तत्काल न्याय देने वाले सिंघम जैसे पुलिसकर्मी वाली फ़िल्में ख़तरनाक संदेश देती हैं: हाईकोर्ट जज

बॉम्बे हाईकोर्ट के जज जस्टिस गौतम पटेल ने कहा कि जब जनता सोचती है कि अदालतें अपना काम नहीं कर रही हैं, तो वह पुलिस के क़दम पर जश्न मनाती है. यही कारण है कि जब कोई रेप आरोपी कथित तौर पर भागने की कोशिश में मुठभेड़ में मारा जाता है, तो उन्हें लगता है कि न्याय मिल गया, लेकिन क्या सच में इंसाफ़ मिला.

सिंघम फिल्म में पुलिस का पात्र. (फोटो साभार: यूट्यूब)

बॉम्बे हाईकोर्ट के जज जस्टिस गौतम पटेल ने कहा कि जब जनता सोचती है कि अदालतें अपना काम नहीं कर रही हैं, तो वह पुलिस के क़दम पर जश्न मनाती है. यही कारण है कि जब कोई रेप आरोपी कथित तौर पर भागने की कोशिश में मुठभेड़ में मारा जाता है, तो उन्हें लगता है कि न्याय मिल गया, लेकिन क्या सच में इंसाफ़ मिला.

सिंघम फिल्म में पुलिस का पात्र. (फोटो साभार: यूट्यूब)

नई दिल्ली: बॉम्बे हाईकोर्ट के जज जस्टिस गौतम पटेल ने शुक्रवार को कहा कि कानूनी प्रक्रिया की परवाह किए बिना त्वरित न्याय करने वाले ‘नायक पुलिसकर्मी’ की सिनेमाई छवि, जैसा कि ‘सिंघम’ जैसी फिल्मों में दिखाया गया है, बहुत ही खतरनाक संदेश देती है.

‘इंडियन पुलिस फाउंडेशन’ द्वारा अपने वार्षिक दिवस और पुलिस सुधार दिवस के अवसर पर आयोजित एक समारोह में जस्टिस पटेल ने कानून की प्रक्रिया के प्रति लोगों की ‘व्यग्रता’ पर भी सवाल उठाया.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस सुधारों के बारे में बात करते हुए जस्टिस पटेल ने कहा कि प्रकाश सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला एक ‘अवसर चूक गया’ था और यह भी कहा कि कानून प्रवर्तन मशीनरी में सुधार नहीं किया जा सकता जब तक कि हम खुद में सुधार नहीं करते.

उन्होंने कहा कि पुलिस की छवि ‘दबंगों, भ्रष्ट और गैरजिम्मेदार’ के रूप में लोकलुभावन है और न्यायाधीशों, नेताओं और पत्रकारों सहित सार्वजनिक जीवन में किसी के बारे में भी यही कहा जा सकता है.

न्यायाधीश ने कहा, ‘जब जनता सोचती है कि अदालतें अपना काम नहीं कर रही हैं, तो पुलिस के कदम उठाने पर वह जश्न मनाती है.’

उन्होंने कहा, ‘यही कारण है कि जब बलात्कार का एक आरोपी कथित तौर पर भागने की कोशिश करते समय मुठभेड़ में मारा जाता है, तो लोग सोचते हैं कि यह न सिर्फ ठीक है, बल्कि इसका जश्न मनाया जाता है. उन्हें लगता है कि न्याय मिल गया है, लेकिन क्या सच में मिला है?’

जस्टिस पटेल ने कहा कि यह दृष्टिकोण हमारी लोकप्रिय संस्कृति, विशेषकर भारतीय सिनेमा में गहराई से व्याप्त है.

उन्होंने कहा, ‘फिल्मों में पुलिस न्यायाधीशों के खिलाफ कार्रवाई करती है, जिन्हें विनम्र, डरपोक, मोटे चश्मे वाले और अक्सर बहुत खराब कपड़े पहने हुए दिखाया जाता है. वे अदालतों पर दोषियों को छोड़ देने का आरोप लगाते हैं. हीरो कॉप अकेले ही इंसाफ करता है.’

पटेल ने कहा, ‘सिंघम फिल्म में विशेष रूप से उसके क्लाइमेक्स दृश्य में दिखाया गया है जहां पूरी पुलिस बल प्रकाश राज द्वारा अभिनीत नेता के किरदार पर टूट पड़ती है… और दिखाती है कि अब न्याय मिल गया है. लेकिन मैं पूछता हूं, क्या सचमुच मिल गया है?’

उन्होंने कहा, ‘हमें सोचना चाहिए वह संदेश कितना खतरनाक है. यह व्यग्रता क्यों? इसे एक ऐसी प्रक्रिया से गुजरना होगा जहां हम निर्दोष होने या अपराध का फैसला करते हैं. ये प्रक्रियाएं धीमी हैं… उन्हें ऐसा होना ही होगा… मुख्य सिद्धांत के कारण कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता को रोका नहीं जाना चाहिए.’

जस्टिस पटेल ने कहा कि यदि इस प्रक्रिया को ‘शॉर्टकट’ के चक्कर में छोड़ दिया गया, तो हम कानून के शासन को ही नष्ट कर देंगे.

‘सिंघम’ (2011) रोहित शेट्टी द्वारा निर्देशित एक एक्शन फिल्म है, इसी शीर्षक की 2010 की तमिल फिल्म का रीमेक है और इसमें अजय देवगन एक पुलिस अधिकारी की मुख्य भूमिका में हैं.

इससे पहले पुलिस सुधारों के बारे में बात करते हुए जस्टिस पटेल ने कहा कि प्रकाश सिंह मामले में पुलिस सुधारों पर शीर्ष अदालत के 2006 के फैसले को पढ़ते समय, वह ‘एक स्पष्ट भावना के साथ आते हैं कि यह एक अवसर चूक गया था.’

उन्होंने कहा, ‘फोकस शायद बहुत संकीर्ण था, केवल पुलिस सुधारों पर… बहुत व्यापक बातचीत है…एक व्यापक बातचीत जो हमें करनी चाहिए.’

जस्टिस पटेल ने कहा कि पुलिस सुधारों को अलग करके नहीं देखा जा सकता और अन्य महत्वपूर्ण सुधार भी आवश्यक हैं.

न्यायाधीश ने कहा कि वह उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह को पुलिस सुधारों को वास्तविकता बनाने में उनके निडर और अथक प्रयासों के लिए सलाम करते हैं, जिन्होंने पुलिस तंत्र के कामकाज के तरीके में सुधार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की थी.