छत्तीसगढ़ का नारायणपुर ज़िला राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में मिशनरियों द्वारा ‘जबरन धर्मांतरण’ के भाजपा के दावों का केंद्र बनकर उभरा है. नए साल की शुरुआत पर हालात तब बिगड़ गए थे, जब यहां के विश्वदीप्ति हाई स्कूल के अंदर स्थित सेक्रेड हार्ट चर्च में भीड़ द्वारा तोड़फोड़ की गई थी.
नारायणपुर (छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ के ब्रेहेबेड़ा गांव की 13 वर्षीय सुनीता की नारायणपुर के जिला अस्पताल में 2 नवंबर को टाइफाइड से मौत हो गई.
जब उसका शव घर लाया गया तो बड़ी संख्या में पहुंचे ग्रामीणों ने परिवार को किशोरी के शव को गांव की जमीन पर ईसाई रीति-रिवाज से दफनाने से रोक दिया. इसके बजाय उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि परिवार पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों और परंपराओं से शव को दफनाए.
सुनीता के बड़े भाई 18 वर्षीय मनुपोटाई ने द वायर को बताया, ‘हम भी उन्हीं की तरह आदिवासी हैं, लेकिन वे (ग्रामीण) नहीं चाहते कि हम चर्च जाएं या चर्च के तौर-तरीकों का पालन करें. वे चाहते हैं कि हम पारंपरिक (आदिवासी) नियमों और रीति-रिवाजों का पालन करें. उन्होंने कहा कि अगर हम ईसाई धर्म छोड़ देंगे तो वे हमें उसे दफनाने की अनुमति देंगे. यह समस्या अब यहां हर गांव में व्याप्त है.’
सुनीता को आखिरकार गुरुवार देर शाम (2 नवंबर) को उसके गांव से दूर नारायणपुर जिला केंद्र के पास एक कब्रिस्तान में दफनाया गया. ब्रेहेबेड़ा गांव जिला केंद्र से लगभग 10 किलोमीटर दूर जंगल के अंदर स्थित है.
मनुपोटाई और सुनीता की तरह ही आदिवासी बहुल बस्तर क्षेत्र में कई लोगों ने ईसाई धर्म अपना लिया है. हालांकि, इन लोगों को अन्य ग्रामीणों – जिनमें से कुछ को हिंदुत्व समूहों का समर्थन प्राप्त है – के बढ़ते हमलों का सामना करना पड़ रहा है. वे आदिवासी रीति-रिवाजों और परंपराओं को हिंदू धर्म के बराबर मानते हैं, इसलिए गैर-हिंदू प्रथाओं पर रोक लगाते हैं.
मनुपोटाई ने कहा, ‘अगर (इन चुनावों के बाद) सरकार बदलती है तो यह अच्छा होगा कि वे सभी की बात सुनें. हम इस चुनाव से बस यही चाहते हैं कि जिस तरह से सरकार सबका समर्थन करती है, उसी तरह हमारा भी समर्थन करे और हमारी समस्याओं को सुने. हमारे पास अधिकार तो हैं लेकिन हमारे गांवों में नहीं मिल रहे हैं. उन्हें हमारे अधिकार सुनिश्चित करने चाहिए.’
गांव के धार्मिक मामलों की देखरेख करने वाली देव समिति के सदस्य संतूराम ने कहा कि ईसाइयों को ‘मूल धर्म’ पर वापस आना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘अगर आप सनातन धर्म में नहीं रहते हैं तो आप धर्म रीति (धार्मिक रीति-रिवाजों) का उल्लंघन कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि हमारा गांव उचित रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करे. गांव में देव रीति का पालन करना होगा. मैं किसी का विरोध नहीं कर रहा हूं. वे हमारे भाई-बहन हैं. हम चाहते हैं कि वे मूल धर्म और हमारी देव रीति में वापस आएं. पेसा (PESA/पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996) भी इसकी अनुमति देता है.’
छत्तीसगढ़ में पहले चरण का चुनाव 7 नवंबर को होना है. जिन 20 सीटों पर मतदान हो रहा है, उनमें से 12 सीटें बस्तर संभाग के आदिवासी इलाके में आती हैं. नारायणपुर, जहां 7 नवंबर को मतदान होगा, राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में ईसाई मिशनरियों द्वारा ‘जबरन धर्मांतरण’ के भाजपा के दावों का केंद्र बनकर उभरा है.
