नीट-पीजी में कोई अंक न ला पाने वाले डॉक्टर भी अब विशेषज्ञ बन सकते हैं

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने सभी श्रेणियों में नीट-पीजी 2023 क्वालीफाइंग परसेंटाइल को घटाकर शून्य कर दिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि जिस उम्मीदवार ने कोई अंक प्राप्त नहीं किया है या जिसने नकारात्मक अंक प्राप्त किए हैं, वह भी एनईईटी-पीजी काउंसलिंग के लिए पात्र होंगे.

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(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने सभी श्रेणियों में नीट-पीजी 2023 क्वालीफाइंग परसेंटाइल को घटाकर शून्य कर दिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि जिस उम्मीदवार ने कोई अंक प्राप्त नहीं किया है या जिसने नकारात्मक अंक प्राप्त किए हैं, वह भी एनईईटी-पीजी काउंसलिंग के लिए पात्र होंगे.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pixabay)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने बीते बुधवार (20 सितंबर) को सभी श्रेणियों में राष्ट्रीय पात्रता सह-प्रवेश परीक्षा स्नातकोत्तर (नीट-पीजी/NEET-PG) 2023 क्वालीफाइंग परसेंटाइल को घटाकर शून्य कर दिया. इसका मतलब है कि नीट-पीजी 2023 परीक्षा में उपस्थित होने वाले सभी उम्मीदवार अब स्नातकोत्तर चिकित्सा परामर्श प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पात्र हो जाएंगे.

इस संबंध में जारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है, ‘2023 (नीट-पीजी 2023) के लिए स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों के लिए योग्यता प्रतिशत में कमी की सिफारिश पर मंत्रालय में विचार किया गया है.’

इसमें कहा गया है, ‘सभी श्रेणियों में नीट-पीजी 2023 के लिए क्वालीफाइंग परसेंटाइल को घटाकर ‘शून्य’ करने के लिए सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी से अवगत कराया जाता है.’

स्वास्थ्य मंत्रालय ने घोषणा की है कि यहां तक कि जिस उम्मीदवार ने कोई अंक प्राप्त नहीं किया है या जिसने नकारात्मक अंक प्राप्त किए हैं, वह भी एनईईटी-पीजी काउंसलिंग के लिए पात्र होंगे.

यह एक ऐसा कदम है, जिसका उद्देश्य स्पष्ट रूप से यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी स्नातकोत्तर मेडिकल सीट खाली न रहे, लेकिन इससे निजी कॉलेजों को लाभ होगा.

इस कदम का फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स इन इंडिया (फोर्डा/FORDA) जैसे कुछ डॉक्टरों के संगठनों ने स्वागत किया. वहीं कई अन्य संघों और डॉक्टरों ने इसका विरोध किया है. उनका मानना है कि यह कदम चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के मानक का ‘मजाक’ है.

एक डॉक्टर ने कहा कि कट-ऑफ को शून्य प्रतिशत तक कम करने से निजी मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार और उच्च फीस को बढ़ावा मिलेगा और भारत में चिकित्सा उद्योग ‘बिक्री के लिए’ हो जाएगा.

इससे पहले सामान्य श्रेणी के छात्रों के लिए नीट-पीजी के लिए न्यूनतम योग्यता स्कोर 50 प्रतिशत था, जिसका अर्थ है कि एक उम्मीदवार को परीक्षा में उत्तीर्ण होने के लिए कुल उम्मीदवारों के 50 प्रतिशत से बेहतर स्कोर करना होगा.

योग्यता के बाद उम्मीदवार कट-ऑफ स्कोर और प्रत्येक विशेषता (Specialty) में सीटों की उपलब्धता के आधार पर विभिन्न विभागों में सीटों का चयन करेंगे. इसे अब सभी श्रेणियों में शून्य प्रतिशत कर दिया गया है, जिसका अर्थ है कि कोई कट-ऑफ नहीं है.

बुधवार को प्रकाशित एक अधिसूचना में भारतीय चिकित्सा परामर्श समिति ने कहा,

यह उम्मीदवारों की जानकारी के लिए है कि पत्र संख्या यू-12021/07/2023-एमईसी (पीटी-I) दिनांक 20/09/2023 (नीचे संलग्न प्रति) के माध्यम से नीट के लिए पीजी पाठ्यक्रम (मेडिकल/डेंटल) के लिए योग्यता प्रतिशत केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा पीजी काउंसलिंग 2023 को सभी श्रेणियों में ‘शून्य’ कर दिया गया है.

