मणिपुर हिंसा के चलते विस्थापित हुए लोगों की संपत्तियों के अतिक्रमण पर कार्रवाई होगी: सरकार

सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर को मणिपुर सरकार को हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों की संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था. इस आदेश का हवाला देते हुए राज्य सरकार ने कहा है कि जो कोई भी इसका उल्लंघन करता पाया गया, उस पर केस दर्ज किया जाएगा. 

मणिपुर हिंसा के दौरान जलाए गए मकान. (फाइल फोटो: एएनआई)

सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर को मणिपुर सरकार को हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों की संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था. इस आदेश का हवाला देते हुए राज्य सरकार ने कहा है कि जो कोई भी इसका उल्लंघन करता पाया गया, उस पर केस दर्ज किया जाएगा.

मणिपुर हिंसा के दौरान जलाए गए मकान. (फाइल फोटो: एएनआई)

नई दिल्ली: मणिपुर सरकार ने मंगलवार को हिंसा प्रभावित पूर्वोत्तर राज्य के निवासियों से आग्रह किया कि वे पांच महीने से जारी जातीय संघर्ष के चलते विस्थापित हुए लोगों की संपत्तियों पर अतिक्रमण न करें. राज्य सरकार ने कहा कि ऐसा करने से कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी हो सकती है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए राज्य सरकार के गृह विभाग द्वारा जारी आदेश में कहा गया है, ‘राज्य सरकार बेहद संवेदनशीलता के साथ विचार कर रही है क्योंकि ऐसी कोई भी घटना राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति को और खराब कर सकती है.’

सुप्रीम कोर्ट ने 25 सितंबर को एक विशेष अनुमति याचिका पर कार्रवाई करते हुए मणिपुर सरकार को हिंसा के दौरान विस्थापित हुए लोगों की संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया था, ‘मणिपुर सरकार को विस्थापित व्यक्तियों की संपत्तियों के साथ-साथ हिंसा में नष्ट/जलाई गई संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए और उनके अतिक्रमण को रोकना चाहिए.’

सुप्रीम कोर्ट के आदेश में यह भी निर्देश दिया गया कि यदि किसी संपत्ति पर अतिक्रमण किया गया है, तो राज्य सरकार को अतिक्रमणकारियों को इसे हटाने का निर्देश देना चाहिए, ऐसा न करने पर संबंधित व्यक्ति सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन न करने पर अदालत की अवमानना के लिए उत्तरदायी होगा.

गौरतलब है कि बीते 3 मई को मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में जनजातीय एकजुटता मार्च के आयोजन के बाद जातीय हिंसा भड़क गई थी. हिंसा की घटनाओं में अब तक 180 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं जो अभी भी राहत शिविरों में रह रहे हैं.

झड़पों के बाद हजारों कुकी, जो इंफाल घाटी के निवासी थे, पास की पहाड़ियों में भाग गए जहां उनका समुदाय बहुसंख्यक है. कुकी-प्रभुत्व वाले पहाड़ी जिलों में रहने वाले मेईतेई लोगों का इंफाल घाटी में सुरक्षा के लिए इसी तरह का पलायन मई के पहले कुछ दिनों में हुआ था.

पिछले कुछ महीनों में ऐसी अपुष्ट रिपोर्टें आई हैं कि जो लोग भाग गए थे उनकी कई संपत्तियों पर इंफाल घाटी और चूड़ाचांदपुर जैसे पहाड़ी जिलों के निवासियों ने कब्जा कर लिया है.

मंगलवार को जारी राज्य सरकार के आदेश में कहा गया है, ‘राज्य सरकार इस मामले को अत्यंत संवेदनशीलता के साथ बहुत गंभीरता से ले रही है क्योंकि ऐसी कोई भी घटना राज्य में कानून व्यवस्था की स्थिति को और खराब कर सकती है.’

इसमें कहा गया है कि कमिश्नर और एसपी को कार्रवाई करने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी निर्देशों को लागू करने का निर्देश दिया गया है.

आदेश में कहा गया है, ‘जो कोई भी इसका उल्लंघन करता पाया गया, उस पर कानून के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया जाएगा और सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के लिए उत्तरदायी होगा.’