क़ब्ज़ाए गए क्षेत्रों में ‘इज़रायली बस्तियों’ के ख़िलाफ़ यूएन प्रस्ताव को भारत का समर्थन

संयुक्त राष्ट्र का मसौदा प्रस्ताव बीते 9 नवंबर को भारी बहुमत से पारित किया गया. इसका शीर्षक ‘पूर्वी येरुशलम सहित क़ब्ज़ा किए गए फिलिस्तीनी क्षेत्र और सीरियाई गोलान में इज़रायली बस्तियां’ था. बीते 28 अक्टूबर को भारत ने जॉर्डन-मसौदा प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी, जिसमें शत्रुता की समाप्ति के लिए संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था.

गाजा में इजरायल के हमले के बाद क्ष​तिग्रस्त इमारतें. (फोटो साभार: ट्विटर/@UNRWAPartners)

संयुक्त राष्ट्र का मसौदा प्रस्ताव बीते 9 नवंबर को भारी बहुमत से पारित किया गया. इसका शीर्षक ‘पूर्वी येरुशलम सहित क़ब्ज़ा किए गए फिलिस्तीनी क्षेत्र और सीरियाई गोलान में इज़रायली बस्तियां’ था. बीते 28 अक्टूबर को भारत ने जॉर्डन-मसौदा प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी, जिसमें शत्रुता की समाप्ति के लिए संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था.

गाजा में इजरायल के हमले के बाद क्ष​तिग्रस्त इमारतें. (फोटो साभार: ट्विटर/@UNRWAPartners)

नई दिल्ली: इजरायल-हमास संघर्ष पर जॉर्डन द्वारा तैयार किए गए प्रस्ताव पर रोक लगाने के दो सप्ताह से भी कम समय के बाद भारत उन 145 देशों में शामिल था, जिन्होंने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था, जिसमें ‘पूर्वी यरुशलम सहित अधिकृत फिलिस्तीनी क्षेत्र और कब्जे वाले सीरियाई गोलान में’ इजरायली उपनिवेश (बस्ती बनाने) गतिविधियों (Israeli Settlement Activities) की निंदा की गई है.

संयुक्त राष्ट्र का मसौदा प्रस्ताव बीते 9 नवंबर को भारी बहुमत से पारित किया गया. इसका शीर्षक ‘पूर्वी यरुशलम सहित कब्जा किए गए फिलिस्तीनी क्षेत्र और कब्जा किए गए सीरियाई गोलान में इजरायली बस्तियां’ था.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, सात देशों – अमेरिका, कनाडा, हंगरी, इजरायल, मार्शल द्वीप, संघीय राज्य माइक्रोनेशिया और नाउरू – ने प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया और 18 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया.

प्रस्ताव के साथ संयुक्त राष्ट्र ने क्षेत्रों में बस्ती बनाने की गतिविधियों की निंदा की और भूमि की जब्ती, संरक्षित व्यक्तियों की आजीविका में व्यवधान, नागरिकों के जबरन स्थानांतरण और भूमि के कब्जे से जुड़ी किसी भी गतिविधि, चाहे वह वास्तविक हो या राष्ट्रीय कानून के माध्यम से, की निंदा की.

बीते 28 अक्टूबर को भारत ने जॉर्डन-मसौदा प्रस्ताव पर रोक लगा दी थी, जिसमें शत्रुता की समाप्ति के लिए तत्काल, टिकाऊ और निरंतर मानवीय संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था. प्रस्ताव में आतंकवादी समूह हमास का कोई जिक्र नहीं किया गया था.

इस प्रस्ताव के विरोध को लेकर स्पष्टीकरण में भारत ने कहा था कि आतंकवाद एक ‘दुर्भावना’ है और इसकी कोई सीमा, राष्ट्रीयता या नस्ल नहीं होती है और दुनिया को आतंकवादी कृत्यों के औचित्य पर विश्वास नहीं करना चाहिए.

इस प्रस्ताव के पक्ष में 121 वोट पड़े थे, 44 देश मतदान में अनुपस्थित रहे और 14 इसके विरोध में थे. इसमें पूरे गाजा पट्टी में नागरिकों को आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के तत्काल, निरंतर, पर्याप्त और निर्बाध प्रावधान की भी मांग की थी. इसका शीर्षक ‘नागरिकों की सुरक्षा और कानूनी तथा मानवीय दायित्वों को कायम रखना’ था.

बीते 9 नवंबर को संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर भारत का मतदान इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर दिल्ली की पारंपरिक स्थिति को दर्शाता है, जहां इसने दो-राज्य समाधान पर बातचीत का समर्थन किया है, जिससे सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर रहने वाले फिलिस्तीन के एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य राज्य की स्थापना इजरायल के साथ शांति से हो सके.