16 भारतीय पत्रकारों पर यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए हैं, वर्तमान में 7 सलाखों के पीछे हैं

पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, छात्रों, श्रमिकों और आदिवासियों पर आरोप लगाने के लिए यूएपीए का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में जन सुरक्षा क़ानून (पीएसए) और छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) और आईपीसी में राजद्रोह जैसे अन्य कठोर अधिनियम भी लागू किए गए हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

पिछले कुछ वर्षों में पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, छात्रों, श्रमिकों और आदिवासियों पर आरोप लगाने के लिए यूएपीए का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा जम्मू-कश्मीर में जन सुरक्षा क़ानून (पीएसए) और छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून (एनएसए) और आईपीसी में राजद्रोह जैसे अन्य कठोर अधिनियम भी लागू किए गए हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

नई दिल्ली: कठोर कानूनों के तहत आरोपित पत्रकारों की संख्या भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की खतरनाक स्थिति का संकेत देती है. साल 2010 से आज तक देश में 16 पत्रकारों पर गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (यूएपीए) के तहत आरोप लगाए गए हैं.

जब यूएपीए का उपयोग उन पत्रकारों के खिलाफ किया जाता है, जो विभिन्न मुद्दों पर जांच और रिपोर्ट करना चाहते हैं, तो यह उनके वैध काम को अपराधी बनाने और उन्हें ‘आतंकवादी’ के रूप में कलंकित करने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर ऐसे पेशेवर लोगों पर भयावह प्रभाव डालने का प्रयास करता है.

आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए यूएपीए लाया गया था. इसकी दंड प्रक्रिया जेल को नियम और जमानत को अपवाद बनाने के लिए डिजाइन की गई है. मामले वस्तुत: दशकों तक चलते रहते हैं. इस दौरान दो लोग यूएपीए से मुक्ति पाने में कामयाब रहे. इनमें से एक को दोषमुक्त कर दिया गया और दूसरे को बरी कर दिया गया.

समाचार वेबसाइट न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ्तारी के नवीनतम उदाहरण से पता चलता है कि पिछले दशक में देशभक्ति, राष्ट्रीय सुरक्षा और कथित राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को यूएपीए के तहत आरोपों की शृंखला में शामिल किया गया है.

पुरकायस्थ और इसके मानव संसाधन विभाग के प्रमुख (एचआर हेड) अमित चक्रवर्ती के खिलाफ एफआईआर में यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधि), 16 (आतंकवादी कृत्य), 17 (आतंकवादी कृत्यों के लिए धन जुटाना), 18 (साजिश) और 22सी (कंपनियों और ट्रस्टों द्वारा किया गया अपराध) के साथ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और 120बी (आपराधिक साजिश) के तहत आरोप लगाए हैं.

मीडिया के खिलाफ धारा 153ए कानून लागू करने वाली जांच एजेंसियों की एक पसंदीदा धारा है, जिसका इस्तेमाल नेहा दीक्षित और परंजॉय गुहा ठाकुरता सहित कई पत्रकारों के खिलाफ किया गया है.

पिछले कुछ वर्षों में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, वकीलों, छात्रों, श्रमिकों और आदिवासियों पर आरोप लगाने के लिए यूएपीए का अंधाधुंध इस्तेमाल किया गया है. इसके अलावा इन लोगों के खिलाफ जम्मू-कश्मीर में जन सुरक्षा कानून (पीएसए) और छत्तीसगढ़ जन सुरक्षा अधिनियम, राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) और आईपीसी में राजद्रोह जैसे अन्य कठोर अधिनियम भी लागू किए गए हैं. इतना ही नहीं पत्रकारों पर भी इन अधिनियमों के तहत आरोप लगाए गए हैं.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और असहमति के अधिकार की रक्षा करने की दिशा में काम करने वाले संगठन ‘फ्री स्पीच कलेक्टिव’ ने ‘बिहाइंड बार्स’ शीर्षक से एक दशक (2010-20) में भारत में गिरफ्तार पत्रकारों का अध्ययन किया है.

अध्ययन के मुताबिक, भारत में 154 पत्रकारों को उनके पेशेवर काम के लिए गिरफ्तार किया गया, हिरासत में लिया गया, पूछताछ की गई या कारण बताओ नोटिस दिया गया और इनमें से 40 प्रतिशत से अधिक मामले 2020 में दर्ज किए गए थे. इसके अलावा 9 विदेशी पत्रकारों को निर्वासन, गिरफ्तारी, पूछताछ का सामना करना पड़ा या उन्हें भारत में प्रवेश से वंचित कर दिया गया था.

लोकतंत्र में पत्रकार समाचार और सूचना के दूत होते हैं. उन्हें चुप कराने से उनकी रिपोर्टिंग और महत्वपूर्ण मुद्दों पर टिप्पणियां खामोश हो जाएंगी और नागरिकों के बिना किसी डर के जानकारी तक पहुंचने के लोकतांत्रिक अधिकार से समझौता हो जाएगा.

भारत में यूएपीए के तहत पत्रकार (2010 से आज तक)

वर्तमान में यूएपीए के तहत आरोपित पत्रकारों की संख्या16
यूएपीए के तहत जेल में बंद पत्रकार07
यूएपीए के आरोप में जमानत रह रहे पत्रकार08
आरोप लगे लेकिन गिरफ्तार न किए गए पत्रकार01
दोषमुक्त किए गए पत्रकार01
बरी किए गए पत्रकार01

यूएपीए तहत गिरफ्तार और पुलिस हिरासत में

1. प्रबीर पुरकायस्थ (संपादक, न्यूज़क्लिक) – 03/10/2023 को नई दिल्ली में गिरफ्तारी.

जेल में बंद पत्रकार

1. आसिफ़ सुल्तान (रिपोर्टर, कश्मीर नैरेटर) – 27/08/2018; श्रीनगर (जम्मू कश्मीर)

2. फहद शाह (संपादक, द कश्मीरवाला) – 04/02/2022; पुलवामा (जम्मू और कश्मीर)

3. सज्जाद गुल, (ट्रेनी रिपोर्टर, द कश्मीर वाला) – 05/01/2022; बांदीपोरा (जम्मू कश्मीर)

4. रूपेश कुमार (स्वतंत्र पत्रकार) – 17/07/2022 रामगढ (झारखंड)

5. इरफान मेहराज (संपादक, वांडे पत्रिका) – 21/03/2023 श्रीनगर (जम्मू कश्मीर)

घर में नजरबंद

1. गौतम नवलखा (लेखक और सलाहकार संपादक, न्यूज़क्लिक) 30/08/2018 (नजरबंद), 20/04/2020 (आत्मसमर्पण और जेल), 19/11/2022 (नजरबंद).

जमानत पर पत्रकार (गिरफ्तारी की तारीख से)

1. सीमा आज़ाद (संपादक, दस्तक; इलाहाबाद, यूपी) – फरवरी 2010 में गिरफ्तार, अगस्त 2012 में जमानत दी गई; 06/09/2023 को छापा मारा गया.

2. विश्व विजय (संपादक, दस्तक; इलाहाबाद, यूपी) – फरवरी 2010 में गिरफ्तार, अगस्त 2012 में जमानत दे दी गई; 06/09/2023 को छापा मारा गया.

3. केके शाहिना (पत्रकार, आउटलुक) – दिसंबर 2010 में मामला दर्ज किया गया; जुलाई 2011 में अग्रिम जमानत दे दी गई.

4. सिद्दीक कप्पन (पत्रकार, अज़ीमुखम; दिल्ली) – 05/10/2020 को गिरफ्तार किया गया, 09/09/2023 को यूएपीए मामले में जमानत दी गई और 23/12/2023 को मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दी गई.

5. पाओजेल चाओबा (कार्यकारी संपादक, द फ्रंटियर मणिपुर; इंफाल) – 17/01/2021 को गिरफ्तार, 18/01/2021 को जमानत दी गई.

6. धीरेन सदोकपम (संपादक, द फ्रंटियर मणिपुर; इंफाल) – 17/01/2021 को गिरफ्तार, 18/01/2021 को जमानत दी गई.

7. श्याम मीरा सिंह (स्वतंत्र पत्रकार, नई दिल्ली) पर 10/11/2021 को आरोप लगाया गया, 18/11/2023 को अग्रिम जमानत मिल गई.

8. मनन डार (फोटो जर्नलिस्ट, श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर) 22/10/2021 को गिरफ्तार किया गया, 04/01/2023 को जमानत मिल गई.

आरोप लगाया गया, लेकिन गिरफ्तार नहीं

1. मसर्रत ज़हरा (फोटो जर्नलिस्ट, श्रीनगर) 18/04/2020 को मामला दर्ज किया गया था.

दोषमुक्त

1. संतोष यादव (बस्तर, छत्तीसगढ़) – सितंबर 2015 में गिरफ्तार, 02/01/2020 को दोषमुक्त.

बरी किया गया

1. कामरान यूसुफ (पुलवामा, जम्मू कश्मीर) – सितंबर 2017 में गिरफ्तार, 16/03/2022 को बरी कर दिया गया.

यह रिपोर्ट मूल रूप से फ्री स्पीच कलेक्टिव में प्रकाशित हुई है.