एक रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा योजना के तहत काम की मांग पिछले साल की समान अवधि की तुलना में बढ़ गई है. सितंबर तक योजना के तहत काम चुनने वाले व्यक्तियों की संख्या भी एक साल पहले की तुलना में इस साल 4.6 प्रतिशत बढ़कर लगभग 19 करोड़ हो गई है.
नई दिल्ली: इस वित्तीय वर्ष के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को आवंटित 60,000 करोड़ रुपये के बजट का लगभग 93 प्रतिशत साल की पहली छमाही में इस्तेमाल किया गया है.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मनरेगा के तहत काम की मांग भी पिछले साल की समान अवधि की तुलना में बढ़ी है, जिससे औद्योगिक सुधार होने की बात पर सवाल खड़े हो गए हैं.
परिणामस्वरूप केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय इस पूरे वित्तीय वर्ष में योजना को चलाने के लिए ‘पर्याप्त’ पूरक निधि की मांग करेगा. पश्चिम बंगाल में मनरेगा कार्य के निलंबन के बावजूद फंड की आवश्यकता अधिक है, जो योजना के मुख्य लाभार्थियों में से एक है.
मंत्रालय ने गुरुवार (5 अक्टूबर) को जारी एक बयान में कहा, ‘केंद्र सरकार के निर्देशों का अनुपालन न करने पर महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 की धारा 27 के प्रावधान के अनुसार पश्चिम बंगाल राज्य का फंड 9 मार्च, 2022 से रोक दिया गया है.’
उसने यह भी कहा कि योजना के लिए फंड की कोई बाधा नहीं है.
मंत्रालय द्वारा संकलित प्रारंभिक आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि योजना के तहत व्यक्ति-दिवस (एक वित्तीय वर्ष में योजना के तहत पंजीकृत व्यक्ति द्वारा कार्य दिवसों की कुल संख्या) अब तक पूरे वर्ष के लक्ष्य का 82 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि योजना के तहत उत्पन्न व्यक्ति-दिवस अप्रैल और सितंबर के बीच एक साल पहले की तुलना में लगभग 9 प्रतिशत बढ़कर लगभग 187 करोड़ हो गया.
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर तक योजना के तहत काम चुनने वाले व्यक्तियों की संख्या भी एक साल पहले की तुलना में 2023 में 4.6 प्रतिशत बढ़कर लगभग 19 करोड़ हो गई. इसके अलावा 15 करोड़ परिवारों ने पहली तिमाही में काम की मांग की, जो एक साल पहले की तुलना में 8.5 प्रतिशत अधिक है.
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, यह ध्यान दिया जा सकता है कि मनरेगा का बजटीय आवंटन सवालों के घेरे में आ गया है, क्योंकि इस वर्ष का आवंटन चालू वित्तीय वर्ष के संशोधित अनुमान 89,400 करोड़ रुपये से 32 प्रतिशत कम था और 2020-21 के बजट अनुमान 1,11,500 करोड़ रुपये के आधे से थोड़ा अधिक था.
दूसरे शब्दों में इस वर्ष का आवंटन सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 0.2 प्रतिशत से कम यानी अब तक का सबसे कम मनरेगा आवंटन है.
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