ईडी को कामकाज में पारदर्शी और निष्पक्ष होना चाहिए, प्रतिशोधी नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को किसी आरोपी की गिरफ़्तारी के लिखित आधार की एक प्रति उसे बिना किसी अपवाद के प्रदान की जानी चाहिए. मामले में एजेंसी के कामकाज की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा कि ईडी के आचरण में ‘मनमानेपन की बू आ रही है’.

(फोटो साभार: विकिपीडिया)

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह भी कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को किसी आरोपी की गिरफ़्तारी के लिखित आधार की एक प्रति उसे बिना किसी अपवाद के प्रदान की जानी चाहिए. मामले में एजेंसी के कामकाज की आलोचना करते हुए अदालत ने कहा कि ईडी के आचरण में ‘मनमानेपन की बू आ रही है’.

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते मंगलवार (3 अक्टूबर) को कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को अपने कामकाज में पारदर्शी होना चाहिए और आरोपी को उसकी गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में प्रस्तुत करना चाहिए.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने कहा, ‘हम मानते हैं कि अब से यह आवश्यक होगा कि गिरफ्तारी के लिखित आधार की एक प्रति गिरफ्तार व्यक्ति को बिना किसी अपवाद के प्रदान की जाए.’

शीर्ष अदालत ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में रियल एस्टेट समूह एम3एम (M3M) के निदेशकों पंकज बंसल और बसंत बंसल की गिरफ्तारी को भी रद्द कर उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दिया. न्यायाधीशों ने कहा कि ईडी के आचरण में ‘मनमानेपन की बू आ रही है’.

अदालत ने इस मामले में आरोपियों को गिरफ्तारी के आधार को लिखित रूप में नहीं देने और इसके बजाय उन्हें पढ़कर सुनाने के दृष्टिकोण के लिए एजेंसी की आलोचना की.

लाइव लॉ के अनुसार, अदालत ने कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 22(1) और मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 19(1) के जनादेश को पूरा नहीं करता है. पीठ ने कहा,

‘घटनाओं का यह क्रम बहुत कुछ कहता है और ईडी की कार्यशैली को नकारात्मक रूप से नहीं तो खराब ढंग से प्रतिबिंबित करता है.’

पीठ ने कहा कि ईडी को ‘पारदर्शी होना चाहिए और कार्रवाई में निष्पक्षता के मानकों के अनुरूप होना चाहिए. इसे अत्यंत ईमानदारी के साथ कार्य करते हुए देखा जाना चाहिए’ और इसके प्रतिशोधी होने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. न्यायाधीशों ने कहा कि केवल रिमांड का आदेश पारित करना गिरफ्तारी को वैध बनाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं है.

अदालत ने आगे कहा,

‘एक प्रमुख जांच एजेंसी होने के नाते जिस पर हमारे देश में मनी लॉन्ड्रिंग जैसे आर्थिक अपराध को रोकने की महती जिम्मेदारी है, ऐसी प्रक्रिया के दौरान ईडी की प्रत्येक कार्रवाई पारदर्शी और कार्रवाई में निष्पक्षता के मानकों के अनुरूप होने की उम्मीद की जाती है. कड़े अधिनियम के तहत असाधारण शक्तियों से संपन्न ईडी से अपने आचरण में प्रतिशोधी होने की उम्मीद नहीं की जाती है और उसे अत्यंत ईमानदारी और उच्चतम स्तर की उदासीनता और निष्पक्षता के साथ कार्य करते हुए देखा जाना चाहिए.’

मालूम हो कि नरेंद्र मोदी सरकार के तहत ईडी को मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) में संशोधन के माध्यम से असाधारण शक्तियां प्रदान की गई हैं. आलोचकों का कहना है कि एजेंसी को भाजपा के राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए शक्ति का दुरुपयोग करने की अनुमति मिलती है.

किसी भी अन्य जांच एजेंसी के विपरीत ईडी को किसी व्यक्ति को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि वे उन्हें संदिग्ध मानते हैं या गवाह. अपराध में अपनी संलिप्तता स्वीकार करने के विरुद्ध भी कोई सुरक्षा नहीं है.

ईडी के पास मजिस्ट्रियल निरीक्षण भी नहीं है और एजेंसी को आरोपी व्यक्ति को एफआईआर के बराबर इन्फोर्समेंट केस इनफॉरमेशन रिपोर्ट (ईसीआईआर) की एक प्रति भी देने की आवश्यकता नहीं है.

इस साल की शुरुआत में 14 विपक्षी दलों ने केंद्र द्वारा सीबीआई-ईडी के दुरुपयोग के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी.

उन्होंने कहा था कि 2014 के बाद से ईडी द्वारा दर्ज मामलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है और उनमें से अधिकांश मोदी शासन के आलोचकों और विरोधियों के खिलाफ हैं. हालांकि शीर्ष अदालत ने यह याचिका खारिज कर दी थी.

शीर्ष अदालत ने ईडी की कार्यप्रणाली की आलोचना की

शीर्ष अदालत ने एम3एम निदेशकों के मामले में ईडी की कार्यप्रणाली की आलोचना करते हुए कहा कि एजेंसी ने पहले ईसीआईआर (एफआईआर जैसा) में दोनों को अग्रिम जमानत मिलने के तुरंत बाद दूसरी ईसीआईआर दर्ज की थी.

अदालत ने कहा, ‘पहली ईसीआईआर के संबंध में अंतरिम सुरक्षा प्राप्त करने के तुरंत बाद दूसरी ईसीआईआर दर्ज करके अपीलकर्ताओं (कंपनी निदेशकों) के खिलाफ कार्यवाही में ईडी का आचरण सराहनीय नहीं है, इसमें शक्ति के मनमाने ढंग से प्रयोग की बू आती है.’

अदालत ने आगे कहा, ‘अपीलकर्ताओं को अंतरिम सुरक्षा प्रदान करने पर दूसरी ईसीआईआर दर्ज करके और उस पर कार्रवाई करते हुए एक दिन की अवधि के भीतर अपीलकर्ताओं को गिरफ्तार करने का इसका (ईडी) त्वरित जवाबी कदम, खुद ही इसकी तस्दीक करता है और हमें उस पहलू पर और अधिक विस्तार करने की आवश्यकता नहीं है.’

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