मणिपुर: विपक्षी दलों ने राज्यपाल को ज्ञापन देकर कहा- कोई सार्थक शांति वार्ता नज़र नहीं आ रही

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और आम आदमी पार्टी समेत 10 राजनीतिक दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके को दिए ज्ञापन में कहा है कि राज्य सरकार जातीय संकट के कुछ पहलुओं को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में विफल रही है.

विपक्षी दल के कार्यकर्ता 13 अक्टूबर को मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके को ज्ञापन सौंपने के दौरान की तस्वीर. (फोटो साभार: एक्स)

कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और आम आदमी पार्टी समेत 10 राजनीतिक दलों के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके को दिए ज्ञापन में कहा है कि राज्य सरकार जातीय संकट के कुछ पहलुओं को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में विफल रही है.

विपक्षी दल के कार्यकर्ता 13 अक्टूबर को मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके को ज्ञापन सौंपने के दौरान की तस्वीर. (फोटो साभार: एक्स)

नई दिल्ली: मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके को शुक्रवार (13 अक्टूबर) को इंफाल में ज्ञापन सौंपने जाते समय दस विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं की पुलिस से झड़प हो गई.

उखरुल टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोई ‘बड़ी अप्रिय घटना’ नहीं हुई और पार्टी कार्यकर्ताओं ने अपना ज्ञापन दे दिया.

कांग्रेस, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) और आम आदमी पार्टी समेत राजनीतिक दलों के स्थानीय प्रतिनिधियों द्वारा हस्ताक्षरित ज्ञापन में कहा गया है कि राज्य सरकार जातीय संकट के कुछ पहलुओं को पर्याप्त रूप से संबोधित करने में विफल रही है.

इसमें कहा गया है कि मणिपुर सरकार को राज्य में लागू निषेधाज्ञा हटानी चाहिए, शांति वार्ता में तेजी लानी चाहिए, राहत पैकेज बढ़ाना चाहिए और दो मेईतेई छात्रों के शवों को सौंपने की व्यवस्था करनी चाहिए, जिनकी हाल ही में मौत की पुष्टि हुई थी.

ज्ञापन में कहा गया है, ‘हाल ही में हमने देखा है कि राज्य सरकार ने नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों जैसे बोलने की स्वतंत्रता, सभा की स्वतंत्रता, सरकार की रचनात्मक आलोचना आदि के प्रयोग से रोकने के लिए विभिन्न निषेधात्मक कदम उठाए हैं.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘एक जीवंत लोकतंत्र – जिसके बारे में भारत के माननीय प्रधानमंत्री गर्व से कहते हैं कि भारत लोकतंत्र की जननी है – को व्यक्तियों और प्रेस की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सरकार की गलतियों की आलोचना और शांतिपूर्वक एकत्रित होने एवं विचरण करने की आवश्यकता होती है.’

मणिपुर में मोबाइल इंटरनेट पर प्रतिबंध जारी है. इसे 143 दिनों के लंबे प्रतिबंध के बाद सितंबर में बहाल किया गया था, लेकिन तुरंत बाद ही राज्य सरकार ने इसे बंद कर दिया था.

ज्ञापन में कहा गया है कि मई की शुरुआत में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से राज्य में कोई सार्थक शांति वार्ता नहीं हुई है.

इसमें कहा गया है, ‘आप इस बात से सहमत होंगे कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने जातीय समूहों के बीच संघर्ष के संकट में हस्तक्षेप न करने का रुख अख्तियार किया है. इसके बजाय वे भारत पर हमला करने के इरादे से बाहरी आतंकवादी संगठन द्वारा साजिश के सिद्धांत का सहारा लेकर संकट के मुख्य कारणों को दरकिनार करने की कोशिश कर रहे हैं.’

मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने पहले दावा किया था कि राज्य की हिंसा ‘समुदायों के बीच लड़ाई’ के कारण नहीं, बल्कि सरकार की वन संरक्षण और अफीम साफ करने की नीति के विरोध के कारण है.

उन्होंने जातीय हिंसा के लिए कुकी उग्रवादियों को भी जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की थी.

केंद्र सरकार ने जून में शांति वार्ता शुरू करने की कोशिश की, लेकिन उसका प्रयास तब विफल हो गया, जब मेईतेई और कुकी दोनों समुदायों के सदस्यों ने शांति वार्ता समिति की संरचना को लेकर असहमति जताते हुए भाग लेने से इनकार कर दिया.

विपक्षी दलों ने दो मृत मेईतेई छात्रों का भी मुद्दा उठाया और कहा कि राज्य सरकार उनके शवों को जल्द से जल्द उनके परिजनों तक पहुंचाने की व्यवस्था करे.

17 वर्षीय लुवांगबी लिनथोइंगंबी हिजाम और 20 वर्षीय फिजाम हेमनजीत जुलाई में लापता हो गए थे और कुछ दिन पहले मणिपुर पुलिस ने उनकी मौत की पुष्टि की थी.

उनके शवों की तस्वीरें वायरल होने के बाद मेईतेई बहुल इंफाल घाटी में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. फिर राज्य सरकार ने मोबाइल इंटरनेट सेवा निलंबित कर दी थी.

केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने 1 अक्टूबर को हिजाम और हेमनजीत की मौत के सिलसिले में चार लोगों को गिरफ्तार किया था. 11 अक्टूबर को पुणे से पांचवें व्यक्ति 22 वर्षीय पाओलुन मांग को गिरफ्तार किया गया था.

इंडियन एक्सप्रेस ने बताया कि पाओलुन दोनों छात्रों की मौत में एक ‘प्रमुख संदिग्ध’ था और सीबीआई को सोमवार (16 अक्टूबर) तक उसकी हिरासत दी गई है.

3 मई से मणिपुर में मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच जातीय हिंसा के परिणामस्वरूप 200 से अधिक लोग मारे गए हैं और लगभग 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं.

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