टीबी के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवाओं की कमी से संबंधित ख़बरों को लेकर दुनियाभर के 113 नागरिक समाज संगठनों और 776 व्यक्तियों ने पत्र लिखकर भारत के प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है.
नई दिल्ली: दुनियाभर के 113 नागरिक समाज संगठनों और 776 व्यक्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया को पत्र लिखकर टीबी रोगियों के लिए दवाओं की कमी के मुद्दे पर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है.
भारत में दवा-प्रतिरोधी टीबी रोगी (ऐसे टीबी रोगी जिन पर फर्स्ट लाइन की टीबी दवाएं काम नहीं करती हैं और उन्हें इससे बेहतर इलाज सुविधा की जरूरत होती है) कई महीनों से दवा की कमी का सामना कर रहे हैं.
द वायर ने 22 सितंबर 2023 को प्रकाशित एक लेख में टीबी रोगियों के परिजनों और छह राज्यों में बीमारी के प्रबंधन का काम कर रहे लोगों का हवाला देते हुए बताया था कि दवाओं की भारी कमी ने दवा-प्रतिरोधी टीबी से पीड़ित रोगियों को बहुत प्रभावित किया है. इस रिपोर्ट में टीबी रोगियों के परिजनों, कुछ नागरिक समाज समूहों, राज्य टीबी अधिकारियों और डब्ल्यूएचओ द्वारा भी चिंता जताई गई थी. हालांकि, भारत सरकार ने रिपोर्ट के प्रकाशन के दो दिन बाद ऐसी किसी भी समस्या के होने से इनकार किया था.
दवाइयों की इस कमी के बीच भारत के स्वास्थ्य मंत्री टीबी पर संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक में भी शामिल नहीं हुए थे. यह बैठक 22 सितंबर को न्यूयॉर्क में हुई थी.
अब, इन टीबी को लेकर काम करने वाले समूहों ने न्यूयॉर्क से पत्र लिखा है. समूह और पत्र के हस्ताक्षरकर्ताओं में शामिल लोग व्यक्ति केन्या, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जाम्बिया, मलावी, युगांडा, कनाडा, घाना, कैमरून, इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका, भारत और कई अन्य देशों से हैं.
भारत में दुनियाभर में सर्वाधिक टीबी मरीज हैं और इसलिए रोग की व्यापकता, या भारत में रोग के उपचार में कोई बाधा टीबी के वैश्विक उन्मूलन में एक महत्वपूर्ण कारक होगी. डब्ल्यूएचओ का लक्ष्य 2030 तक विश्वस्तर पर टीबी को खत्म करना है वहीं, भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के लिए 2025 का लक्ष्य रखा है.
प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री को भेजे गए पत्र में नागरिक समाज समूहों और हस्ताक्षरकर्ताओं ने कहा है, ‘दवा प्रतिरोध को रोकने के लिए पहला कदम दवाओं की निर्बाध आपूर्ति है. मौजूदा स्टॉकआउट लोगों को इलाज के बिना रहने के लिए मजबूर कर रहा है.’
पत्र में एक मरीज के परिजन का हवाला देते हुए बताया गया है, ‘मुंबई में एक निजी कारपूल कंपनी में काम करने वाले ड्राइवर रज्जब ने हाल ही में बताया कि ‘न तो सरकार दवाएं उपलब्ध करा पा रही है, न ही दवा मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध हैं.’ उनका सवाल है, ‘अगर मेरी पत्नी मर जाती है, तो कौन देगा इसके लिए जिम्मेदार होगा?’ जो लोग प्राइवेट तौर पर दवाएं ढूंढ और खरीद सकते हैं, वे अपनी जेब से अतिरिक्त खर्च कर रहे हैं और उनके परिवारों पर खासा वित्तीय बोझ पड़ रहा है.’
पत्र में आगे लिखा है, ‘जून 2023 से, देशभर के कई डॉट्स और डॉट्स-प्लस केंद्रों में टीबी और एमडीआर-टीबी के इलाज के लिए इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं के स्टॉक खत्म होने की नियमित ख़बरें आ रही हैं. लगातार कमी ने पहली और दूसरी पंक्ति की टीबी दवाओं को प्रभावित किया है, जिसमें बाल चिकित्सा फॉर्मूलेशन भी शामिल हैं.’
आगे कहा गया है, ‘दुनियाभर के टीबी कार्यकर्ताओं का एक सुचिंतित समूह होने के नाते हम भारत सरकार से आह्वान करते हैं कि स्टॉकआउट और कमी का सामना करने वाले डॉट्स और डॉट्स प्लस केंद्रों पर स्टॉक की आपातकालीन खरीद और पुनः आवंटन करें और दवा खरीद में तेजी लाएं. इन्वेंट्री प्रबंधन में सुधार करें और आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करें. साथ ही, आपूर्ति श्रृंखला प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करें.’
पत्र के अंत में जोड़ा गया है कि वैश्विक और स्थानीय टीबी समुदाय स्थायी दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए सरकार और संबंधित हितधारकों के साथ सहयोग करने के लिए इच्छुक है.
(पूरा पत्र और हस्ताक्षरकर्ताओं के नाम पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)