अग्निवीर गावते अक्षय लक्ष्मण सियाचिन पर ड्यूटी के दौरान शहीद

सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात गावते अक्षय लक्ष्मण पहले अग्निवीर हैं, जिनकी ड्यूटी के दौरान मौत हुई है. अक्षय लक्ष्मण की मृत्यु अग्निवीर अमृतपाल सिंह की जम्मू कश्मीर के पुंछ सेक्टर में आत्महत्या से मृत्यु के कुछ दिनों बाद हुई है. सिंह ने ड्यूटी के दौरान ख़ुद को गोली मार ली थी.

गावते अक्षय लक्ष्मण. (फोटो साभार: ट्विटर/@firefurycorps)

सबसे ऊंचे रणक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात गावते अक्षय लक्ष्मण पहले अग्निवीर हैं, जिनकी ड्यूटी के दौरान मौत हुई है. अक्षय लक्ष्मण की मृत्यु अग्निवीर अमृतपाल सिंह की जम्मू कश्मीर के पुंछ सेक्टर में आत्महत्या से मृत्यु के कुछ दिनों बाद हुई है. सिंह ने ड्यूटी के दौरान ख़ुद को गोली मार ली थी.

गावते अक्षय लक्ष्मण. (फोटो साभार: ट्विटर/@firefurycorps)

नई दिल्ली: दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर पर तैनात अग्निवीर गावते अक्षय लक्ष्मण ड्यूटी के दौरान शहीद हो गए. ड्यूटी के दौरान शहीद होने वाले पहले वे पहले अग्निवीर हैं.

अग्निपथ योजना की घोषणा जून 2022 में की गई थी, जिसमें साढ़े 17 से 23 साल के बीच के युवाओं को केवल चार वर्ष के लिए सेना में भर्ती करने का प्रावधान है. चार साल बाद इनमें से केवल 25 प्रतिशत युवाओं की सेवा नियमित करने की बात कही गई थी. इसके तहत भर्ती होने वाले जवानों को अग्निवीर नाम दिया गया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मामले की जानकारी रखने वाले अधिकारियों ने रविवार को बताया कि ऊंचाई से जुड़ी चिकित्सीय स्थिति के कारण सैनिक की मौत हुई.

सेना की लेह स्थित 14 कॉर्प्स ने रविवार को सोशल साइट एक्स पर एक पोस्ट में कहा, ‘फायर एंड फ्यूरी कोर के सभी रैंक सियाचिन की दुर्गम ऊंचाइयों पर कर्तव्य निभाते हुए अग्निवीर (संचालक) गावते अक्षय लक्ष्मण के सर्वोच्च बलिदान को सलाम करते हैं और परिवार के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त करते हैं.’

भारतीय सेना ने एक्स पर लिखा, ‘जनरल मनोज पांडेय और भारतीय सेना के सभी रैंक सियाचिन की कठिन ऊंचाइयों पर ड्यूटी के दौरान अग्निवीर (ऑपरेटर) गावते अक्षय लक्ष्मण के सर्वोच्च बलिदान को सलाम करते हैं. दुख की इस घड़ी में भारतीय सेना शोक संतप्त परिवार के साथ मजबूती से खड़ी है.’

अक्षय लक्ष्मण की मृत्यु अग्निवीर अमृतपाल सिंह की जम्मू कश्मीर के पुंछ सेक्टर में आत्महत्या से मृत्यु के कुछ दिनों बाद हुई है. सिंह ने ड्यूटी के दौरान खुद को गोली मार ली थी. उनके अंतिम संस्कार के दौरान सेना द्वारा ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ नहीं दिए जाने पर विपक्षी दलों ने सरकार की आलोचना भी की थी.

द हिंदू की रिपोर्ट के अनुसार, उनके निधन की खबर पर सोशल मीडिया पर आलोचना भी हुई. कुछ लोगों ने अग्निवीरों और नियमित सैनिकों के बीच असमानता की ओर इशारा किया, जिनके परिवार (नियमित सैनिकों) ड्यूटी के दौरान मरने पर पेंशन और अन्य लाभों के हकदार हैं.

अग्निवीरों की भर्ती शर्तों के अनुसार, युद्ध के दौरान मृत्यु के मामले में निकटतम परिजनों को 48 लाख रुपये गैर-अंशदायी बीमा, 44 लाख रुपये की अनुग्रह राशि मिलती है और उनके वेतन का 30 प्रतिशत अग्निवीर द्वारा सेवा निधि योजना में योगदान देने का प्रावधान, जिसमें सरकार द्वारा भी उतना ही योगदान और ब्याज शामिल है.

इसके अलावा उन्हें मृत्यु की तारीख से लेकर उनके चार साल के कार्यकाल के पूरा होने तक बकाया शेष वेतन भी मिलेगा (इस मामले में यह राशि 13 लाख रुपये से अधिक है) और सेना के सूत्रों ने कहा कि सशस्त्र बल युद्ध हताहत कोष से 8 लाख रुपये का योगदान भी शामिल है.

कानूनी विशेषज्ञ मेजर नवदीप सिंह (सेवानिवृत्त) ने अग्निवीरों की मृत्यु और विकलांगता लाभों में गंभीर विसंगति की ओर इशारा करते हुए सरकार से इस पर गौर करने का आग्रह किया.

उन्होंने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, ‘विडंबना यह है कि एक अस्थायी प्रशिक्षु सिविल कर्मचारी का परिवार, भले ही वह छुट्टी के दौरान नशे में होने या आत्महत्या करने के कारण दुर्घटना में मर गया हो, पारिवारिक पेंशन का हकदार होगा, लेकिन सियाचिन में इस अग्निवीर युद्ध हताहत के परिवार को यह हक नहीं (असंवेदनशील उदाहरणों/तुलना के लिए खेद है).’

पूर्व नौसेना प्रमुख एडमिरल अरुण प्रकाश ने कहा, ‘इस युवा अग्निवीर ने अभी-अभी लगभग छह महीने का अपना बुनियादी प्रशिक्षण पूरा किया होगा. क्या उसे सियाचिन में तैनात करना एक अच्छा विचार था, जहां का माहौल अनुभवी सैनिकों से भी शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होने की मांग करता है?’