भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित लोगों का कहना है कि सरकार पीड़ितों को लेकर गंभीर नहीं है.
भोपाल: तीन दशक से भी पहले भोपाल की यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से शहर में ज़हरीली गैस का रिसाव हुआ था. भोपाल गैस त्रासदी की इस घटना से प्रभावित लोगों ने मंगलवार से ‘पांच गुहार’ नाम का अभियान शुरू किया है.
इस अभियान के माध्यम से वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज चौहान का ध्यान अपनी मांगों की तरफ़ आकर्षित करने का प्रयास कर रहे हैं.
उनकी पांच मांगों में चिकित्सा देखभाल, सामाजिक और आर्थिक पुनर्वास, पर्याप्त मुआवजा, अपराधी को सजा, मिट्टी और भूजल से विषैले ज़हर को साफ करना शामिल हैं.
अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कटआउट फोटो के सामने बैठे उन बच्चों ने कि, जो शारीरिक अक्षमता के साथ पैदा हुए हैं क्योंकि उनके माता पिता उस त्रासदी की चपेट में आए थे.
अभियान के दौरान प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री की इन तस्वीरों को भोपाल के उन इलाक़ों में ले जाया जाएगा जो 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित हुए थे और जहां का भूजल यूनियन कार्बाइड फैक्टरी से निकली गैस से ज़हरीला हो गया था.
ये अभियान त्रासदी की 33वीं बरसी यानी 3 दिसंबर तक चलाया जाएगा. शहर के निगम पार्क में आने वाले 30 नवंबर को एक बड़ा प्रदर्शन आयोजित किया जा रहा है. भोपाल गैस त्रासदी में जो महिलाएं विधवा हो गई थीं, वे भी इस प्रदर्शन में शामिल होंगी.
ज्ञात हो कि उन विधवाओं को मात्र एक हज़ार रुपये प्रति महीने की पेंशन मिलती थी, जिसे साल 2016 से बंद कर दिया गया. साल 2010 में चौहान ने रक्षाबंधन के मौक़े पर प्रतिज्ञा ली थी कि इन विधवाओं को आजीवन पेंशन मिलेगी और उन्हें आर्थिक पुनर्वास भी दिया जाएगा.
2006 में जब पेंशन के रुकने के बारे में अधिकारियों से पूछा गया तो उन्होंने अपने जवाब में बताया कि यह योजना मात्र पांच साल के लिए ही सीमित थी.
भोपाल गैस पीड़ित निराश्रित पेंशनभोगी संघर्ष मोर्चा के सदस्य बालकृष्ण नामदेव ने ‘द वायर’ को बताया, ‘विधवाओं की कॉलोनी का नाम बदलकर जीवन ज्योति कॉलोनी रख दिया गया है मगर विधवाओं की स्थिति में कोई भी सुधार नहीं आया है. कुछ विधवाओं को अपने जीवनयापन के लिए भीख तक मांगनी पड़ रही है. स्वास्थ्य व्यवस्था की मांग को भी अब तक पूरा नहीं किया गया है. जो लोग यूनियन कार्बाइड फैक्टरी की आसपास की कॉलोनी में रहते थे और फैक्टरी से निकले ज़हरीले पानी को पीने से प्रभावित हुए हैं जिसके कारण उनके बच्चे भी विकलांगता के साथ पैदा हुए हैं. हमारी मांग उन बच्चों के इलाज उपलब्ध कराने की है.’
भोपाल गैस त्रासदी से प्रभावित लोग सालों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. साल 2011 में 3 दिसंबर को रेल रोको आंदोलन के माध्यम से हज़ारों लोगों ने पर्याप्त भुगतान की मांग को सामने रखा था.
नामदेव कहते हैं, ‘अब भाजपा की सरकार सत्ता में है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार भोपाल आ चुके हैं पर अब तक उन्होंने इस मुद्दे पर बात नहीं की है और न ही प्रभावित लोगों से मिलने का कोई समय निकला है.’
‘2011 के रेल रोको आंदोलन के बाद से मुख्यमंत्री भी इस बात पर चुप्पी साधकर बैठे हैं. यह बहुत साफ़ है कि सरकार इस मुद्दे को बिलकुल गंभीरता से नहीं ले रही है.’