अमेरिकी एनजीओ ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की एक रिपोर्ट बताती है कि जैसे-जैसे दुनिया सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ रही है, कोयला उद्योग में 4 लाख से अधिक कर्मचारी साल 2050 तक अपनी नौकरी खो देंगे.
नई दिल्ली: ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा 10 अक्टूबर को जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे दुनिया सौर और पवन ऊर्जा जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ रही है, कोयला उद्योग में 4 लाख से अधिक कर्मचारी 2050 तक अपनी नौकरी खो देंगे. चीन और भारत में श्रमिकों पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा. रिपोर्ट में भविष्यवाणी की गई है कि कोल इंडिया तब तक 70,000 से अधिक नौकरियों में कटौती करेगा.
रिपोर्ट के अनुसार, विकार्बनीकरण- जीवाश्म ईंधन जलाने जैसी गतिविधियों से उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन को कम करना- ग्लोबल वार्मिंग को विशिष्ट स्तरों से नीचे रखने के लिए वकालत की जाने वाली मुख्य तकनीकों में से एक है ताकि जलवायु परिवर्तन (जैसे लू, तीव्र वर्षा और अन्य मौसम संबंधी घटनाओं) के प्रभावों को दुनिया भर में कम किया जा सके.
विकार्बनीकरण का एक साधन सौर और पवन ऊर्जा जैसी ऊर्जा के स्वच्छ रूपों को अपनाना और मौजूदा खदानों को बंद करके कोयला उत्पादन में कमी करना है. लेकिन उन कोयला खदानों का क्या जिन्हें बंद करना पड़ेगा? कोयला उद्योग आजीविका का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, विशेषकर विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में.
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर एक अमेरिकी गैर सरकारी संगठन है, जो दुनिया भर में स्वच्छ ऊर्जा पर जानकारी संकलित और प्रकाशित करता है, जिसमें ऐसे ऊर्जा स्रोतों में बदलाव, दुनिया भर में 4300 सक्रिय और प्रस्तावित कोयला खदानों और परियोजनाओं- जो संचयी रूप से वैश्विक कोयला उत्पादन के 90 फीसदी से अधिक के लिए जिम्मेदार हैं- में रोजगार पर डेटा संकलन शामिल है. यह वैश्विक कोयला खदान ट्रैकर के माध्यम से किया गया था. विश्लेषण में भारत सहित 70 देशों की खदानों का डेटा शामिल किया गया, जिनमें अनुमानित 3.3 लोग काम करते हैं.
रिपोर्ट में पाया गया है कि लगभग 27 लाख कोयला खनिक दुनिया के 93 फीसदी कोयले का उत्पादन करते हैं, जिनमें से अधिकांश (लगभग 22 लाख नौकरियां) एशिया में काम करते हैं. 2050 तक दुनियाभर में खदानें बंद होने के कारण लगभग 9.9 लाख कोयला खदानों में नौकरियां नहीं रहेंगी. मौजूदा कार्यबल के एक-तिहाई से अधिक को छंटनी का सामना करना पड़ेगा.
वर्तमान में 4,14,000 श्रमिक उन खदानों का संचालन करते हैं जिनके संचालन की अवधि 2035 से पहले पूरी हो जाएगी. रिपोर्ट के अनुसार, 2035 तक छंटनी प्रति दिन औसतन 100 श्रमिकों को प्रभावित करेगी. उनमें से अधिकांश अकेले एशिया में हैं.
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर की रिपोर्ट का अनुमान है कि कोयला खदानें बंद होने से चीन और भारत को छंटनी का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. चीन में 15 लाख से अधिक कोयला खनिक हैं जो इसके 85 फीसदी से अधिक कोयले का उत्पादन करते हैं, जो दुनिया के उत्पादन का आधा हिस्सा है.
रिपोर्ट के अनुसार, चीन के बाद भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कोयला उत्पादक है और सरकारी स्वामित्व वाली कोल इंडिया को 2050 तक सबसे अधिक संभावित छंटनी का सामना करना पड़ेगा: अनुमानित 73,800 प्रत्यक्ष श्रमिक.
रिपोर्ट में यह भी पाया गया है कि ‘आने वाले दशकों में जिन खदानों के बंद होने की संभावना है, उनमें काम करने वालों के जीवन के बारे में कोई योजना नहीं है.’
‘क्षेत्रीय संतुलन महत्वपूर्ण हैं’
ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर रिपोर्ट के सह-लेखकों में से एक शोधकर्ता टिफ़नी मीन्स ने टिप्पणी की, ‘कोयला उद्योग में खदानों की एक लंबी सूची है जो निकट अवधि में बंद हो जाएंगी. उनमें से कई सरकारी स्वामित्व वाले उद्यम हैं, जिनमें सरकारी की हिस्सेदारी है.’
उन्होंने कहा कि स्वच्छ ऊर्जा अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ने के साथ ही सरकार को उन श्रमिकों और समुदायों के लिए जिम्मेदारी उठाने की जरूरत है जो अपनी आजीविका खो देंगे.
इस ‘न्यायसंगत’ बदलाव में अन्य बातों के अलावा, उन श्रमिकों का पुनर्वास सुनिश्चित करना शामिल है जिन्होंने अपनी नौकरी खो दी है. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने भी संबंधित लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा करने और किसी को पीछे न छोड़ने की बात कही है.
भारतीय प्रबंधन संस्थान कलकत्ता की प्रोफेसर रूना सरकार ने रिपोर्ट को एक चेतावनी करार दिया. उन्होंने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘भारत में खदान बंद होने से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला कोयला खनन क्षेत्र पश्चिम बंगाल है.’