लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक अंतरधार्मिक जोड़े द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यह स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से उत्पन्न होती है. अपनी याचिका में मुस्लिम महिला और उसके हिंदू पार्टनर ने उनके परिवार के सदस्यों को उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश देने की मांग की थी.
इलाहाबाद: उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि एक वयस्क अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने या उसके साथ रहने के लिए स्वतंत्र है और उनके माता-पिता या उनकी ओर से कोई भी व्यक्ति, साथी चुनने की उसकी स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है.
अदालत ने कहा कि यह स्वतंत्रता संविधान द्वारा प्रदत्त जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार से उत्पन्न होती है.
एनडीटीवी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक अंतरधार्मिक जोड़े द्वारा दायर याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस सुरेंद्र सिंह ने एक हालिया फैसले में निर्देश दिया कि अगर याचिकाकर्ताओं के शांतिपूर्ण जीवन में कोई व्यवधान उत्पन्न होता है तो वे सुरक्षा के लिए आदेश की एक प्रति के साथ संबंधित पुलिस अधीक्षक (एसपी) से संपर्क करेंगे.
अपनी याचिका में मुस्लिम महिला और उसके हिंदू लिव-इन पार्टनर ने मांग की थी कि उनके परिवार के सदस्यों को उनके शांतिपूर्ण जीवन में हस्तक्षेप न करने का निर्देश दिया जाए. उन्होंने सुरक्षा के लिए पुलिस को निर्देश देने की भी मांग की थी.
याचिकाकर्ताओं के वकील ने कहा कि दोनों वयस्क हैं और अपनी मर्जी से लिव-इन रिलेशनशिप में हैं. आगे कहा गया कि महिला की मां और परिवार लिव-इन रिलेशनशिप के खिलाफ हैं.
महिला की मां और परिवार के अन्य सदस्य कथित तौर पर याचिकाकर्ताओं को परेशान कर रहे हैं और उनके शांतिपूर्ण जीवन में खलल डाल रहे हैं. याचिका में दावा किया गया है कि उन लोगों ने याचिकाकर्ताओं को गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी भी दी है.
महिला ने बीते 4 अगस्त को गौतमबुद्ध नगर कमिश्नरेट के पुलिस कमिश्नर से सुरक्षा मांगी थी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ तो उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया.