मिजोरम में विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 7 नवंबर को होगा और मतगणना 3 दिसंबर को निर्धारित की गई है. राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से अनुरोध किया है कि मतगणना रविवार को पड़ रहा है, जिसे इस ईसाई बहुल राज्य में पवित्र माना जाता है, इसलिए ऐसे दिन कोई भी आधिकारिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाना चाहिए.
नई दिल्ली: चुनाव आयोग राजनीतिक दलों और अन्य लोगों के अनुरोधों को ध्यान में रखते हुए राजस्थान में विधानसभा चुनावों के लिए मतदान को दो दिनों के लिए स्थगित करने पर सहमत हो गया है, क्योंकि 23 नवंबर हिंदू विवाह का एक शुभ अवसर देवउठनी एकादशी है. अब मिजोरम में सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयोग से 3 दिसंबर को होनी वाली मतगणना की तारीख बदलने की मांग की है.
चुनाव आयोग द्वारा घोषित कार्यक्रम के मुताबिक, यहां विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 7 नवंबर (मंगलवार) को होगा और मतगणना तीन दिसंबर (रविवार) को निर्धारित की गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, मतगणना पर सबसे पहले आपत्ति उठाने वाली कांग्रेस थी. पार्टी ने कहा कि यह रविवार के दिन होगा – जिसे ईसाई बहुल राज्य में स्थानीय जनता द्वारा पवित्र माना जाता है.
9 अक्टूबर को मिजोरम राज्य कांग्रेस अध्यक्ष लालसावता ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को एक पत्र लिखा कि यह रविवार को पड़ रहा है जिसे राज्य के लोग पवित्र मानते हैं, इसलिए ऐसे दिन कोई भी आधिकारिक कार्यक्रम आयोजित नहीं किया जाना चाहिए.
उन्होंने चुनाव आयोग से अनुरोध किया कि जनता की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए तारीख को पुनर्निर्धारित किया जाए और सोमवार से शुक्रवार के बीच कोई और तारीख तय की जाए.
ऐसा प्रतीत होता है कि कांग्रेस के अनुरोध को व्यापक समर्थन मिला क्योंकि सत्तारूढ़ मिज़ो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) भी उसी दिन इसी तरह के अनुरोध के साथ चुनाव आयोग के पास पहुंचा था.
तब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित तीन अन्य राजनीतिक दलों ने अब मतगणना के दिन को पुनर्निर्धारित करने पर विचार करने के लिए आयोग को पत्र लिखा है.
स्थानीय अखबार मिजोरम पोस्ट के अनुसार, जोराम पीपुल्स मूवमेंट (जेडपीएम) और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) ने भी आयोग को पत्र भेजा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी तरह का अनुरोध सीमावर्ती राज्य के प्रमुख चर्चों के समूह मिजोरम हुएट्यूट कमेटी ने भी की है.
इसने यह कहते हुए मतगणना की तारीख बदलने की आग्रह की कि चूंकि रविवार ईसाइयों के लिए खास और प्रार्थना का दिन होता है, इसलिए कस्बों और गांवों में विभिन्न प्रार्थनाएं आयोजित की जाती हैं और जनता उस दिन धर्म-निरपेक्ष और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों से बचती है.
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