राष्ट्रीय शिक्षा नीति में ‘मल्टीपल एंट्री-एग्जिट’ भारतीय शिक्षा प्रणाली के लिए ठीक नहीं: संसदीय समिति

भाजपा सांसद विवेक ठाकुर की अध्यक्षता वाली 'शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति' ने हाल ही में संपन्न हुए विशेष सत्र के दौरान सदन में पेश की गई रिपोर्ट में कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत 'मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एग्जिट' के विकल्प को लागू करने से पहले हितधारकों के साथ चर्चा की जानी चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

भाजपा सांसद विवेक ठाकुर की अध्यक्षता वाली ‘शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति’ ने हाल ही में संपन्न हुए विशेष सत्र के दौरान सदन में पेश की गई रिपोर्ट में कहा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत ‘मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एग्जिट’ के विकल्प को लागू करने से पहले हितधारकों के साथ चर्चा की जानी चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: एक संसदीय समिति ने केंद्र सरकार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) के तहत मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एग्जिट (एमईएमई) के विकल्प को लागू करने से पहले हितधारकों के साथ चर्चा करने की सलाह दी है.

रिपोर्ट के अनुसार, भाजपा सांसद विवेक ठाकुर की अध्यक्षता वाली ‘शिक्षा पर संसदीय स्थायी समिति’ ने यह सिफारिश छात्रों और शिक्षकों द्वारा इस प्रावधान पर सरकार की भारी आलोचना के बाद की है.

समिति ने ‘उच्च शिक्षा में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 का कार्यान्वयन’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में कहा कि भारतीय संस्थानों को इस प्रणाली को लागू करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है.

द हिंदू के मुताबिक, इस रिपोर्ट को हाल ही में संपन्न हुए विशेष सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया था.

एनईपी में उन छात्रों के लिए स्कूल स्तर पर मल्टीपल एंट्री और मल्टीपल एग्जिट विकल्प है जो या तो व्यावसायिक प्रशिक्षण के लिए जाना चाहते हैं या जिन्हें किसी कारण से स्कूल बीच में छोड़ना पड़ता है.

रिपोर्ट के मुताबिक, समिति ने कहा कि एमईएमई को पश्चिम में सफलतापूर्वक लागू किया गया है, लेकिन भारत में इसे लागू करना मुश्किल होगा.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगर संस्थान एमईएमई की अनुमति देते हैं, तो संस्थानों के लिए यह अनुमान लगाना बहुत मुश्किल होगा कि कितने छात्र बीच में ही बाहर हो जाएंगे और कितने शामिल होंगे. चूंकि संस्थानों को अंदर और बाहर होने संबंधी जानकारी का पता नहीं होता, इसलिए यह निश्चित रूप से छात्र-शिक्षक अनुपात को बिगाड़ देगा.’

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उच्च शिक्षण संस्थानों का असमान भौगोलिक वितरण कई क्षेत्रों, ज्यादातर ग्रामीण इलाकों में एमईएमई के प्रबंधन में बाधाएं पैदा करेगा.

रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘संस्थानों ने इस समस्या के बारे में और जब यह उनके यहां लागू होगी तो वे इसे कैसे हल करेंगे, बहुत स्पष्ट तौर पर विचार नहीं किया है.’

यह मानते हुए कि एमईएमई छात्रों को पढ़ाई में अधिक लचीलापन और विकल्प की पेशकश करेगा, समिति ने केंद्र सरकार से व्यापक दिशानिर्देशों और एमईएमई विकल्पों के लिए एक अच्छी तरह से परिभाषित ढांचा विकसित करने के लिए कहा.

एनईपी के कार्यान्वयन में समस्याओं को समझने के लिए और इन चुनौतियों से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है, समिति ने इस पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को विभिन्न शिक्षण संस्थानों और उनके नियामक निकायों के साथ चर्चा करने के लिए कहा.

इस बीच, छात्रों और शिक्षकों ने प्रस्तावित निकासी और प्रवेश प्रणाली के बारे में आशंका जताई है. स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के महासचिव मयुख बिस्वास ने कहा, ‘यह एक व्यक्ति की डिग्री की कीमत को कम कर देगा और यह नौकरी बाजार के लिए सस्ते श्रम का उत्पादन करने का एक तरीका है. हम चाहते हैं कि मौजूदा प्रणाली जारी रहे.’