और वीडियो प्रसारित किए. सर्वखाप पंचायत के राष्ट्रीय प्रवक्ता सूबे सिंह समैन ने संवाददाताओं से कहा कि यह उनकी मांग है कि ‘राज्यभर के सभी गांवों में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए.’

इससे मेव लोगों को हिम्मत तो मिलती है, लेकिन यह भी एक सच है कि जिस निराशा और हताशा ने उन्हें घेर लिया है उससे बाहर निकालने के लिए इतना पर्याप्त नहीं है. समुदाय के बुजुर्ग नेताओं ने इस बात पर विचार किया कि इस तरह के बढ़ते उकसावे के बावजूद युवाओं को शांति के रास्ते पर रखना कितना मुश्किल हो गया है.

एक मेव नेता ने डबडबाई आंखों से देखते हुए मुझे कहा, ‘इस सबसे हमने केवल एक ही सबक सीखा है और वो ये है कि अगली बार जब कोई बजरंग दल का गुंडा मुझे दो बार डंडे से मारे, तो मुझे उसके सामने हाथ जोड़कर विनती करनी चाहिए कि मेहरबानी करके मुझे चार बार और मारो!’

(लेखक मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.)

(मूल अंग्रेजी लेख से विनय ओहदार द्वारा अनूदित)

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