आप अपने घर-परिवार में दीपावली मनाते समय मणिपुर में जारी हिंसा में मारे गए लोगों को याद करें कि आज उनके यहां यह त्योहार कैसे मन रहा होगा? क्या शेष भारत को इस उत्सव मनाते समय नहीं सोचना चाहिए कि उसके अपने ही बंधु-बांधव किस स्थिति में हैं. हमारा कर्तव्य और धर्म बनता है कि उनकी पीड़ा को महसूस करें.
भारत में दीपावली को भारत में जन्मे सभी धर्म उत्साह से उत्सव के रूप में मनाते हैं. हिंदुओं के लिए यह रावण पर राम का विजयोपरांत अयोध्या आगमन के समय मनाया जाने वाला उत्सव रूप है. प्रतीकात्मक रूप से यह बुराई पर अच्छाई की जीत है, अंधकार पर प्रकाश का विजय का उत्सव है.
जैनों के लिए यह महावीर के निर्वाण के बाद पावापुरी में देवताओं ने संसार को पुनर्प्रकाशित करने के दृष्टि से दीपमालाएं जलाईं और उसी स्मृति में दीपोत्सव मनाया जाता है.
बौद्धों की मान्यता है कि कपिलवस्तु में बुद्ध के स्वागत में वहां के नागरिकों ने दीपों को जलाकर अभिनंदन किया था और वहीं प्रसिद्ध सूत्र ‘अप्प दीपो भव’ का बुद्ध ने उपदेश किया, उक्त घटना की स्मृति में ही दीपावली मनाई जाती है.
इन तीनों आर्य परिवार के धर्मों के अनुयायी भिन्न-भिन्न कथाओं के आधार पर दीपावली मनाते आए हैं. इन कथाओं का प्रतीक बिम्ब का सौंदर्य अद्भुत है. भारतीय लोक में कोई भी पर्व-त्योहार का उत्सव सूतक आदि की स्थिति में नहीं मनाया जाता है. यह सूतक जन्म और मृत्यु होने पर लगता है. सूतक के कई नियम हैं किन्तु, सामान्यतया परिवार या खानदान में जन्म अथवा मृत्यु हो तो यह माना जाता है.
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण राज्य मणिपुर है. मणिपुर का अर्थ है, ‘मणियों की भूमि’. इसका वर्णन सुवर्णभू के रूप में भी मिलता है, जिसका अर्थ है स्वर्ण भूमि.
पिछले कई महीनों से यह राज्य जल रहा है. कितनी वीभत्स तस्वीरें यहां से आईं. हिंदुओं के राम, जिन्होंने वनवास एक स्त्री के वचन को पूर्ण करने और रावण वध भी स्त्री के अस्मिता के लिए किया. ऐसे में पिछले दिनों मणिपुर से आईं तस्वीरें कई सवालों को जन्म देती हैं. भारत के लोक आराध्य राम की यह सच्ची आराधना तो नहीं ही है. हमारे यहां तो यह भी कहा गया-
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया:॥
अर्थात, जहां स्त्रियों की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नहीं होती है, उनका सम्मान नहीं होता है, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म निष्फल हो जाते हैं. आखिर राक्षसों और देवताओं में भी यहीं तो अंतर है कि राक्षसों के लिए स्त्रियां भोग का साधन हैं, जबकि देवताओं के लिए संगिनी. ऐसे में मैं मणिपुर से आईं तस्वीरों पर निर्णय करने के लिए पाठकों पर छोड़ता हूं.
यह स्पष्ट है कि किसी रोगी अथवा पीड़ित की पीड़ा और कष्ट को दूर करने के लिए हमें रोगी अथवा पीड़ित बनने कि आवश्यकता नहीं होती है, परंतु होशपूर्वक उसके उपचार आदि की व्यवस्था करना ही पीड़ित को लाभ पहुंचा सकता है.
मणिपुर हिंसा की शुरुआत प्रारंभिक मई से हो गई थी, वह राज्य अब तक भी जल ही रहा है. कितने मंदिर और गिरिजाघर जले, लोग जले और महिलाओं के साथ क्या-क्या नहीं हुआ और तस्वीरें तो शेष भारत में जो पहुंची उसी से हम सबको थोड़ा-बहुत कुछ ज्ञात हुआ. किन्तु, कितने ऐसे मामलात रहे होंगे जिनकी तस्वीरें आई ही न होंगी.
गाजा और इजरायल पर अपलाप करने वाले लोग अपने ही देश के अभिन्न अंग पर कितना लिखे और बोले? यह यक्ष प्रश्न है. उनकी पीड़ाओं को कितना महसूस किए. यहूदियों को यादव बतलाने वाले मीडिया ने मणिपुर में जले हिंदू मंदिरों की ग्राउंड रिपोर्ट दिखाई? इजरायल-फिलिस्तीन युद्ध की ग्राउंड रिपोर्ट दिखाने वाले मीडिया ने मणिपुर पर कितनी चर्चा की? तीन ऋतुएं बीत गईं, वर्षा के जल ने भी मणिपुर की हिंसा की आग को न रोक सकी और अब तो हेमंत आ गया.
आप अपने घर-परिवार में दीपावली मनाते समय मणिपुर में मारे गए लोगों को याद करें कि आज उनके यहां यह त्योहार कैसे मन रहा होगा? क्या शेष भारत को इस उत्सव मनाते समय नहीं सोचना चाहिए कि उसके अपने ही बंधु-बांधव किस स्थिति में हैं. आखिर, वे भी तो भारत माता के संतान हैं. विष्णु पुराण में कहा गया-
उतरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम्।
वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र संततिः॥
अर्थात्, समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है, उसे भारत और संतानों को भारती कहते हैं. ऐसे में मणिपुर के अपने भाइयों-बहनों की पीड़ा, हम शेष भारतीयों की भी पीड़ा हो जाती है.
इसलिए इस दीपावली पर उन्हें श्रद्धांजलि दें और उन्हें जरूर स्मरण करें, क्योंकि कहीं दीप जल रहा कहीं दिल और देह. हमारा कर्तव्य और धर्म बनता है कि उनकी पीड़ा को महसूस करें और उपचार के लिए अग्रसर हों.