इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक भाजपा नेता द्वारा धर्मांतरण रोधी क़ानून के तहत दर्ज कराए गए केस को रद्द करते हुए कहा कि पवित्र बाइबिल बांटने और अच्छी शिक्षा देने को इस अधिनियम के तहत ‘धर्म परिवर्तन का प्रलोभन’ नहीं कहा जा सकता.
नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि बाइबिल बांटने और अच्छी शिक्षा देने को उत्तर प्रदेश गैरकानूनी धर्म परिवर्तन निषेध अधिनियम के तहत ‘धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन’ नहीं कहा जा सकता है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने यह भी कहा कि कोई अपरिचित इस अधिनियम के तहत एफआईआर दर्ज नहीं कर सकता है और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित करने के लिए कथित तौर पर प्रलोभन देने के आरोप में दो आरोपियों को जमानत दे दी.
जस्टिस शमीम अहमद की पीठ ने जोस पापाचेन और शीजा की जमानत याचिका की अस्वीकृति के खिलाफ अपील की अनुमति देते हुए आदेश पारित किया. 24 जनवरी को अंबेडकर नगर जिले में एक भाजपा पदाधिकारी द्वारा दायर शिकायत के आधार पर पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज करने के बाद अपीलकर्ताओं को जेल भेज दिया गया था.
भाजपा नेता ने आरोप लगाया था कि दोनों आरोपी अनुसूचित जाति और जनजाति समुदाय के लोगों को ईसाई धर्म में परिवर्तित होने के लिए प्रलोभन दे रहे थे.
जस्टिस अहमद ने कहा, ‘शिक्षाएं देना, पवित्र बाइबिल बांटना, बच्चों को शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना, ग्रामीणों की सभा आयोजित करना और भंडारा करना, ग्रामीणों को विवाद न करने और शराब न पीने की हिदायत देना 2021 अधिनियम के तहत प्रलोभन के दायरे में नहीं आता है.’
पीठ ने आगे कहा कि अधिनियम में प्रावधान है कि केवल पीड़ित व्यक्ति या उसका परिवार ही मामले में एफआईआर दर्ज कर सकता है.
अपीलकर्ताओं की ओर से दलील दी गई कि वे निर्दोष हैं और राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के कारण उन्हें फंसाया गया है.