केंद्र की राज्यों को पैरोल पर रिहा क़ैदियों की निगरानी के लिए ट्रैकिंग डिवाइस के उपयोग की सलाह

गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक अधिनियम में सुझाव दिया गया है कि आवाजाही और गतिविधियों की निगरानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की शर्त पर क़ैदियों को जेल से छुट्टी दी जा सकती है. क़ैदी द्वारा किसी भी उल्लंघन पर इसे रद्द कर दिया जाएगा और भविष्य में ऐसी किसी भी छुट्टी के अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Tum Hufner/Unsplash)

गृह मंत्रालय की ओर से जारी एक अधिनियम में सुझाव दिया गया है कि आवाजाही और गतिविधियों की निगरानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की शर्त पर क़ैदियों को जेल से छुट्टी दी जा सकती है. क़ैदी द्वारा किसी भी उल्लंघन पर इसे रद्द कर दिया जाएगा और भविष्य में ऐसी किसी भी छुट्टी के अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Tum Hufner/Unsplash)

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राज्यों से कहा है कि वे पैरोल पर रिहा होने वाले कैदियों पर ट्रैकिंग उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं. साथ ही दुर्दांत अपराधियों को अन्य श्रेणी के अपराधियों से अलग करने का भी आह्वान किया.

यह सुझाव मॉडल कारागार और सुधार सेवा अधिनियम, 2023 का हिस्सा है, जिसे बीते मई महीने में सभी राज्यों को भेजा गया था. सोमवार (13 नवंबर) को अधिनियम की एक प्रति पहली बार मंत्रालय की वेबसाइट पर प्रकाशित की गई.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इसमें कहा गया है, ‘राज्य कैदी ट्रैकिंग उपकरणों का उपयोग करके जेल से अस्थायी रिहाई/छुट्टी के तहत कैदियों पर इलेक्ट्रॉनिक निगरानी तकनीक का उपयोग कर सकते हैं.’

अधिनियम में कहा गया है, ‘ऐसे कैदियों की आवाजाही और गतिविधियों की निगरानी के लिए इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग डिवाइस पहनने की शर्त पर कैदियों को जेल से छुट्टी दी जा सकती है. कैदी द्वारा किसी भी उल्लंघन पर यह छुट्टी रद्द कर दी जाएगी, साथ ही भविष्य में दी जाने वाली किसी भी छुट्टी से अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, जैसा कि नियमों के तहत निर्धारित किया जा सकता है.’

इस महीने की शुरुआत में जम्मू कश्मीर पुलिस ने जमानत पर छूटे आतंक मामले के एक आरोपी की निगरानी के लिए उसके पैरों पर जीपीएस ट्रैकर लगाया था.

मंत्रालय ने कहा कि जेलों का प्रशासन और प्रबंधन अब तक स्वतंत्रता-पूर्व के दो अधिनियमों – जेल अधिनियम 1894 और कैदी अधिनियम 1900 द्वारा नियंत्रित किया जाता था. समय बीतने के साथ इन औपनिवेशिक अधिनियमों के कई प्रावधान पुराने और अप्रचलित पाए गए ​हैं.

इसमें कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार जेल राज्य का विषय है और इस संबंध में कोई भी नया विधायी दस्तावेज लाना अब राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है.

आगे कहा गया है कि कानूनी स्थिति और आपराधिक न्याय प्रणाली में जेलों के महत्व को ध्यान में रखते हुए गृह मंत्रालय ने अप्रचलित और औपनिवेशिक कानून को बदलने के लिए एक व्यापक अधिनियम को अंतिम रूप दिया है.

जेल में उन्नत सुरक्षा बुनियादी ढांचा

रिपोर्ट के मुताबिक, अधिनियम में कहा गया है कि सभी केंद्रीय और जिला जेलों में उच्च जोखिम वाले कैदी वार्ड के लिए उचित और उन्नत सुरक्षा बुनियादी ढांचे और प्रक्रियाएं मौजूद होंगी. मॉडल अधिनियम कहता है, ‘ऐसी जेलों में अदालती सुनवाई/ट्रायल आयोजित करने के लिए एक स्वतंत्र अदालत परिसर के लिए उचित प्रावधान भी होंगे.’

अधिनियम में कहा गया है कि राज्य जेलों के प्रभावी प्रबंधन और जेलों तथा कैदियों की सुरक्षा के लिए उचित प्रौद्योगिकी का एकीकरण सुनिश्चित करेंगे, जिसमें कैदियों को अदालती सुनवाई/ट्रायल्स में भाग लेने के लिए प्रत्येक जेल में बायोमेट्रिक्स, सीसीटीवी सिस्टम, स्कैनिंग और डिटेक्शन डिवाइस, रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (आरएफआईडी), वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधाएं आदि शामिल हो सकती हैं और कैदियों की आवाजाही के लिए निर्बाध बायोमेट्रिक एक्सेस कंट्रोल सिस्टम प्रदान किया जा सकता है.

यह राज्यों से पूरे जेल प्रशासन को डिजिटल बनाने और डेटाबेस को इंटरऑपरेबल क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के साथ जोड़ने के लिए भी कहता है.

अधिनियम में कहा गया है कि राज्यों को कैदियों द्वारा सेलफोन के अनधिकृत उपयोग पर रोक लगाने के लिए जेलों में उन्नत सेल्युलर जैमिंग और सेल्युलर डिटेक्शन समाधानों का उपयोग करना चाहिए और इसमें जेलों के अंदर फोन के उपयोग के लिए तीन साल की कैद का प्रावधान है.

यह अधिनियम एक वर्गीकरण और सुरक्षा मूल्यांकन समिति की मांग करता है, जो कैदियों को उम्र, लिंग, सजा की अवधि, सुरक्षा और सुरक्षा आवश्यकताओं, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य आवश्यकताओं, सुधारात्मक आवश्यकताओं, बार-बार अपराधियों आदि के अनुसार अलग-अलग कर सकती है, जैसा कि नियमों के तहत निर्धारित किया जा सकता है.

कैदियों का वर्गीकरण और अलग-अलग बैरक

अधिनियम में कहा गया है, ‘अन्य कैदियों को कठोर/अभ्यस्त/उच्च जोखिम वाले कैदियों के नकारात्मक प्रभाव और कट्टरपंथी विचार प्रक्रिया से बचाने की दृष्टि से विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत कैदियों को अलग-अलग बैरकों/बाड़ों/कोठरियों में रखा जा सकता है.’

इसमें पुरुष, महिला और ट्रांसजेंडर लोगों को अलग-अलग करने के लिए भी कहा गया है.

इसमें कहा गया है कि कैदियों को और अलग किया जा सकता है. इन्हें अन्य उप-श्रेणियों जैसे नशीली दवाओं के आदी और शराबी अपराधी, पहली बार अपराध करने वाले, विदेशी कैदी, बूढ़े और अशक्त कैदी (65+ वर्ष), जो संक्रामक या पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं; मानसिक बीमारी; मौत की सजा पाए कैदी; उच्च जोखिम वाले कैदी; बच्चों साथ महिला कैदी और युवा अपराधियों की श्रेणी के तहत अलग से रखा जा सकता है.

इसमें कहा गया है कि खतरनाक और उच्च जोखिम वाले कैदियों को विशेष सेल या उच्च सुरक्षा वाली जेलों में रखा जाना चाहिए. उच्च जोखिम वाले कैदी, दुर्दांत अपराधी और आदतन अपराधी सामान्य तौर पर पैरोल, फर्लो या किसी भी प्रकार की जेल छुट्टी के हकदार नहीं होने चाहिए.