इस संबंध में यह उल्लेख किया गया है कि पीजी काउंसलिंग के राउंड-3 के लिए ताजा पंजीकरण और विकल्प भरना उन उम्मीदवारों के लिए फिर से खोला जाएगा, जो प्रतिशत में कमी के बाद पात्र हो गए हैं. जो उम्मीदवार नए सिरे से पात्र हो गए हैं, वे पंजीकरण करा सकते हैं और काउंसलिंग के राउंड-3 में भाग ले सकते हैं. जो उम्मीदवार पहले से पंजीकृत हैं, उन्हें दोबारा पंजीकरण करने की आवश्यकता नहीं है. हालांकि, उन्हें अपनी पसंद बदलने की अनुमति होगी.

पीजी काउंसलिंग के लिए राउंड-3 से आगे का नया शेड्यूल जल्द ही एमसीसी वेबसाइट पर अपलोड की जाएगी. उम्मीदवारों को सलाह दी जाती है कि वे आगे के अपडेट के लिए एमसीसी वेबसाइट के संपर्क में रहें.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, नीट-पीजी कट-ऑफ प्रतिशत अनारक्षित श्रेणियों के लिए 50, पीडब्ल्यूडी श्रेणियों के लिए 45 और आरक्षित श्रेणी के छात्रों के लिए 40 था.

दिलचस्प बात यह है कि सामान्य श्रेणी के उम्मीदवारों के लिए नीट-पीजी कट-ऑफ 2022 में 50 प्रतिशत से घटाकर 35 प्रतिशत कर दिया गया था. अनारक्षित पीडब्ल्यूडी (विशेष रूप से सक्षम) उम्मीदवारों के लिए कट-ऑफ 45 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया था और एससी, एसटी और ओबीसी (एससी, एसटी, ओबीसी के पीडब्ल्यूडी सहित) के छात्रों के लिए कट-ऑफ 40 प्रतिशत से घटाकर 20 प्रतिशत कर दिया गया था.

पिछले सप्ताह फोर्डा और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) जैसे संगठनों ने स्वास्थ्य मंत्रालय को कट-ऑफ कम करने के लिए लिखा था.

आईएमए ने कहा कि इस कदम से यह सुनिश्चित होगा कि ‘देश भर के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम और एक भी स्नातकोत्तर सीट खाली न रहे’. वहीं, फोर्डा ने दावा किया कि यह ‘अनेक मेडिकल छात्रों को जीवनरेखा प्रदान करेगा, जो इन अनिश्चितताओं के कारण परेशानी की स्थिति में हैं’.

हालांकि, अन्य डॉक्टरों ने बताया है कि नीट-पीजी काउंसलिंग के दो दौर के बाद, जो सीटें खाली रह गई थीं, उनमें से अधिकांश निजी कॉलेजों में थीं.

उन्होंने कहा, ऐसा इसलिए नहीं है, क्योंकि वहां कोई योग्य उम्मीदवार नहीं हैं, बल्कि इसलिए है, क्योंकि अधिकांश निजी कॉलेज ऐसी फीस लेते हैं, जो बड़ी संख्या में आवेदकों के लिए वहन करने योग्य नहीं है.

आईएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ. जेए जयलाल जयलाल ने सरकार के इस कदम को ‘विनाशकारी’ बताते हुए कहा कि यह चिकित्सा क्षेत्र को अस्थिर कर देगा.

कट-ऑफ में कमी का विरोध करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि अगर खाली सीटों को सरकारी कॉलेज की सीटों में ‘परिवर्तित’ किया जाता है, तो वे प्रतिशत कम करने की आवश्यकता के बिना भी भर जाएंगी.

उन्होंने यह भी कहा कि कट-ऑफ को शून्य प्रतिशत तक कम करने से यह सुनिश्चित होगा कि जिन उम्मीदवारों ने कम अंक प्राप्त किए हैं, वे प्रभावी ढंग से सीटें ‘खरीद’ सकते हैं.

जहां परामर्श समिति और प्रशासन निकायों ने कट-ऑफ को शून्य तक कम करने के फैसले का स्वागत किया है, वहीं फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (एफएआईएमए) ने फैसले की निंदा की है.

एफएआईएमए के अध्यक्ष डॉ. रोहन कृष्णन ने एक वीडियो संदेश में कहा, ‘कट-ऑफ को शून्य से कम करने के निर्णय ने भारत में चिकित्सा शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के मानक का मजाक उड़ाया है. यह केवल निजी मेडिकल कॉलेजों में भ्रष्टाचार और ऊंची फीस को बढ़ावा देगा.’

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