द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए सीबीआई और ईडी से पूछा है कि क्या उनके पास कथित मनी लॉन्ड्रिंग गतिविधि की आय को आम आदमी पार्टी के नेता से जोड़ने का कोई सबूत है. सिसोदिया दिल्ली एक्साइज नीति मामले में कथित संलिप्तता को लेकर 26 फरवरी से न्यायिक हिरासत में हैं. डेक्कन हेराल्ड के अनुसार, बुधवार को अदालत ने पूछा कि अगर आम आदमी पार्टी को किसी घोटाले से फायदा हुआ तो वह आरोपी क्यों नहीं? साथ ही, उन्होंने यह सवाल भी किया कि वे सिसोदिया के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप कैसे स्थापित करेंगे. गुरुवार की सुनवाई में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबूतों की शृंखला पूरी तरह से स्थापित नहीं हुई है. इसने यह भी पूछा कि मामले के एक अन्य आरोपी कारोबारी दिनेश अरोड़ा के बयान के अलावा सिसोदिया के खिलाफ सबूत कहां हैं. अरोड़ा इस मामले में आरोपी से सरकारी गवाह बने हैं और उन्हें हाल ही में जमानत मिली है.
महाराष्ट्र के नांदेड़ के डॉ. शंकरराव चव्हाण सरकारी मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में एक दिन में चौबीस मरीज़ों की मौत होने के बाद अस्पताल के डीन और एक बाल रोग विशेषज्ञ पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज किया गया है. द हिंदू के अनुसार, इस अवधि में अपनी नवजात बेटी और पत्नी को खोने वाले एक व्यक्ति की शिकायत पर यह केस दर्ज किया गया है. एएसपी, नांदेड़ (ग्रामीण) ने अख़बार को बताया कि शिकायत में चिकित्सकीय लापरवाही का कोई आरोप नहीं लगाया गया है. आरोप व्यक्तियों और प्रशासनिक लापरवाही के खिलाफ था. घटना की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है. एएसपी ने कहा कि एफआईआर को कमेटी के पास भेजा जाएगा और उसकी अनुशंसा के आधार पर कार्रवाई की होगी.
नॉर्वे के लेखक यून फ़ोसा साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा की गई है. पुरस्कार देने वाली स्वीडिश अकादमी ने कहा कि फोसा को ‘अनकहे को आवाज़ देने वाले उनके इनोवेटिव नाटकों और गद्य के लिए’ यह सम्मान दिया गया है. फ़ोसा नॉर्वेजियन नाइनोर्स्क में लिखते हैं, जो नॉर्वे की दो आधिकारिक भाषाओं में अपेक्षाकृत रूप से कम प्रचलित है. रॉयटर्स के अनुसार, नोबेल मिलने के ऐलान के बाद उन्होंने कहा कि वे इस पुरस्कार को इस भाषा और इसे बढ़ावा देने वाले आंदोलन को दी गई मान्यता क़रार देते हैं. उन्होंने उपन्यास, लघु कथाएं, बच्चों की किताबें, कविता और निबंध के अलावा लगभग 40 नाटक लिखे हैं.
न्यूज़ पोर्टल न्यूज़क्लिक के पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई को लेकर दिल्ली में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल हुईं लेखक और कार्यकर्ता अरुंधति रॉय ने कहा कि आज आपातकाल से भी ज़्यादा ख़तरनाक हालात हैं. रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने पत्रकारों पर छापेमारी को लेकर विरोध जताते हुए कहा कि अगर भारतीय जनता पार्टी 2024 में वापस सरकार में आती है तो देश लोकतंत्र नहीं रहेगा. रॉय ने कहा कि मुख्यधारा के मीडिया को मीडिया नहीं कहा जा सकता. डिजिटल मीडिया में बहुत बेबाक पत्रकार हैं जिन्होंने पत्रकारिता की एक नई शैली खड़ी की है और इससे सरकार बहुत खतरा महसूस कर रही है. उन्होंने बिना किसी स्पष्टीकरण के पत्रकारों के उपकरण (डिवाइस) जब्त करने पर भी सवाल उठाए और कहा कि कोई एफआईआर नहीं दी गई है. इस कार्यक्रम में 18 मीडिया संगठनों ने सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नाम एक पत्र जारी कर प्रेस की आज़ादी पर हमले को लेकर चिंता जताई. पत्र में पत्रकारों से पूछताछ और उनसे फोन आदि की जब्ती के लिए दिशानिर्देश तैयार करने गुज़ारिश की गई है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के अमेठी के संजय गांधी अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करने के राज्य सरकार के आदेश पर रोक लगा दी है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, अदालत ने यह कहते हुए कि अस्पतालों में लापरवाही हो सकती है, लेकिन कामकाज बंद करने से ज्यादा सार्वजनिक हित है. केवल इसलिए कि अस्पताल के खिलाफ लापरवाही का आरोप है, अस्पताल को बंद करना पर्याप्त नहीं है क्योंकि इससे और अधिक लोगों को परेशानी होगी. बीते महीने एक महिला की सर्जरी के बाद मौत को लेकर प्रदेश सरकार ने अस्पताल का लाइसेंस निलंबित कर दिया था. अस्पताल का संचालन कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाले संजय गांधी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा किया जाता है.
मणिपुर में जातीय संघर्ष को शुरू हुए पांच महीने पूरे हो चुके हैं और अब भी हिंसा की ताज़ा घटनाएं सामने आ रही हैं. द हिंदू के अनुसार, पुलिस ने बताया है कि हालिया घटनाएं इंफाल पश्चिम जिले में बुधवार को हुईं, जहां कम से कम दो घरों में आग लगा दी गई और कई राउंड फायरिंग हुई. पुलिस ने जोड़ा कि हमले के बाद आरोपी मौके से भाग गए, जिससे इलाके में तनाव फैल गया. घटना के बाद इलाके में जमा हुई मेईतेई महिलाओं की भीड़ को सुरक्षा बलों ने आगे बढ़ने से रोक दिया, हालांकि स्थिति नियंत्रण में है.
गुजरात के खेड़ा जिले में बीते साल मुस्लिम युवकों को पुलिस द्वारा सार्वजनिक रूप से पीटने के मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने चार पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ आरोप तय किए हैं. अक्टूबर 2022 में नवरात्रि उत्सव के दौरान एक गरबा कार्यक्रम पर कथित तौर पर कुछ मुस्लिम लोगों की भीड़ ने किया था, जिसके बाद सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में पुलिसकर्मी मुस्लिम युवकों को खंबे से बांधकर लाठियों से पीटते दिखे थे. हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, अदालत ने कहा कि चार पुलिसकर्मियों- एक इंस्पेक्टर, एक सब-इंस्पेक्टर और दो कॉन्स्टेबल- ने पीटने की घटना में सक्रिय रूप से शामिल थे और उनका व्यवहार 1996 के डीके बसु बनाम पश्चिम बंगाल सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय गिरफ्तारी और हिरासत के दौरान पुलिस के आचरण के लिए नियमों के उल्लंघन में था, इसलिए अब उन्हें अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (बी) के तहत आरोपों का सामना करना पड़ेगा.