फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल द्वारा क़ानूनी एजेंसियों द्वारा ‘अनुचित दखल’ के ख़िलाफ़ सुरक्षा उपाय देने और डिजिटल उपकरणों की तलाशी और ज़ब्ती के लिए व्यापक दिशानिर्देश बनाने की मांग वाली याचिका सुनते हुए जस्टिस एसके कौल ने कहा कि यह गंभीर मामला है. मीडिया पेशेवरों के स्रोत और अन्य चीज़ें होंगी. कुछ दिशानिर्देश होने चाहिए.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि जांच एजेंसियों द्वारा दुरुपयोग को रोकने के लिए पत्रकारों के डिजिटल उपकरणों को जब्त करने के लिए उचित दिशानिर्देश होने की जरूरत है.
लाइव लॉ के अनुसार, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें कानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा ‘अनुचित दखल’ के खिलाफ सुरक्षा उपाय देने और डिजिटल उपकरणों (डिवाइस- मोबाइल फोन, टैबलेट, लैपटॉप आदि) की तलाशी और जब्ती के लिए व्यापक दिशानिर्देश बनाने की मांग की गई थी.
याचिका फाउंडेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल द्वारा दायर की गई थी, जिसका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ अग्रवाल ने किया था.
उन्होंने अदालत को मुद्दों की गंभीरता और ‘एजेंसियों की निरंतर तलाशी और जब्ती की शक्तियों से संवैधानिक गारंटी के लिए उपजने वाले खतरों’ का ज़किर करते हुए कहा:
‘ऐसे सैकड़ों पत्रकार हैं जिनके डिजिटल डिवाइस सामूहिक रूप से छीन लिए गए हैं. इस याचिका में उठाए गए मुद्दे बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कब और क्या जब्त किया जा सकता है, क्या एक्सेस किया जा सकता है, निजी डेटा, स्वास्थ्य डेटा, वित्तीय डेटा के लिए किस तरह की सुरक्षा सुनिश्चित की जाती है, इसके संदर्भ में कोई दिशानिर्देश नहीं हैं… किसी का पूरा डिजिटल फुटप्रिंट है उस एक डिवाइस पर…’
उल्लेखनीय है कि बीते महीने न्यूज़क्लिक से जुड़े पत्रकारों और लोगों पर हुई छापेमारी के दौरान कई पत्रकारों के डिवाइस जब्त किए गए थे. द वायर ने एक रिपोर्ट में बताया कि 90 पत्रकारों से 250 डिवाइस जब्त किए गए थे, और उनमें से किसी को भी अदालतों द्वारा निर्धारित उनके इलेक्ट्रॉनिक आइटम के अनिवार्य हैश वैल्यू नहीं दिए गए थे. हैश वैल्यू से यह मालूम चलता है कि जब्ती के समय डिवाइस में कितना डेटा था, ताकि यह पता चल सके कि बाद में इसके साथ छेड़छाड़ की गई है या नहीं. कुछ लोगों को जब्ती मेमो दिया गया था, लेकिन अधिकांश को यह भी नहीं मिला है.
मंगलवार की सुनवाई के दौरान अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी ) एसवी. राजू ने पीठ से यह कहते कि ‘कई जटिल, कानूनी मुद्दे हैं जिनकी जांच की जानी आवश्यक है’ स्थगन की मांग की.
जस्टिस कौल ने इस बात पर सहमति जाहिर की कि ऐसे दिशानिर्देश होना महत्वपूर्ण है जो पत्रकारों को मनमानी जब्ती से बचाएं. उन्होंने कहा, ‘यह एक गंभीर मामला है. ये मीडिया पेशेवर हैं जिनके पास अपने स्रोत और अन्य चीजें होंगी. कुछ दिशानिर्देश होने चाहिए. अगर आप सब कुछ छीन लेते हैं, तो एक समस्या है. आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि कुछ दिशानिर्देश हों.’
जब एएसजी राजू ने कहा कि जांच एजेंसी को ‘पूरी तरह से’ बंद नहीं किया जा सकता है, तो जज ने कहा कि यह सुनिश्चित करने के लिए दिशानिर्देशों की जरूरत है कि एजेंसी की शक्तियों का दुरुपयोग न हो.
लाइव लॉ के अनुसार उन्होंने कहा, ‘श्री राजू, मुझे एजेंसियों के पास मौजूद किसी प्रकार की सर्व-शक्ति को स्वीकार पाना बहुत मुश्किल हो रहा है… यह बहुत खतरनाक है. आपके पास बेहतर दिशानिर्देश होने चाहिए. अगर आप चाहते हैं कि हम यह करें, तो हम यह करेंगे. लेकिन मेरा विचार यह है कि आपको यह स्वयं करना चाहिए. अब समय आ गया है कि आप यह सुनिश्चित करें कि इसका दुरुपयोग न हो. यह ऐसा राष्ट्र नहीं हो सकता जो केवल अपनी एजेंसियों के माध्यम से चलता हो. हम आपको समय देंगे, कोई मुश्किल नहीं है. लेकिन आपको यह विश्लेषण करना चाहिए कि उनकी सुरक्षा के लिए किस तरह के दिशानिर्देश जरूरी हैं. उस तरह से देखें तो कुछ हद तक, यह प्रतिकूल नहीं है.’
याचिकाकर्ताओं के वकील अग्रवाल का कहना था कि यह देखते हुए कि जांच एजेंसियां लोगों को बायोमेट्रिक जानकारी देने के लिए मजबूर कर रही हैं, यह मुद्दा व्यक्तिगत अधिकारों के खिलाफ सरकार की शक्ति का है. उन्होंने कहा, ‘यह सभी राजनीतिक व्यवस्थाओं द्वारा इस्तेमाल किया जाता है, किसी विशेष सरकार द्वारा नहीं.’ जिस पर जस्टिस कौल ने जवाब दिया, ‘एक सरकार ही दूसरे को सिखाती है.’
सुनवाई के आखिर में जस्टिस कॉल ने कहा, ‘अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने मामले की बेहतर जांच के लिए कुछ समय मांगा है… हालांकि, हमने उनसे कहा है कि हितों का संतुलन होना चाहिए और मीडिया पेशेवरों के हितों की रक्षा के लिए उचित दिशानिर्देश होने चाहिए. हम चाहेंगे कि वे इस पर काम करें और इस मुद्दे पर वापस आएं. ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है कि निजता को एक मौलिक अधिकार माना जाता है..’
मामले की अगली सुनवाई 6 दिसंबर को होगी.
बता दें कि हाल ही में दिल्ली की एक अदालत ने दिल्ली पुलिस को मानहानि के मामले में द वायर के दफ्तर पर क्राइम ब्रांच द्वारा छापा मारे जाने के लगभग सालभर बाद संस्थान पत्रकारों से जब्त किए गए इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को वापस करने का आदेश दिया था. कोर्ट का कहना था कि पत्रकारों के उपकरणों को लंबे समय तक जब्त रखने से प्रेस की स्वतंत्रता पर असर पड़ता है.
अदालत ने पुलिस के इस तर्क को खारिज कर दिया कि बाद की जांच के लिए डिवाइस की जरूरत हो सकती है. इसने कहा कि ‘बाद के चरण में कुछ नए तथ्य सामने आने की धारणा किसी अटकल जैसी है, जो हो भी सकता है और नहीं भी.’