आईआईटी-खड़गपुर द्वारा साल के अंत में होने वाले दीक्षांत समारोह के लिए जारी ड्रेस कोड में कपड़ों-जूतों के साथ छात्राओं को पेटीकोट का रंग, ब्लाउज़ का प्रकार और छात्रों को बनियान का रंग भी बताया गया था. अब संस्थान ने कहा है कि ड्रेस कोड के संबंध में भेजा गया मेल सिर्फ दिशानिर्देश था, अनिवार्य नहीं.
नई दिल्ली: आईआईटी-खड़गपुर में इस साल के अंत में होने वाले 2023 के दीक्षांत समारोह के दौरान छात्रों को क्या पहनना चाहिए और कैसे पहनना चाहिए, को लेकर संस्थान द्वारा जारी दिशानिर्देशों पर सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस धीरे-धीरे विवाद का रूप ले रही है.
द हिंदू की रिपोर्ट बताती है कि सोशल मीडिया पर प्रसारित दिशानिर्देशों के अनुसार, लड़कों को पूरी आस्तीन, घुटने तक की लंबाई के सादे, बिल्कुल सफेद, बंद गले का सूती कुर्ता पहनने को कहा गया. उन्हें निर्देश दिया गया कि ‘कुर्ते के अंदर अंडरशर्ट के तौर पर सफेद बनियान पहनें.’ नीचे ‘सफेद, फिटेड सूती चूड़ीदार या पायजामा’, जिसके साथ भूरे रंग की बंद भारतीय जूती या कोल्हापुरी चप्पल’ होनी चाहिए. कलाई घड़ी पहन सकते हैं, हालांकि अगर कोई आभूषण पहनें, वह गले में एक साधारण चेन, कड़ा, कान के छोटे स्टड और अंगूठी हो सकते हैं.
दूसरी ओर, लड़कियों को सादी, छोटे सुनहरे ज़री बॉर्डर और सादे पल्लू की सफेद सूती साड़ी पहनने को कहा गया है, जो पारसी शैली में प्लीटेड पल्लू और ‘सफेद पेटीकोट के साथ’ पहनी जाए. बताया गया है कि आस्तीन वाला ब्लाउज़ पहना जाए क्योंकि स्लीवलेस और लटकन की अनुमति नहीं है. छात्राओं को भी इसके साथ पांव में भूरे रंग की बंद भारतीय जूती या कोल्हापुरी चप्पल पहनने को कहा गया. वे कलाई घड़ी पहन सकती हैं और यदि आभूषण पहनें, तो ‘गले में सादी चेन, दो साधारण चूड़ी या ब्रेसलेट, कान के स्टड या कुंडल (लटकने वाले नहीं) और अंगूठियां पहनने की अनुमति है.’
किसी संस्थान के लिए दीक्षांत समारोह जैसे आयोजनों के लिए ड्रेस कोड रखना कोई असाधारण बात नहीं है, लेकिन दिशानिर्देशों में दिए गए विवरण (जैसे कि पेटीकोट के रंग का उल्लेख) और प्रतिबंध (स्लीवलेस ब्लाउज़ नहीं) पर लोगों ने ऐतराज़ जताया.
हालांकि, सोमवार शाम संस्थान के एक मीडिया एग्जीक्यूटिव द्वारा भेजे गए ईमेल में कहा गया कि ड्रेस कोड के संबंध में छात्रों को भेजा गया मेल सिर्फ दिशानिर्देश था और अनिवार्य नहीं था.
इससे पहले सोशल मीडिया पर इन दिशानिर्देशों की खासी आलोचना हुई. यह विवाद आईआईटी-गुवाहाटी के प्रोफेसर सुभ्रदीप घोष की एक सोशल मीडिया पोस्ट से शुरू हुआ है, जिन्होंने फेसबुक पर दिशानिर्देश साझा करते हुए तंज़ करते हुए लिखा, ‘इसके आगे क्या आईआईटी-खड़गपुर? संस्कारी फैशन टेक्नोलॉजी स्कूल?’ उनके इस पोस्ट को कई लोगों ने शेयर किया था.
अख़बार से बात करते हुए आईआईटी-खड़गपुर के एक असिस्टेंट प्रोफेसर ने नाम न लिखने की शर्त पर कहा, ‘ऐसा लग रहा है कि संस्थान आज्ञाकारी जवान तैयार करने की कोशिश कर रहा है. यह सिर्फ इस बात को दिखाता है कि बीते तीन-चार सालों से इस संस्थान में क्या चल रहा है. स्वतंत्रता और रचनात्मकता भले भाड़ में जाए.’
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, संस्थान के पूर्व छात्रों, छात्रों और शिक्षाविदों के एक वर्ग का मानना था कि इस तरह का ड्रेस कोड ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पसंद’ पर अंकुश लगाता है.
गोपनीयता की शर्त पर आईआईटी-खड़गपुर के एक रिसर्च स्कॉलर ने अख़बार से कहा, ‘पिछले साल छात्रों को दीक्षांत समारोह के लिए सफेद या ऑफ-ह्वाइट कुर्ता पायजामा या साड़ी पहननी थी. लेकिन इस साल कुछ ज्यादा डिटेलिंग है, जिससे कई लोगों को दिक्कत हुई.’
प्रेसीडेंसी यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के एमेरिटस प्रोफेसर प्रशांत रे का कहना था, ‘चूंकि सभी छात्र एक जैसी सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि से नहीं हैं, इसलिए ये निर्देश अक्सर हीनभावना को जन्म देते हैं.’
अख़बार ने सूत्रों के हवाले से बताया था कि एलजीबीटीक्यू+ समुदाय के सदस्यों सहित कई छात्रों ने दीक्षांत समारोह में शामिल न होने की बात भी कही थी.
आईआईटी-खड़गपुर के एक पूर्व छात्र ने दिशानिर्देश को ‘प्रतिगामी’ करार दिया और कहा कि इसमें छात्र समुदाय को ‘लड़कों’ और ‘लड़कियों’ में बांटकर ट्रांस और नॉन-बाइनरी सदस्यों की अनदेखी की गई है.