मणिपुर: जनजातीय संगठनों ने आफस्पा को पहाड़ी ज़िलों तक सीमित रखने पर कड़ी आपत्ति जताई

बीते 27 सितंबर को मणिपुर सरकार ने पहाड़ी इलाकों में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को छह महीने का विस्तार दे दिया था, जबकि इंफाल घाटी के 19 थानों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. कुकी, ज़ोमी और नगा जनजातियों के शीर्ष निकायों ने इस क़दम को ‘दमनकारी’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ क़रार दिया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: एक्स/@manipur_police)

बीते 27 सितंबर को मणिपुर सरकार ने पहाड़ी इलाकों में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) को छह महीने का विस्तार दे दिया था, जबकि इंफाल घाटी के 19 थानों को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. कुकी, ज़ोमी और नगा जनजातियों के शीर्ष निकायों ने इस क़दम को ‘दमनकारी’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ क़रार दिया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: ट्विटर)

नई दिल्ली: मणिपुर में कुकी, ज़ोमी और नगा जनजातियों के शीर्ष निकायों ने बीते गुरुवार (28 सितंबर) को मणिपुर सरकार की उस अधिसूचना पर कड़ी आपत्ति जताई, जिसमें राज्य के केवल पहाड़ी जिलों में सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम (आफस्पा) की अवधि को छह महीने के लिए बढ़ाया गया है.

बीते 27 सितंबर को मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में आफस्पा को छह महीने का विस्तार दिया गया, जबकि इंफाल घाटी के 19 थानों और असम की सीमा से सटे एक इलाके को इस कानून के दायरे से बाहर रखा गया है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, ज़ोमी काउंसिल (मणिपुर में ज़ोमी जनजातियों का शीर्ष निकाय) की संचालन समिति ने कहा कि उसने गुरुवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक ज्ञापन दिया है, जिसमें मणिपुर सरकार की ‘पक्षपातपूर्ण मानसिकता’ और ‘भेदभावपूर्ण नीतियों’ को उजागर किया गया है.

इसके अलावा कुकी इंपी (कुकी जनजातियों का शीर्ष निकाय) और यूनाइटेड नगा काउंसिल (नगा जनजातियों का शीर्ष निकाय) ने भी घाटी क्षेत्रों को आफस्पा से छूट देने वाली अधिसूचना पर सवाल उठाया. उन्होंने इस कदम को ‘दमनकारी’ और ‘पक्षपातपूर्ण’ करार दिया.

रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय सेना ने घाटी क्षेत्रों में आफस्पा के विस्तार की सिफारिश करते हुए कहा था कि इसके अभाव में विद्रोही समूहों के खिलाफ अभियानों में बाधा आ रही है, जिन्होंने कई वर्षों की शांति के बाद अभी चल रहे जातीय संघर्ष के दौरान फिर से पैर जमा लिया है. ये अलगाववादी समूह ज्यादातर म्यांमार से संचालित होते हैं.

राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने दिसंबर 2022 में की गई अपनी नवीनतम समीक्षा में सिफारिश की थी कि पहाड़ी क्षेत्रों में आफस्पा लगाने की समीक्षा की जानी चाहिए, क्योंकि क्षेत्र शांतिपूर्ण हो गए हैं और बताया था कि घाटी क्षेत्र के 15 पुलिस जिलों में अधिनियम वापस ले लिया गया है.

गुरुवार को ज़ोमी काउंसिल संचालन समिति ने कहा कि उसने गृह मंत्री अमित शाह को समझाया कि ‘कैसे अधिसूचना से मेईतेई क्षेत्रों और मेईतेई-प्रभुत्व वाले इलाकों को बाहर करना एक बार फिर से राज्य की अनुसूचित जनजातियों के खिलाफ मणिपुर सरकार के गहरे भेदभाव का उदाहरण है.’

इसमें कहा गया है, ‘अधिसूचना में नए छूट वाले पुलिस जिले – वे क्षेत्र हैं जहां अरामबाई तेंग्गोल और मेईतेई लीपुन जैसे मेईतेई सशस्त्र चरमपंथियों ने अपने अड्डे स्थापित करने के लिए प्रतिबंधित मेईतेई विद्रोही समूहों के साथ संयुक्त सेना बनाई है.’

कुकी इंपी मणिपुर के सचिव एच. गंगटे ने कहा, ‘इस मामले की सच्चाई यह है कि घाटी क्षेत्र निस्संदेह मणिपुर में सबसे अशांत क्षेत्र है, जहां कई विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए हैं, जिसमें सुरक्षा बलों को उग्र भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले दागने पड़े और बल प्रयोग करना पड़ा, जबकि जनजातीय क्षेत्र (पहाड़ी) अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण हैं और यहां पिछले कुछ महीनों में किसी भी प्रकार के हंगामे या सामाजिक अशांति की कोई रिपोर्ट नहीं है.’

यूनाइटेड नगा काउंसिल के महासचिव वेरेइयो शतसांग ने तर्क दिया कि पहाड़ी क्षेत्र अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण रहे हैं और एनएससीएन (आई-एम) पहले से ही सरकार के साथ शांति वार्ता कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘घाटी क्षेत्र में कोई आफस्पा नहीं है. हम वहां आफस्पा नहीं चाहते, लेकिन यह (पहाड़ी जिलों में इसका विस्तार) बहुत पक्षपातपूर्ण है.’

उल्लेखनीय है कि आफस्पा ‘अशांत क्षेत्रों’ में तैनात सेना और केंद्रीय बलों को कानून के खिलाफ काम करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने, गिरफ्तारी और बिना वारंट के किसी भी परिसर की तलाशी लेने का अधिकार देता है. साथ ही केंद्र की मंजूरी के बिना अभियोजन और कानूनी मुकदमों से सुरक्षा बलों को सुरक्षा भी प्रदान करता है.

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