सितंबर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया था कि भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार में राज्य में ‘धर्म परिवर्तन की लहर चल पड़ी है.’
दूसरी ओर, कांग्रेस ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है और कहा है कि भाजपा के पास उठाने के लिए कोई मुद्दा नहीं है और इसलिए वह लोगों का ध्रुवीकरण कर रही है.
नारायणपुर चर्च हमले का परिणाम
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, अकेले पिछले साल दिसंबर में नारायणपुर जिले से ईसाई विरोधी हिंसा के 20 से अधिक मामले सामने आए थे.
नए साल की शुरुआत में हालात तब बिगड़ गए जब 2 जनवरी 2023 को नारायणपुर के विश्वदीप्ति हाई स्कूल के अंदर सेक्रेड हार्ट चर्च में तोड़फोड़ की गई. यह हमला इलाके में धर्मांतरण को लेकर आदिवासी समुदाय के साथ पुलिस की बैठक के तुरंत बाद हुआ था.
यह हमला तब हुआ, जब स्कूल का सत्र चल रहा था और परिसर के अंदर बच्चे थे. इस घटना में एक पुलिस अधिकारी घायल हो गया. हमले के बाद भाजपा जिला अध्यक्ष रूपसाई सलाम समेत पांच लोगों को गिरफ्तार किया गया था.
चर्च के पादरी और स्कूल के प्रिंसिपल फादर जोमोन देवासिया ने द वायर को बताया कि नारायणपुर में अपने चार साल के कामकाज के दौरान उन्होंने कभी भी इस तरह की हिंसा की उम्मीद नहीं की थी.
चर्च का अब पुनर्निर्माण किया जा रहा है. हालांकि, हमले के निशान अभी भी बने हुए हैं. शीशे की कई खिड़कियां अभी भी क्षतिग्रस्त हैं और उन्हें अभी तक ठीक नहीं किया गया है. यह एक ऐसा स्थान हुआ करता था, जहां सैकड़ों लोग आते थे.
उन्होंने कहा कि उनका चर्च, जो जगदलपुर डायसिस के अंतर्गत आता है, सात जिलों में पांच दशकों से अधिक समय से अस्पतालों और स्कूलों को सेवाएं प्रदान कर रहा है. हालांकि इस दौरान उन्होंने कभी कोई हिंसा नहीं देखी.
उन्होंने कहा, ‘हमें राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. हम यहां केवल अपने स्कूलों के माध्यम से शिक्षा का प्रसार करने और अपने अस्पतालों के माध्यम से लोगों की मदद करने के लिए हैं. हमारे लिए यह मायने नहीं रखता कि कौन सी पार्टी सत्ता में है, चाहे वह भाजपा हो या कांग्रेस.’
हालांकि, जिला केंद्र से दूर और नारायणपुर के गांवों के अंदर घने वन क्षेत्रों में ग्रामीण अपनी धार्मिक रुचि की कीमत चुका रहे हैं.
6 मार्च को संतेरनाग के 36 वर्षीय बड़े भाई की सुलेंगा गांव में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई. मनुपोटाई की तरह ही संतेरनाग (32) अपने भाई के शव को अस्पताल से घर वापस ले आए और उसे दफनाना चाहते थे.
हालांकि, लगभग पांच से छह लोगों ने परिवार को कब्रिस्तान तक पहुंचने से रोक दिया और कहा कि वे केवल तभी इसकी अनुमति देंगे, जब परिवार पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों का पालन करेगा.
उन्होंने कहा, ‘पहले, गांव के अंदर एक मैदान था जहां हम विश्वासी (जैसा कि आमतौर पर ईसाइयों को कहा जाता है) अपने मृतकों को दफना सकते थे. लेकिन अब वे हमें ऐसा करने की इजाजत नहीं देते. हमने पुलिस से भी हस्तक्षेप करने के लिए कहा. मैंने इन ग्रामीणों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है, जो अभी भी चल रहा है. आखिरकार, मेरे भाई को शहर के पास ईसाई कब्रिस्तान में दफनाया गया.’
कोकोडी गांव में रहने वाली 24 वर्षीय सरिता का 2012 में ईसाई धर्म अपनाने के कारण उनके परिवार ने बहिष्कार कर दिया था. जब वह छोटी थीं तब उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई थी. वह अपने पारिवारिक घर में रहती है, जबकि उनका भाई और उसका परिवार वहां से चले गए.
