मणिपुर: लोगों द्वारा गूगल और विकिपीडिया पर स्थानों के नाम बदलने पर कड़ी कार्रवाई की चेतावनी

मणिपुर के राज्यपाल ने राज्य में स्थानीय अधिकारियों को दिए एक आदेश में कहा कि लोगों द्वारा ज़िलों और यहां तक कि संस्थानों का नाम बदलने या इसकी कोशिश करने की घटनाएं देखी गई हैं, जिससे पहाड़ी-बहुसंख्यक कुकी जनजातियों और घाटी-बहुसंख्यक मेईतेई के बीच तनाव बढ़ सकता है. यह चलन बंद होना चाहिए.

मणिपुर की राजधानी इंफाल. (फोटो साभार: विकिपीडिया/PP Yoonus)

मणिपुर के राज्यपाल ने राज्य में स्थानीय अधिकारियों को दिए एक आदेश में कहा कि लोगों द्वारा ज़िलों और यहां तक कि संस्थानों का नाम बदलने या इसकी कोशिश करने की घटनाएं देखी गई हैं, जिससे पहाड़ी-बहुसंख्यक कुकी जनजातियों और घाटी-बहुसंख्यक मेईतेई के बीच तनाव बढ़ सकता है. यह चलन बंद होना चाहिए.

मणिपुर की राजधानी इंफाल. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: याकूत अली/द वायर)

नई दिल्ली: मणिपुर के राज्यपाल ने राज्य में बीते 3 मई से शुरू हुई जातीय हिंसा के बीच नागरिक समाज समूहों और नागरिकों को संचार और मानचित्रों में स्थानों का नाम बदलने के खिलाफ चेतावनी दी है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्यपाल ने राज्य में स्थानीय अधिकारियों को दिए एक आदेश में कहा कि लोगों द्वारा जिलों और यहां तक कि संस्थानों का नाम बदलने या उनका नाम बदलने की कोशिश करने की घटनाएं देखी गई हैं, जिससे पहाड़ी-बहुसंख्यक कुकी जनजातियों और घाटी-बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय के बीच तनाव बढ़ सकता है.

मुख्य सचिव विनीत जोशी द्वारा हस्ताक्षरित आदेश में कहा गया है कि अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यह अवैध चलन तुरंत बंद हो, अन्यथा कड़ी कार्रवाई की जाएगी. जो भी नाम भू-राजस्व रिकॉर्ड में नहीं है वह अवैध है.

जोशी ने आदेश में कहा है, ‘विश्वसनीय सूत्रों से राज्य सरकार के संज्ञान में आया है कि कई नागरिक समाज संगठन, संस्थान, प्रतिष्ठान और व्यक्ति जान-बूझकर स्थानों का नाम बदल रहे हैं या ऐसा करने की कोशिश कर रहे हैं, जो आपत्तिजनक हैं और समुदायों के बीच विवाद और संघर्ष पैदा करने की संभावना है.’

उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि यह चलन खासतौर पर कानून-व्यवस्था के समक्ष मौजूद वर्तमान संकट के मद्देनजर बंद होना चाहिए.

मामले से परिचित लोगों ने बताया कि मणिपुर के कई इलाके गूगल मैप्स पर दो नामों के साथ दिखाई दे रहे हैं. स्थानों का नाम बदलना – कानूनी या अन्य रूप से – लंबे समय से समुदायों के बीच तनाव का एक कारण रहा है.

उदाहरण के लिए थांगजिंग पहाड़ी का नाम बदलकर पूर्व कांग्रेस सरकार ने थांगटिंग कर दिया था, यह नाम पहाड़ियों में रहने वाली कुकी जनजाति द्वारा मान्यता प्राप्त है, जबकि पहाड़ी इलाके के पास मोइरांग जिले में मेइतेई लोगों ने इस पर आपत्ति जताई है.

कुकी जनजातियां अपने पहाड़ी जिले चुराचांदपुर को ‘लमका’ भी कहती हैं. पिछले हफ्ते, चुराचांदपुर के कुछ निवासियों ने सोशल मीडिया पर शिकायत की थी कि ‘लमका’ जाने वाले कई पार्सल राज्य की राजधानी इंफाल के डाकघर में अटके हुए हैं.

इंडिया पोस्ट ने सोशल साइट एक्स पर अपने आधिकारिक हैंडल में कहा कि ‘लमका’ नामक जगह के लिए कोई पिन कोड नहीं है.

इंडिया पोस्ट ने पार्सल ट्रैकिंग विवरण मांगने वाले एक ट्वीट (अब हटा दिए गए) के जवाब में कहा, ‘हमें आपको यह बताते हुए दुख हो रहा है कि मणिपुर में मौजूदा स्थिति के कारण आपकी डिलीवरी में देरी हुई है. लमका के लिए गंतव्य पिन कोड मौजूद या उपलब्ध नहीं है. आपको हुई असुविधा के लिए हमें खेद है.’

मेईतेई लोगों के साथ जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद कुकी जनजातियां एक अलग प्रशासन की मांग कर रही हैं. इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने चुराचांदपुर निवासियों से कहा है कि जब तक अलग प्रशासन की उनकी मांग पूरी नहीं हो जाती, तब तक वे ‘लमका’ शब्द का इस्तेमाल न करें.

मणिपुर में पहाड़ियों और घाटी के कई विवादित क्षेत्र गूगल मैप्स पर दो नामों के साथ दिखाई दे रहे हैं. कुकी बस्तियों में प्रत्यय ‘वेंग’ होता है, जिसका अर्थ है कॉलोनी. मेईतेइयों ने विकिपीडिया और गूगल मैप्स पर कई स्थानों पर ‘वेंग’ शब्द जोड़ने के लिए बड़े पैमाने पर संपादन का आरोप लगाया है.

हालांकि, कुकी समुदाय का कहना है कि ये क्षेत्र पारंपरिक रूप से उनके हैं और अगर उन्हें अलग प्रशासन मिलता है तो वे औपचारिक रूप से उनका नाम बदल देंगे.

सरकारी सूत्रों ने एनडीटीवी को बताया कि विकिपीडिया और गूगल मैप्स पर स्थानों का बड़े पैमाने पर नाम बदलना, जिससे जमीनी स्तर पर तनाव पैदा हो सकता है, को आपराधिक कृत्य माना जाएगा.

साइबर अपराध इकाई के एक पुलिस अधिकारी ने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए एनडीटीवी को बताया, ‘साइबर अपराध इकाई उन पर नजर रख रही है. हमने डेटा एकत्र किया है और मणिपुर और राज्य के बाहर कुछ लोगों द्वारा स्थानों का नाम बदलने के शरारती कृत्यों के सबूत हैं.’

गौरतलब है कि बीते 3 मई को मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद जातीय हिंसा भड़क गई थी. हिंसा की घटनाओं में अब तक 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई समुदाय के लोगों की हिस्सेदारी लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. वहीं, नगा और कुकी आदिवासियों की आबादी करीब 40 प्रतिशत है और वे ज्यादातर पर्वतीय जिलों में रहते हैं.