बीते दिनों संजय गांधी अस्पताल में एक महिला की सर्जरी के बाद मौत को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने अस्पताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया था. अस्पताल का संचालन कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है.
नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने बुधवार को अमेठी में संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है.
द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस मनीष कुमार की खंडपीठ ने कहा कि अस्पताल के खिलाफ जांच जारी रहेगी. पीठ ने राज्य सरकार से जवाबी हलफनामा दाखिल करने को भी कहा है.
22 वर्षीय एक महिला की सर्जरी के बाद मौत को लेकर बीते 18 सितंबर को उत्तर प्रदेश सरकार ने संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया था. अस्पताल का संचालन कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अस्पताल की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप नारायण माथुर ने बताया, ‘(उच्च) न्यायालय ने अस्पताल के पंजीकरण को निलंबित करने के आदेश पर रोक लगा दी है. अदालत ने यह आधार दिया है कि अस्पतालों में लापरवाही हो सकती है, लेकिन अस्पताल के कामकाज को बंद करने से ज्यादा सार्वजनिक हित है. अदालत ने कहा कि केवल इसलिए कि अस्पताल के खिलाफ लापरवाही का आरोप है, अस्पताल को बंद करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि इससे और अधिक लोगों को परेशानी होगी.’
माथुर ने कहा कि उन्होंने तर्क दिया कि सीएमओ ने अधिकारक्षेत्र न होने के बावजूद आदेश पारित किया.
सरकारी वकील राहुल शुक्ला ने बताया कि हाईकोर्ट ने मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने के लिए राज्य सरकार को समय दे दिया है.’
बताया गया है कि मामले को देखने वाली एक तीन सदस्यीय जांच टीम ने अपनी रिपोर्ट में इलाज में लापरवाही पाई थी और कहा था कि विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा मरीज की जान बचाई जा सकती थी.
द हिंदू के मुताबिक, इस बीच हाईकोर्ट के आदेश के बाद अस्पताल कर्मचारियों ने नौ दिवसीय विरोध प्रदर्शन वापस ले लिया.
बीते महीने एक सर्जरी के बाद 22 वर्षीय मरीज दिव्या शुक्ला की मौत की जांच शुरू होने के बाद स्वास्थ्य विभाग ने 18 सितंबर को अस्पताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया था और ओपीडी और आपातकालीन सेवाएं बंद कर दी थीं. इसके बाद पिछले 27 सितंबर को अस्पताल के 400 से अधिक कर्मचारी इसके लाइसेंस के निलंबन के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे.
अस्पताल के डॉक्टरों, पैरामेडिक स्टाफ और अनुबंध कर्मचारियों के संयुक्त मंच के अध्यक्ष संजय सिंह ने कहा, ‘लगभग 800-900 मरीज प्रतिदिन 100 रुपये के मामूली शुल्क पर ओपीडी सुविधाओं का लाभ उठाते हैं.’
उन्होंने कहा कि अदालत के आदेश के बाद फोरम ने लाइसेंस के निलंबन के खिलाफ अपना नौ दिवसीय विरोध प्रदर्शन बंद कर दिया.
दूसरी तरफ, अस्पताल बंद होने से आम लोगों और मरीजों के अलावा, वे भी प्रभावित हैं, जिनके आजीविका के साधन अस्पताल से जुड़े हैं.
ऑटोरिक्शा चालक बिमलेश कुमारी मरीजों को अस्पताल से पास के बस स्टैंड तक पहुंचाती हैं. वे कहती हैं, ‘हम जांच चाहते हैं और चाहते हैं कि दोषियों को सजा मिले, लेकिन यहां कामकाज बंद करने का मतलब 400 से अधिक कर्मचारियों और जीने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से अस्पताल पर निर्भर सैकड़ों अन्य लोगों की आजीविका छीनना है.’
44 वर्षीय संत कुमार 2004 से अस्पताल के बाहर चाय की दुकान चलाते हैं. उनका कहना है, ‘पिछले दो हफ्तों से मेरा काम ठप हो गया था. मैं प्रार्थना करता हूं कि अस्पताल जल्द ही फिर से शुरू हो. हमारी चिंता अभी ख़त्म नहीं हुई है.’
इस बीच, भाजपा की अमेठी जिला इकाई ने मांग की है कि संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट का प्रबंधन क्रमशः सुल्तानपुर और पीलीभीत से भाजपा सांसद मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी को सौंप दिया जाए या राज्य सरकार द्वारा इसे अपने हाथ में ले लिया जाए.
पार्टी जिला अध्यक्ष राम प्रसाद मिश्रा ने द हिंदू से कहा, ‘सरकार ने 64 बीघे से अधिक भूमि पट्टे पर दी थी, लेकिन ट्रस्ट पट्टे के समझौतों का पालन करने में विफल रहा. इसलिए, सरकार को जमीन वापस ले लेनी चाहिए और इसे मेनका गांधी और वरुण गांधी द्वारा चलाया जाना चाहिए, जो दिवंगत संजय गांधी के स्वाभाविक उत्तराधिकारी हैं.’