सरिता ने द वायर को बताया कि वह अलग-अलग गांवों में काम करने जाती हैं, अन्य विश्वासियों (ईसाइयों को आमतौर पर इस शब्द से संदर्भित किया जाता है) के लिए उनके खेतों में छोटे-मोटे काम करती हैं.
उन्होंने कहा, ‘मेरा भाई विश्वासी नहीं है और मुझसे बात नहीं करता और मुझसे कोई लेना-देना रखना नहीं चाहता है. वह नहीं चाहता कि मैं पारिवारिक जमीन पर काम करूं. गांववालों ने उस पर दबाव बनाया है कि वह मुझसे कोई संबंध न रखे. उन्होंने उससे मुझे ईसाई धर्म छोड़ने के लिए मनाने को कहा, लेकिन मैंने इनकार कर दिया. उन्होंने मेरा नाम मनरेगा सूची से काट दिया, इसलिए मुझे गांव से बाहर जाकर काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा.’
सरिता ने कहा कि जब वह छोटी थीं तो लंबी बीमारी के बाद उनके माता-पिता उन्हें चर्च ले गए थे. उन्होंने बताया कि कई डॉक्टरों से मिलने और अस्पतालों में जाने के बाद जब वह चर्च गईं तो उनकी स्थिति सुधरने लगी.
उन्होंने कहा, ‘लोग कहते हैं कि हमें पैसे मिले, इसलिए चर्च जाने लगे या हम पर किसी ने दबाव डाला, लेकिन ऐसा नहीं है. मैं विश्वासी बन गई, क्योंकि मेरी बीमारी के दौरान इसने मेरी मदद की.’
सरिता के ही गांव में रहने वाली जुनाई ने भी कहा कि उन्होंने भी अपनी बीमारी से तंग आकर कुछ विश्वासियों के सुझाव पर चर्च जाना शुरू किया था. वहां प्रार्थना करने के बाद हफ्ते भर की भीतर उनकी परेशानी में सुधार हुआ और वह रोज जाने लगीं.
‘हमें हमारा अधिकार और अलग कब्रिस्तान दो’
संतेरनाग ने कहा, ‘हम पर किसी का दबाव नहीं है. हमने अपनी इच्छा से ईसाई धर्म अपनाया है.’
वह कहते हैं, ‘हम बस इतना चाहते हैं कि हमारे मृतकों को सम्मानपूर्वक दफनाने के लिए आसपास के 4-5 गांवों के विश्वासियों को जमीन आवंटित की जानी चाहिए. कांग्रेस ने हमें आश्वासन दिया है कि अगर वे सत्ता में आए तो हमें जमीन देंगे. लेकिन अगर भाजपा आती है तो हमें ज्यादा उम्मीद नहीं है.’
मनुपोटाई ने कहा कि कांग्रेस कह रही है कि उन्होंने गलती की है (हमें हमारे अधिकार न देकर), इस बार हमारी मदद करेंगे. लेकिन भाजपा ने ऐसा कुछ नहीं कहा है. हमें कांग्रेस जैसी खोखले वादे करने वाली दूसरी सरकार नहीं चाहिए. लेकिन डर यह भी है कि अगर भाजपा सरकार बनाती है तो यहां हिंसा होगी.
धर्मांतरण एक ‘सामाजिक समस्या’ है: भाजपा
इन परिस्थितियों के लिए कांग्रेस और भाजपा एक-दूसरे पर उंगली उठा रहे हैं.
नारायणपुर से कांग्रेस उम्मीदवार चंदन कश्यप, जो मौजूदा विधायक भी हैं, ने कहा कि भाजपा केवल ‘जबरन धर्मांतरण’ के बारे में बात कर रही है, क्योंकि उसके पास उठाने करने के लिए कोई अन्य मुद्दा नहीं है. उन्होंने कहा कि जनवरी की घटना भाजपा द्वारा पूर्व नियोजित थी.
जनवरी में नारायणपुर में चर्च में तोड़फोड़ के सिलसिले में गिरफ्तार किए गए रूपसाई सलाम ने कहा, ‘भाजपा के लिए धर्मांतरण सिर्फ एक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक सामाजिक समस्या है. आदिवासियों का धर्मांतरण एक बड़ा सामाजिक मुद्दा है. कांग्रेस कह रही है कि भाजपा ऐसा कर रही है, लेकिन यह एक सामाजिक समस्या है.’
द वायर ने नारायणपुर से भाजपा उम्मीदवार केदार कश्यप से भी संपर्क किया, लेकिन उनकी ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली.
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