नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) का यह बयान केंद्र सरकार द्वारा विद्रोही समूह के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के कुछ दिनों बाद आया है. एनएससीएन-आईएम समेत नगा समूहों का दावा है कि नगा कभी भी भारत का हिस्सा नहीं थे और उन्होंने 14 अगस्त 1947 को ‘स्वतंत्रता’ की घोषणा की थी.
नई दिल्ली: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड – इसाक-मुइवा (एनएससीएन-आईएम) ने शनिवार (9 सितंबर) को जारी एक बयान में कहा कि सात दशक पुराने नगा राजनीतिक संघर्ष का समाधान भारतीय संविधान के तहत संभव नहीं है और उन्होंने नगाओं के लिए एक अलग ध्वज और संविधान की बात कही.
यह बयान केंद्र सरकार द्वारा इस विद्रोही समूह के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के कुछ दिनों बाद आया है.
एनएससीएन-आईएम ने कहा कि बीते 8 सितंबर को सेनापति (मणिपुर में) जिले के मायांगखांग में सलाहकार बैठक के अंत में यह ‘स्पष्ट विचार’ सामने आया. डेक्कन हेराल्ड के मुताबिक, यह बैठक नेताओं और ‘कार्यकारी संचालन समिति’ को मौजूदा नगा राजनीतिक मुद्दे के घटनाक्रम से अवगत कराने के लिए आयोजित की गई थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि बैठक अगस्त 2015 में केंद्र सरकार के साथ हस्ताक्षरित ‘फ्रेमवर्क समझौते’ के मुख्य मुद्दों पर कायम रहने के संकल्प के साथ संपन्न हुई.
केंद्र सरकार द्वारा 25 अगस्त को दिल्ली में संगठन के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के बाद एनएससीएन-आईएम का यह पहला बयान था. बैठक में संगठन के महासचिव थुइंगलेंग मुइवा ने भाग लिया था.
केंद्र सरकार द्वारा नगा वार्ता को औपचारिक रूप से ऐसे समय में फिर से शुरू किया गया है, जब मणिपुर की पहाड़ियों में समुदाय के पड़ोसी कुकी समुदाय ने केंद्र सरकार से ‘अलग प्रशासन’ की मांग शुरू कर दी है.
इस साल 14 अगस्त, जिसे एनएससीएन-आईएम द्वारा स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है, को मुइवा ने कहा था, ‘ध्वज और संविधान स्वाभाविक रूप से लोगों की संप्रभुता से अलग नहीं हैं. यह सर्वमान्य सत्य है कि ध्वज और संविधान संप्रभुता के अभिन्न अंग हैं. इसमें कोई अस्पष्टता नहीं है. भारतीय नेता भी इसे समझते हैं. उन्हें सच कहने के लिए आगे आना चाहिए.’
एनएससीएन-आईएम समेत नगा समूहों का दावा है कि नगा कभी भी भारत का हिस्सा नहीं थे और उन्होंने 14 अगस्त 1947 को ‘स्वतंत्रता’ की घोषणा की थी.
संघ और एनएससीएन-आईएम नेताओं ने 3 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति में दिल्ली में फ्रेमवर्क समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन एनएससीएन-आईएम के नगाओं के लिए अलग ध्वज और संविधान पर जोर देने और सभी नगा निवासी क्षेत्रों (नगालैंड और मणिपुर व असम के कुछ हिस्सों) के ‘एकीकरण’ के कारण इस ढांचे पर आधारित अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किए गए थे.
जहां केंद्र ने प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था, वहीं नगा समूहों को सांस्कृतिक कार्यक्रमों के दौरान अपने ध्वज का इस्तेमाल करने की अनुमति दे दी गई थी.
एनएससीएन-आईएम ने यह भी दावा किया कि केंद्र 2015 के समझौते में नगाओं के साथ ‘साझा संप्रभुता’ के लिए सहमत हो गया था. 2015 के समझौते की सामग्री को केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक नहीं किया गया है.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.