केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल सरकार की उस याचिका का विरोध करते हुए की, जिसमें सीबीआई पर राज्य की सहमति के बिना जांच शुरू करने का आरोप लगाया गया है. नवंबर 2018 में राज्य सरकार ने मामलों की जांच के लिए सीबीआई को दी गई अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली थी.
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बीते गुरुवार (9 नवंबर) को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) एक ‘स्वतंत्र निकाय’ है और केंद्र का ‘इस पर कोई नियंत्रण नहीं है’.
केंद्र ने जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ के समक्ष यह टिप्पणी पश्चिम बंगाल सरकार की उस याचिका का विरोध करते हुए की, जिसमें सीबीआई पर राज्य की सहमति के बिना जांच शुरू करने का आरोप लगाया गया है. नवंबर 2018 में राज्य सरकार ने दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (डीएसपीई) अधिनियम के तहत मामलों की जांच के लिए संघीय एजेंसी को दी गई अपनी सामान्य सहमति वापस ले ली थी.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बंगाल सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत केंद्र के खिलाफ शीर्ष अदालत में मुकदमा दायर किया है, जो किसी राज्य को केंद्र या किसी अन्य राज्य के साथ विवाद के मामले में सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जाने का अधिकार देता है. इसने अदालत से 12 मामलों में सीबीआई की जांच रोकने के लिए केंद्र को निर्देश जारी करने का भी आग्रह किया है.
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के माध्यम से केंद्र को मुकदमे में शामिल करने को ‘शरारती’ करार देते हुए केंद्र के वकील और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, ‘सीबीआई केंद्र सरकार नहीं है. अगर आप सीबीआई के खिलाफ राहत चाहते हैं, तो आपको सीबीआई के खिलाफ मुकदमा दायर करना होगा. इस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है. यह एक स्वतंत्र निकाय है.’
इस पर पीठ ने कहा, ‘लेकिन प्रशासनिक तौर पर यह आपके (केंद्र) नियंत्रण में है. हम समझते हैं कि जांच के तरीके में, सीबीआई को पूर्ण स्वतंत्रता होगी.’
मेहता ने बताया कि केंद्र सरकार के व्यवसाय आवंटन नियमों के अनुसार, सीबीआई डीओपीटी के अंतर्गत आती है, लेकिन जहां तक मामलों की जांच का सवाल है, वह (डीओपीटी) एजेंसी पर कोई ‘कार्यात्मक नियंत्रण’ नहीं रखता है.
मेहता ने कहा, ‘केंद्र सरकार जांच का निर्देश नहीं दे सकती या अभियोजन की निगरानी नहीं कर सकती, क्योंकि किसी मामले में केंद्र के कुछ मंत्रियों पर आरोप लगाया जा सकता है.’ उन्होंने कहा कि डीओपीटी केवल एक कैडर-नियंत्रण प्राधिकरण है. उन्होंने कहा, ‘डीओपीटी केवल जांच एजेंसी के अधिकारियों के स्थानांतरण, नियुक्ति या स्वदेश वापसी से संबंधित है.’
सॉलिसिटर जनरल ने इस आधार पर मुकदमे को खारिज करने की मांग की कि केंद्र के खिलाफ कार्रवाई का कोई कारण नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अगर डीओपीटी अपराध दर्ज करने, अपराध को रद्द करने या जांच की निगरानी करने का निर्देश नहीं दे सकता है, तो मुकदमा डीओपीटी के खिलाफ कैसे हो सकता है.’
बंगाल सरकार की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि मुकदमे में मांगी गई राहत सीबीआई के खिलाफ नहीं है, बल्कि केंद्र के खिलाफ है, जिसके पास डीएसपीई अधिनियम के तहत संघीय एजेंसी द्वारा जांच किए जाने वाले मामलों के अधिकार क्षेत्र को निर्धारित करने की शक्ति है.
उन्होंने यह भी कहा कि सामान्य सहमति वापस लेने के बाद सीबीआई द्वारा राज्य में कोई जांच नहीं की जा सकती है.
सिब्बल ने कहा, ‘सीबीआई की जांच पर निगरानी रखना एक बात है, जो सीवीसी (केंद्रीय सतर्कता आयोग) की भूमिका है, लेकिन यह कहना बिल्कुल अलग बात है कि केंद्र का सीबीआई से कोई लेना-देना नहीं है.’
उन्होंने केंद्र के तर्क को ‘अद्वितीय’ और ‘वैचारिक भ्रम’ का एक उदाहरण बताया. उन्होंने बताया कि मामलों की जांच करने के लिए सीबीआई का अधिकार क्षेत्र राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) जैसी अन्य एजेंसियों के विपरीत, केंद्र द्वारा जारी एक अधिसूचना के माध्यम से निर्धारित किया जाता है. उन्होंने कहा कि वहीं एनआईए या ईडी जैसी अन्य एजेंसियां एक क़ानून के तहत अपनी जांच शक्तियां प्राप्त करती हैं.
इस मामले की अगली सुनवाई 23 नवंबर होगी.