जिला मजिस्ट्रेट को लिखे एक पत्र में त्रिपुरा के ब्रुहापारा बस्ती क्षेत्र के सहायक प्रभारी करणजॉय रियांग ने कहा कि आंतरिक रूप से विस्थापित ब्रू आदिवासी लोग, जिन्हें जातीय संघर्षों के कारण अपने गृह राज्य मिज़ोरम से भागना पड़ा था, उन्हें अक्टूबर 2022 से भत्ता नहीं मिला है, जिससे वे संकट में हैं.
नई दिल्ली: एक नेता ने दावा किया है कि तीन साल पहले एक समझौते के तहत त्रिपुरा के धलाई जिले में पुनर्वासित किए गए लगभग 2,000 ब्रू परिवारों को पिछले साल से मासिक भत्ता नहीं दिया गया है, जिससे वे संकट में हैं.
द प्रिंट में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, जिला मजिस्ट्रेट एसएस जायसवाल को लिखे एक पत्र में ब्रुहापारा बस्ती क्षेत्र के सहायक प्रभारी करणजॉय रियांग ने कहा कि आंतरिक रूप से विस्थापित आदिवासी लोग जिन्हें जातीय संघर्षों के कारण अपने गृह राज्य मिजोरम से भागना पड़ा था, उन्हें अक्टूबर 2022 से भत्ता नहीं मिला है.
राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ब्रू लोगों को भत्ता केंद्र द्वारा दिया जाता है और देरी कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण हो सकती है.
जिला मजिस्ट्रेट को लिखे पत्र में रियांग ने कहा, ‘मासिक नकद सहायता प्राप्त करने में देरी ब्रू परिवारों को बड़ी वित्तीय कठिनाई में डाल देगी. इस संदर्भ में मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया यह सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएं कि उन्हें नकद सहायता मिल सके.’
समझौते के अनुसार, कुल 6,953 ब्रू परिवारों में से प्रत्येक दो साल के लिए 5,000 रुपये का मासिक भत्ता और जमीन का एक टुकड़ा, उस पर घर बनाने के लिए 1.5 लाख रुपये और एकमुश्त 4 लाख रुपये का भत्ता सहित कुछ अन्य सुविधाएं पाने का पात्र है.
जनवरी 2020 में नई दिल्ली में ब्रू समुदाय, केंद्र, त्रिपुरा और मिजोरम सरकारों द्वारा इससे संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.
मिजोरम ब्रू डिस्पलेस्ड पीपुल्स फोरम (एमबीडीपीएफ) के महासचिव ब्रूनो म्शा ने बताया, ‘मासिक भत्ते की अदायगी अनियमित है, जिसकी वजह से ब्रू समुदाय के लोगों को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. ये लोग अपने-अपने स्थानों पर स्थायी रूप से बस चुके हैं. हमने जिला प्रशासन के समक्ष मामले को उठाया था, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है.’
संपर्क करने पर मुख्यमंत्री के ओएसडी परमानंद सरकार बनर्जी ने कहा कि ब्रू परिवारों को भत्ता सीधे केंद्र द्वारा दिया जाता है.
उन्होंने कहा, ‘भत्ता जारी करना लंबित नहीं है. अगर कुछ हुआ है तो यह कुछ तकनीकी खामियों के कारण हो सकता है, क्योंकि भुगतान डिजिटल तरीके से किया जाता है.’
उत्तरी त्रिपुरा के कांचापुर उपखंड में आशापारा ब्रू बस्ती में रहने वाले ब्रूनो म्शा ने यह भी आरोप लगाया कि आश्वासन के बावजूद प्रत्येक परिवार को जमीन नहीं मिली.
समझौते पर हस्ताक्षर करने वालों में से एक म्शा ने दावा किया, 6,953 में से 600 से अधिक ब्रू परिवारों को ‘धलाई और उत्तरी त्रिपुरा जिलों में स्थान बदलने के कारण अभी भी नए क्षेत्रों में पुनर्वासित होना बाकी है’.
रिपोर्ट के अनुसार, 1997 से हजारों ब्रू आदिवासी लोग कंचनपुर और पानीसागर उप-मंडलों में राहत शिविरों में रह रहे हैं. जातीय संघर्ष के कारण वे अपनी मातृभूमि मिजोरम से भागकर पड़ोसी राज्य त्रिपुरा में आ गए थे. अब तक इनकी संख्या 30,000 से अधिक हो गई है.
ब्रू मुद्दा सितंबर 1997 में बांग्लादेश और त्रिपुरा से सटे पश्चिमी मिजोरम के क्षेत्रों को अलग करके एक अलग स्वायत्त जिला परिषद की मांग के बाद शुरू हुआ था. जातीय संघर्ष भड़कने के कारण बड़ी संख्या में ब्रू लोग मिजोरम से त्रिपुरा भाग गए थे.
उस वर्ष 21 अक्टूबर को ब्रू नेशनल लिबरेशन फ्रंट के विद्रोहियों द्वारा एक वन रक्षक की हत्या से स्थिति और खराब हो गई थी.
केंद्र सरकार ने त्रिपुरा और मिजोरम की सरकारों के साथ मिलकर उन्हें उनके गृह राज्य में वापस भेजने की कई बार कोशिश की, लेकिन बहुत कम सफलता मिली. इस तरह का पहला प्रयास नवंबर 2009 में किया गया था और आखिरी प्रयास 2019 में किया गया था.
कई सारे ब्रू परिवारों ने सुरक्षा चिंताओं और अपर्याप्त पुनर्वास पैकेजों का हवाला देते हुए मिजोरम लौटने से इनकार कर दिया था. कुछ अन्य लोगों ने भी समुदाय के लिए एक अलग स्वायत्त परिषद की मांग की थी.
हालांकि, जनवरी 2020 के समझौते ने इन आदिवासी लोगों को त्रिपुरा में स्थायी रूप से बसने की अनुमति दे दी है. जनवरी 2020 में उनके स्थायी पुनर्वास के लिए एक त्रिपक्षीय समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था. इसके तहत फैसला किया गया है कि मिजोरम से विस्थापित हुए 30 हजार से अधिक ब्रू आदिवासी त्रिपुरा में ही स्थायी रूप से बसाए जाएंगे.