मुज़फ़्फ़रनगर स्कूल केस: सुप्रीम कोर्ट की सरकार को फटकार, कहा- गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने में विफल

मुज़फ़्फ़रनगर के निजी स्कूल में मुस्लिम छात्र को साथी छात्रों द्वारा पीटने के लिए कहने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए और सरकार को आरोपी अध्यापिका के ख़िलाफ़ दर्ज मामले की निगरानी के लिए फ़ौरन एक आईपीएस अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया है.

(फोटो: द वायर)

मुज़फ़्फ़रनगर के निजी स्कूल में मुस्लिम छात्र को साथी छात्रों द्वारा पीटने के लिए कहने के मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस की कार्रवाई पर भी सवाल उठाए और सरकार को आरोपी अध्यापिका के ख़िलाफ़ दर्ज मामले की निगरानी के लिए फ़ौरन एक आईपीएस अधिकारी नियुक्त करने का निर्देश दिया है.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मुजफ्फरनगर स्कूल के मुस्लिम छात्र को थप्पड़ मारने के मामले से पुलिस के निपटने के तरीके पर अंसतोष व्यक्त किया. बता दें कि यह मामला एक प्राइमरी स्कूल की अध्यापिका द्वारा एक मुस्लिम छात्र में अन्य छात्रों से थप्पड़ लगवाने का है.

लाइव लॉ के मुताबिक, एफआईआर दर्ज करने में देरी और सांप्रदायिक आरोपों को नजरअंदाज करने पर सवाल उठाते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि मामले की जांच आईपीएस-रैंक के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा की जाए.

अदालत ने आगे पाया कि यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनिवार्य अनुपालन में प्रथमदृष्टया राज्य की विफलता है. यह अधिनियम छात्रों के शारीरिक एवं मानसिक उत्पीड़न और धर्म एवं जाति के आधार पर उनके साथ भेदभाव को रोकता है.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक पीठ ने कहा, ‘जब तक छात्रों में संवैधानिक मूल्यों के महत्व को बढ़ाने का प्रयास नहीं किया जाता है, तब तक वह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती है. यदि किसी छात्र को केवल उसके धर्म के आधार पर दंडित किया जाता है, तो वह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं हो सकती है. इस प्रकार, यह शिक्षा के अधिकार अधिनियम और उसके तहत बने नियमों के अनिवार्य अनुपालन में प्रथमदृष्टया राज्य की विफलता है.’

अदालत ने आदेश में कहा, ‘यदि आरोप सही है, तो यह एक शिक्षक द्वारा दी गई सबसे बुरी तरह की शारीरिक सजा हो सकती है, क्योंकि शिक्षक ने अन्य छात्रों को पीड़ित को पीटने का निर्देश दिया.’

अदालत ने कहा कि हालांकि छात्र के पिता द्वारा संज्ञानात्मक अपराधों से संबंधित शिकायत दर्ज की गई थी, लेकिन तुरंत कोई एफआईआर दर्ज नहीं की गई. केवल एक गैर-संज्ञानात्मक रिपोर्ट शुरू में दायर की गई थी. शुरुआत में केवल गैर-संज्ञानात्मक अपराध में रिपोर्ट दर्ज की गई थी और घटना के लगभग दो सप्ताह बाद 6 सितंबर को ‘एक लंबी देरी के बाद’ एफआईआर दर्ज की गई थी.

हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, अदालत ने अपने आदेश में कहा कि यह न केवल आपराधिक कानून को स्थापित करने में विफलता का मामला है, बल्कि अनुच्छेद 21ए  (आरटीई) के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन भी है.

अदालत सामाजिक कार्यकर्ता तुषार गांधी द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने घटना को लेकर राज्य पर निष्क्रियता का आरोप लगाया था. जस्टिस अभय एस. ओका और जुस्ती पंकज मित्तल ने कहा कि एफआईआर में सांप्रदायिक आधार पर निशाना बनाए जाने के पीड़ित के पिता द्वारा लगाए गए आरोपों को छोड़ दिया गया.

जस्टिस ओका ने मौखिक तौर पर कहा, ‘हमें एफआईआर दर्ज किए जाने के तरीके पर घोर आपत्ति है. पिता की पहली शिकायत में, उन्होंने आरोप लगाया था कि शिक्षक एक विशेष धर्म के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियां कर रही थीं. तथाकथित गैर-संज्ञानात्मक रिपोर्ट में वही आरोप हैं. एफआईआर में ये आरोप नहीं हैं.’

जज ने एफआईआर में वीडियो ट्रांस्क्रिप्ट की अनुपस्थिति के बारे में भी पूछा. जस्टिस ओका ने आगे कहा कि आरोप अगर सच हैं तो इससे ‘राज्य के विवेक को ठेस’ पहुंचनी चाहिए.

लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस ओका ने कहा, ‘यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है. शिक्षक छात्रों को एक सहपाठी को पीटने के लिए कह रहे हैं क्योंकि वे एक विशेष समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. क्या यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा है? राज्य को बच्चे की शिक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए.’

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्तुत हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि राज्य किसी को भी नहीं बचा रहा है, लेकिन साथ ही कहा कि ‘सांप्रदायिक कोण को अनुपात से अधिक उछाला जा रहा है.’ लेकिन पीठ ने घटना के वीडियो की ट्रांस्क्रिप्ट का हवाला देते हुए इससे असहमति जताई और कहा कि अगर यह घटना सही है तो किस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जा रही है?

मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को निर्धारित करते हुए पीठ ने राज्य सरकार को आरटीई अधिनियम और इसके नियमों के कार्यान्वयन पर एक अनुपालन रिपोर्ट पेश करने को कहा. साथ ही निर्देश दिया, ‘राज्य पीड़ित बच्चे को बेहतर शिक्षा प्रदान करेगा और विशेषज्ञ बाल मनोवैज्ञानिकों के माध्यम से घटना में शामिल सभी बच्चों की काउंसलिंग करेगा.’

मालूम हो कि सोशल मीडिया पर सामने आए इस घटना से संबंधित एक वीडियो में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के एक निजी स्कूल की शिक्षक तृप्ता त्यागी अपनी क्लास के बच्चों को एक-एक करके एक आठ वर्षीय मुस्लिम छात्र को थप्पड़ मारने का निर्देश देते नजर आ रही थीं.

40 सेकेंड के इस वीडियो में बच्चे पीड़ित छात्र को मारते हैं और शिक्षक उन्हें प्रोत्साहित करती दिखती हैं. वीडियो में बच्चा रो रहा है और शिक्षक के कहने पर साथी छात्र उसे थप्पड़ मार रहे हैं.

यह घटना एक निजी स्कूल नेहा पब्लिक स्कूल में हुई थी, जो मुजफ्फरनगर के मंसूरपुर थाना क्षेत्र के पास खुब्बापुर गांव में स्थित है.

शिक्षक तृप्ता त्यागी के खिलाफ बच्चे के माता-पिता द्वारा की गई शिकायत पर एफआईआर दर्ज की गई थी. पहले उन्होंने कहा था कि वे इस मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं.

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