मणिपुर में लूटे गए और अब तक गायब बड़ी संख्या में हथियार चिंता का एक बड़ा कारण है. अगर ये हथियार वापस नहीं आते हैं, तो ये गलत हाथों में हैं. उनमें से कई विद्रोहियों के पास जा सकते हैं. मणिपुर हिंसा छह महीने बाद भी लूटे गए हथियारों में केवल एक चौथाई हथियार और 5 प्रतिशत से भी कम गोला-बारूद बरामद हो पाए हैं.
नई दिल्ली: असम राइफल्स के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल पीसी नायर का कहना है कि मणिपुर में बड़ी संख्या में लूटे गए और अब तक गायब हथियार चिंता का एक बड़ा कारण हैं, क्योंकि इनके ‘गलत हाथों’ में पहुंचने की संभावना है.
इंडियन एक्सप्रेस से एक विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने ये टिप्पणी की.
यह कहते हुए कि स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है, नायर ने ‘भ्रष्ट’ और ‘कटु’ भावनाओं से उत्पन्न चुनौती की ओर इशारा किया, जो मेईतेई और कुकी समुदायों के कुछ सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ मन में रखते हैं. जो कि छोटे से उकसावे पर और ‘चयनात्मक’ वीडियो लीक के बाद असंतोष और हिंसा को बढ़ावा देते हैं.
बीते 29 अक्टूबर को इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि लूटे गए लगभग 5,600 हथियारों में से लगभग 1,500 बरामद कर लिए गए हैं और गायब हुए लगभग 6.5 लाख कारतूस में से लगभग 20,000 अब तक पुलिस के पास वापस आ गए हैं.
जब उनसे पूछा गया कि क्या आंतरिक सुरक्षा स्थिति के बीच बड़ी संख्या में गायब हथियार उग्रवाद को पुनर्जीवित कर सकते हैं. नायर ने कहा, ‘अगर ये हथियार वापस नहीं आते हैं, तो ये गलत हाथों में हैं. उनमें से कई विद्रोहियों के पास जा सकते हैं.’
लेकिन उन्हें उम्मीद है कि उग्रवाद को पुनर्जीवित करने के प्रयासों को स्थानीय समर्थन नहीं मिल पाएगा. उन्होंने कहा कि यह उम्मीद इस तथ्य पर आधारित है कि मणिपुर में लोगों ने आर्थिक विकास देखा है और हाल के वर्षों में शांति का अनुभव किया है.
नायर ने कहा, ‘जब से जातीय झड़पें शुरू हुई हैं, हमने भारत-म्यांमार सीमा पर गश्त और निगरानी बढ़ा दी है, लेकिन यह एक खुली सीमा है. हम वहां जमीन के हर इंच पर नहीं रह सकते. लेकिन यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी भी विद्रोह को कायम रखने के लिए जनता के समर्थन की आवश्यकता होती है. हालांकि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि मणिपुर ने हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक विकास और प्रगति देखी है. लोगों ने शांति का स्वाद चखा है.’
जब से मणिपुर में झड़पें शुरू हुई हैं, असम राइफल्स पर अक्सर हमले होते रहे हैं. मणिपुर पुलिस और असम राइफल्स के बीच मनमुटाव की कई घटनाएं हुई हैं, जिसमें कथित तौर पर कुकी उग्रवादियों को भागने की इजाजत देने के लिए असम राइफल्स के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है. हाल के महीनों में राज्य में असम राइफल्स को बदलने की मांग भी बढ़ रही है.
पक्षपात के आरोपों को खारिज करते हुए नायर ने दुष्प्रचार अभियान चलाने के लिए ‘निहित स्वार्थों’ को दोषी ठहराया, हालांकि वीडियो ‘चुनिंदा रूप से प्रसारित’ किए गए थे और पूरी तस्वीर पेश नहीं करते थे.
उन्होंने कहा, ‘दोनों समुदायों के किसी भी आम आदमी से पूछें. वे आपको बताएंगे कि भारतीय सेना के साथ हमने वहां क्या भूमिका निभाई. हम सिर्फ अपना कर्तव्य निभा रहे थे.’
उन्होंने कहा, ‘और लोग हमारे खिलाफ किसलिए थे, क्योंकि हम दोनों समुदायों को आपस में लड़ने से रोक रहे हैं. ऐसे उदाहरण हैं जब एक समुदाय के लोग एक निश्चित कहानी से प्रेरित होकर दूसरे पक्ष पर हमला करने के लिए सामूहिक रूप से जा रहे थे. हमने उन्हें रोका. तो जाहिर है, जब भावनाएं चरम पर होती हैं और उन्हें वह करने से रोका जाता है जो वे करना चाहते हैं, तो कहानियां गढ़ी जाती हैं.’
उन्होंने कहा, ‘लोगों को अब एहसास हो गया है कि असम राइफल्स, सेना के साथ मिलकर इस गड़बड़ी को सुलझा सकती है. यहां के लोगों, इलाके, संस्कृति, परंपराओं को हमसे बेहतर कोई नहीं जानता. निश्चित रूप से, जो दूसरे बल आए, उन्होंने भी मदद की है, लेकिन वे (तुलना में) कुछ कारणों से अक्षम हैं. हमारे पास जिस तरह का संस्थागत ज्ञान और निरंतरता है.’
मणिपुर पुलिस और असम राइफल्स के बीच टकराव और अन्य अर्धसैनिक बलों के साथ काम करने की चुनौती पर नायर ने कहा, ‘जब यह सब शुरू हुआ, तो सुरक्षा बलों ने कभी भी एक-दूसरे, पुलिस और केंद्रीय बलों के साथ मिलकर काम नहीं किया था. लेकिन सबसे बड़ा लाभ यह है कि आज जो भी ऑपरेशन चलाया जा रहा है, वह संयुक्त रूप से हो रहा है.’
राज्य में मौजूदा कानून व्यवस्था की स्थिति के आकलन के संबंध में उन्होंने कहा कि पिछले दो सप्ताह में ज्यादा गोलीबारी की कोई रिपोर्ट नहीं आई है. उन्होंने कहा, ‘मैं देख सकता हूं कि स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है.’
मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 180 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.