जेएनयू प्रोफेसर ने राष्ट्रपति को पत्र लिखकर विश्वविद्यालय पर 42 महीने तक उत्पीड़न का आरोप लगाया

जेएनयू के प्रोफेसर राजीव कुमार का आरोप है कि फरवरी 2020 में पूर्व वीसी जगदीश कुमार के कार्यकाल में उनके ख़िलाफ़ शुरू की गई जांच उनके द्वारा साल 2006 में आईआईटी-जेईई परीक्षा के संचालन में उजागर की गई गड़बड़ियों का प्रतिशोध थी. जगदीश कुमार 2006-2008 के बीच आईआईटी के एडमिशन बोर्ड के सदस्य थे.

प्रोफेसर राजीव कुमार. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

जेएनयू के प्रोफेसर राजीव कुमार का आरोप है कि फरवरी 2020 में पूर्व वीसी जगदीश कुमार के कार्यकाल में उनके ख़िलाफ़ शुरू की गई जांच उनके द्वारा साल 2006 में आईआईटी-जेईई परीक्षा के संचालन में उजागर की गई गड़बड़ियों का प्रतिशोध थी. जगदीश कुमार 2006-2008 के बीच आईआईटी के एडमिशन बोर्ड के सदस्य थे.

प्रोफेसर राजीव कुमार. (फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के प्रोफेसर राजीव कुमार ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखते हुए उनके खिलाफ दायर दुर्व्यवहार की एक शिकायत के संबंध में विश्वविद्यालय प्रशासन पर पिछले 42 महीनों से उत्पीड़न का आरोप लगाया है.

विश्वविद्यालय के नियमानुसार, इस तरह की शिकायत की जांच एक महीने में पूरी की जानी चाहिए, हालांकि प्रोफेसर के खिलाफ आई शिकायत का मामला फरवरी 2020 से लंबित है.

रिपोर्ट के अनुसार, विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंसेज में कार्यरत प्रोफेसर राजीव को डर है कि उनके खिलाफ लंबित जांच का हवाला देकर उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद मिलने वाले लाभ रोका जा सकता है. उनका रिटायरमेंट मार्च 2024 में होना है.

साल 2006 में आईआईटी खड़गपुर में अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों द्वारा आयोजित संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) में होने वाली वित्तीय और शैक्षणिक गड़बड़ियों को उजागर करके परीक्षा को पारदर्शी बनाने में उनके योगदान के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने ‘अनसंग हीरो’ कहा था.

प्रोफेसर राजीव 2015 में जेएनयू से तब जुड़े, जब विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के वर्तमान अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार जेएनयू के कुलपति का पद संभाल रहे थे. प्रोफेसर राजीव के खिलाफ उन्हीं के कार्यकाल (2016-22) के दौरान फरवरी 2020 में जांच शुरू की गई थी.

राष्ट्रपति को लिखे प्रोफेसर के पत्र में यह इशारा किया गया है कि 2006 में जेईई में अनियमितताओं को उजागर करने के चलते जगदीश कुमार ने उन्हें निशाना बनाया था. कुमार साल 2006 से 2008 तक आईआईटी के संयुक्त प्रवेश बोर्ड (जेएबी) के सदस्य रहे हैं. प्रोफेसर राजीव तब आईआईटी खड़गपुर में थे और जगदीश कुमार आईआईटी दिल्ली की फैकल्टी का हिस्सा थे.

द टेलीग्राफ के अनुसार, प्रोफेसर रविव ने राष्ट्रपति मुर्मू को संबोधित पत्र में कहा हैं, ‘इस मामले की जड़ें 2006 तक जाती हैं जब जेएनयू के पूर्व कुलपति प्रोफेसर एम. जगदीश कुमार (वर्तमान में यूजीसी अध्यक्ष) 2006 से 2008 तक आईआईटी के संयुक्त प्रवेश बोर्ड (जेएबी) के सदस्य थे, और मैंने आईआईटी खड़गपुर के एक प्रोफेसर के तौर पर आईआईटी-जेईई प्रवेश में व्यापक अनियमितताओं और गड़बड़ियों को उजागर किया था; तब माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था में सुधार के मेरे प्रयासों की सराहना की थी…’

उन्होंने जोड़ा, ‘इसी के प्रतिशोध में प्रो. एम. जगदीश कुमार (पूर्व संकाय, आईआईटी खड़गपुर, दिल्ली) द्वारा कुलपति बनने के बाद से मुझे जेएनयू प्रशासन द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है.’

उल्लेखनीय है कि साल 2011 में शीर्ष अदालत में प्रोफेसर राजीव की जनहित याचिका के बाद आईआईटी ने उम्मीदवारों को अपनी उत्तर पुस्तिकाओं की कार्बन कॉपी वापस लेने की अनुमति देने जैसे कई बदलाव किए.

प्रोफेसर राजीव का आरोप है कि जेईई के संचालन में अनियमितताओं को उजागर करने के कारण उनके खिलाफ शुरू की गई जांच में देरी करके उन्हें निशाना बनाया जा रहा है. उनका कहना है कि जनवरी 2022 में जगदीश कुमार के वीसी पद से हटने और मौजूदा वीसी शांतिश्री डी. पंडित के पदभार संभालने के बाद भी उस मामले में कोई राहत नहीं मिली है.

प्रोफेसर राजीव पर आरोप है कि उन्होंने जनवरी 2020 में बोर्ड ऑफ स्टडीज की बैठक के दौरान दो बाहरी विशेषज्ञों के साथ दुर्व्यवहार किया था. विशेषज्ञों ने प्रोफेसर राजीव पर ऊंची आवाज में बात करने और उनके खिलाफ कुछ व्यक्तिगत टिप्पणियां करने का भी आरोप लगाया था. बाद में एक शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत वापस ले ली. दूसरे शिकायतकर्ता के संबंध में, प्रोफेसर राजीव का कहना है कि वे रिटायर्ड कर्मी होने के चलते उस बैठक में भाग लेने के पात्र नहीं थे.

बताया गया है कि प्रोफेसर ने कई बार राष्ट्रपति को पत्र लिखा, लेकिन कोई राहत नहीं मिली. राष्ट्रपति ने मामले पर स्थिति रिपोर्ट मांगते हुए अपना पत्र आवश्यक कार्रवाई के लिए शिक्षा मंत्रालय को भेज दिया है. शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि इस मामले को विश्वविद्यालय प्रशासन को भेज दिया गया है, लेकिन अब तक प्रतिक्रिया नहीं मिली है.