हाईकोर्ट द्वारा दोषसिद्धि पर रोक से इनकार के बाद लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फ़ैज़ल अयोग्य क़रार

यह दूसरी बार है जब लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फ़ैज़ल अयोग्य घोषित हुए हैं. इससे पहले जनवरी में हत्या के प्रयास के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद लोकसभा सचिवालय ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था. केरल हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा फैसले पर रोक के बाद उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई थी.

लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल. (फोटो साभार: फेसबुक/Mohammed Faizal Padippura)

यह दूसरी बार है जब लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फ़ैज़ल अयोग्य घोषित हुए हैं. इससे पहले जनवरी में हत्या के प्रयास के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद लोकसभा सचिवालय ने उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया था. केरल हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा फैसले पर रोक के बाद उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई थी.

लक्षद्वीप के सांसद मोहम्मद फैजल. (फोटो साभार: फेसबुक/Mohammed Faizal Padippura)

नई दिल्ली: हत्या के प्रयास के मामले में उनकी सजा को निलंबित करने से केरल हाईकोर्ट के मंगलवार को इनकार के बाद मोहम्मद फैजल को बुधवार (4 अक्टूबर) को लक्षद्वीप से लोकसभा सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया.

लोकसभा सचिवालय बुलेटिन में कहा गया है, ‘माननीय केरल उच्च न्यायालय के दिनांक 03.10.2023 के आदेश के मद्देनजर केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप के लक्षद्वीप संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले लोकसभा सदस्य श्री मोहम्मद फैज़ल पीपी को दोषी ठहराए जाने की तारीख यानी 11 जनवरी, 2023 से लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया जाता है.’

यह दूसरी बार है जब राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) नेता को अयोग्य घोषित किया गया है. इससे पहले 13 जनवरी को सचिवालय ने लोकसभा की उनकी सदस्यता को अयोग्य घोषित कर दिया था.

मंगलवार को उच्च न्यायालय ने उनकी दोषसिद्धि को रद्द करने से इनकार कर दिया लेकिन सजा को निलंबित कर दिया.

लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस एन. नागरेश ने कहा कि चुनाव प्रक्रिया का अपराधीकरण लोकतंत्र के लिए गंभीर चिंता का विषय है और यदि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों को सक्षम अदालत द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद भी निर्वाचित प्रतिनिधियों के रूप में बने रहने की अनुमति दी जाती है, तो इससे बड़े पैमाने पर जनता में केवल गलत संकेत जाएगा.

न्यायाधीश ने कहा कि किसी दोषसिद्धि को दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 389 के तहत तभी निलंबित किया जा सकता है, जब अदालत संतुष्ट हो कि मामला निरर्थक है. उन्होंने कहा कि दोषसिद्धि को तब निलंबित किया जा सकता है यदि अदालत संतुष्ट हो कि दोषी व्यक्ति ‘किसी निश्चित अयोग्यता या ऐसे नुकसान से पीड़ित नहीं है जिसे पूर्ववत नहीं किया जा सकता है’, वो भी केवल दुर्लभ मामलों और विशेष परिस्थितियों में.

उच्च न्यायालय ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि को निलंबित करने के सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले को आधार बनाया, जिसमें कहा गया था कि दोषसिद्धि को ‘केवल परिणामों को देखकर निलंबित नहीं किया जा सकता’ बल्कि सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार करने के बाद निलंबित किया जा सकता है.

ज्ञात हो कि इस साल 11 जनवरी को लक्षद्वीप की राजधानी कवारत्ती की एक सत्र अदालत ने 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान दिवंगत कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री पीएम सईद के दामाद मोहम्मद सालिह की हत्या की कोशिश के मामले में मोहम्मद फैजल को 10 साल कैद की सजा और एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसके कारण वह लोकसभा से स्वत: अयोग्य हो गए.

कुछ हफ़्ते बाद केरल उच्च न्यायालय की एक अन्य एकल पीठ ने उनकी दोषसिद्धि को निलंबित कर दिया. अदालत के आदेश का जोर उपचुनाव के कारण होने वाले सरकारी खजाने के खर्च पर था. हालांकि लोकसभा सचिवालय ने उनकी सदस्यता बहाल नहीं की. उसके बाद फैजल ने सदस्यता बहाल करने में देरी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था, मार्च में सुनवाई से कुछ घंटे पहले उनकी सदस्यता बहाल कर दी गई.

अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और हाईकोर्ट से मामले पर नए सिरे से विचार करने को कहा. इसमें कहा गया है कि यदि उच्च न्यायालय के तर्क को कायम रहने दिया गया, तो उपचुनावों के वित्तीय बोझ से बचने के लिए प्रत्येक निर्वाचित नेता की दोषसिद्धि और सजा को निलंबित करना होगा.