भारत में 5 जीवित अंग दाताओं में से 4 महिलाएं और 5 प्राप्तकर्ताओं में से 4 पुरुष हैं: अध्ययन

एक अध्ययन में पाया गया कि पु​रुषों के लिए अंग प्रत्यारोपण अधिक हुए, लेकिन इस मामले में महिलाओं की संख्या कम थी. अंग दान के लिए अधिकांश महिला का प्राथमिक कारण उन पर परिवार में देखभाल करने वाला होने और देने वाला होने का सामाजिक-आर्थिक दबाव है और चूंकि ज़्यादातर मामलों में पुरुष कमाने वाले होते हैं, इसलिए वे किसी भी सर्जरी से गुज़रने से झिझकते हैं.

/
(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

एक अध्ययन में पाया गया कि पु​रुषों के लिए अंग प्रत्यारोपण अधिक हुए, लेकिन इस मामले में महिलाओं की संख्या कम थी. अंग दान के लिए अधिकांश महिला का प्राथमिक कारण उन पर परिवार में देखभाल करने वाला होने और देने वाला होने का सामाजिक-आर्थिक दबाव है और चूंकि ज़्यादातर मामलों में पुरुष कमाने वाले होते हैं, इसलिए वे किसी भी सर्जरी से गुज़रने से झिझकते हैं.

(इलस्ट्रेशन: परिप्लब चक्रवर्ती/द वायर)

पुणे: देश में अंग प्राप्त करने वाली प्रत्येक महिला के मुकाबले चार पुरुषों का अंग प्रत्यारोपण हुआ है. 1995 से 2021 तक के आंकड़ों से पता चलता है कि 36,640 अंग प्रत्यारोपण किए गए, जिनमें से 29,000 से अधिक पुरुषों के लिए और 6,945 महिलाओं के लिए थे.

विशेषज्ञों का कहना है कि यह बड़ा अंतर आर्थिक और वित्तीय जिम्मेदारियों, सामाजिक दबावों और अंतर्निहित प्राथमिकताओं के कारण था.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (एनओटीटीओ) के निदेशक डॉ. अनिल कुमार ने कहा कि अधिकतर पुरुष मृत अंगदाता होते हैं, जबकि अधिकांश महिलाएं जीवित अंगदाता होती हैं. देश में कुल अंगदान में से 93% जीवित दाता थे. यह अपने आप में एक बयान है कि देश में कई अंग दाता महिलाएं हैं.

2021 में एक्सपेरिमेंटल एंड क्लिनिकल ट्रांसप्लांटेशन जर्नल में प्रकाशित एक पेपर में जीवित अंग प्रत्यारोपण के मामले में देश में भारी लैंगिक असमानता पाई गई है. इसमें 2019 में अंग प्रत्यारोपण का विश्लेषण कर पाया गया कि 80 प्रतिशत जीवित अंग दाता महिलाएं हैं, मुख्य रूप से पत्नी या मां, जबकि 80 प्रतिशत प्राप्तकर्ता पुरुष हैं.

अध्ययन में यह भी पाया गया कि अंग दान करने के लिए अधिकांश महिलाओं का प्राथमिक कारण उन पर परिवार में देखभाल करने वाला होने और देने वाला होने का सामाजिक-आर्थिक दबाव है और चूंकि ज्यादातर मामलों में पुरुष कमाने वाले होते हैं, इसलिए वे किसी भी सर्जरी से गुजरने से झिझकते हैं.

महाराष्ट्र के पुणे में डीवाई पाटिल मेडिकल कॉलेज, अस्पताल और अनुसंधान केंद्र की अंग प्रत्यारोपण समन्वयक मयूरी बर्वे ने कहा कि पिछले 15 वर्षों में वह इस क्षेत्र में काम कर रही हैं, इस दौरान केवल एक बार एक पति अपनी पत्नी को अपना अंग दान करने के लिए लेकर आया था. उन्होंने कहा कि आमतौर पर पत्नियां, माताएं और यहां तक कि पिता भी दान करते हैं.

उन्होंने कहा कि माता और पिता अपने बच्चों के लिए दाता होते हैं. जब दोनों उपलब्ध नहीं होते तो पत्नियां आगे आती हैं. अक्सर, अगर बेटी अविवाहित है, तो वह दाता बन जाती है. हालांकि, अगर पत्नी को किसी अंग की आवश्यकता है, तो सबसे अधिक संभावना है कि उसे प्रतीक्षा सूची में डाल दिया जाएगा.

उन्होंने कहा, ‘अगर प्राप्तकर्ता एक पुरुष है और कमाने वाला है, तो पत्नी या माता-पिता को अंग दान करने की जिम्मेदारी महसूस होती है. जो महिलाएं प्राप्तकर्ता हैं, वे दोषी महसूस करती हैं, अगर उनके परिवार के सदस्यों को अपने अंग दान करने पड़ते हैं और वे उन्हें अपने परिवार से लेने से इनकार करती हैं.’

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले एक दशक में कर्नाटक में अंग और ऊतक दान में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. दान की संख्या 2013 में 102 से बढ़कर 2023 के पहले 10 महीनों में 765 हो गई है.

अकेले इस वर्ष किडनी, लीवर, हृदय और फेफड़े सहित 417 अंग दान हुए हैं. राज्य में ऊतक दान में भी वृद्धि देखी गई है, जिसमें कॉर्निया, हृदय वाल्व और त्वचा दान की गई है. दान में वृद्धि का श्रेय ब्रेन डेड और अंग दान के प्रति बढ़ती जागरूकता को दिया जाता है. अंग दान दर में कर्नाटक, तेलंगाना के बाद दूसरे स्थान पर है.