स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लांसेट काउंटडाउन की 8वीं वार्षिक रिपोर्ट में शामिल एक विश्लेषण में कहा गया है कि तापमान में हो रही बढ़ोतरी को प्री-इंडस्ट्रियल लेवेल से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने में होने वाली किसी भी तरह की देरी से दुनियाभर में अरबों लोगों की सेहत और अस्तित्व को विनाशकारी ख़तरा है.
नई दिल्ली: मंगलवार को द लांसेट में प्रकाशित एक विश्लेषण के अनुसार, अगर सदी के अंत तक तापमान 2 डिग्री सेल्सियस (प्री-इंडस्ट्रियल लेवेल से) बढ़ा, तो सदी के मध्य तक सालाना गर्मी से संबंधित मौतों में 370% की वृद्धि होने का अनुमान है.
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक, ये नए वैश्विक अनुमान स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन पर लांसेट काउंटडाउन की 8वीं वार्षिक रिपोर्ट का हिस्सा हैं.
विश्लेषण में इस बात पर जोर दिया गया है कि तापमान में हो रही बढ़ोतरी को प्री-इंडस्ट्रियल लेवेल से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने की कवायद में होने वाली किसी भी तरह की देरी से दुनियाभर में अरबों लोगों की सेहत और अस्तित्व को विनाशकारी खतरा है.
लांसेट काउंटडाउन के कार्यकारी निदेशक मरीना रोमानेलो ने यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन में एक बयान में कहा, ‘हमारे स्वास्थ्य आकलन से पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते खतरे दुनियाभर में जीवन और आजीविका पर भारी पड़ रहे हैं. 2 डिग्री सेल्सियस अधिक गर्म दुनिया के अनुमान एक खतरनाक भविष्य को दर्शाते हैं और एक गंभीर रिमाइंडर है कि अब तक इससे निपटने के लिए किए गए प्रयासों की गति और पैमाने लोगों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए पर्याप्त नहीं हैं.’
उन्होंने जोड़ा, ‘अब भी प्रति सेकेंड 1,337 टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होने के बावजूद हम इतनी तेजी से उत्सर्जन में कमी नहीं कर पा रहे हैं कि जलवायु संबंधी खतरों को उस स्तर के भीतर रख सकें जिससे हमारी स्वास्थ्य प्रणालियां निपट सकें.’
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में यह विश्लेषण विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) सहित दुनियाभर के 52 अनुसंधान संस्थानों और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के 114 प्रमुख विशेषज्ञों के काम का प्रतिनिधित्व करता है, जो स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन के बीच संबंधों का आकलन करते हुए नवीनतम जानकारी देता है.
28वें संयुक्त राष्ट्र कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज (सीओपी) से पहले प्रकाशित विश्लेषण में 47 संकेतक (इंडीकेटर्स) दिए गए हैं जिनमें नए और बेहतर मेट्रिक्स शामिल हैं जो घरेलू वायु प्रदूषण, जीवाश्म ईंधन की फाइनेंसिंग को मॉनिटर करते हैं.
रोमानेलो ने आगे जोड़ा, ‘अब भी उम्मीद बाकी है. सीओपी 28 में स्वास्थ्य केंद्रित प्रतिबद्धताएं और कार्रवाई सुनिश्चित करना एक महत्वपूर्ण मौका है.’
विश्लेषण में कहा गया है कि वर्तमान 10-वर्षीय वैश्विक औसत 1.14 डिग्री सेल्सियस ताप पर भी लोगों ने 2018-2022 में औसतन 86 दिनों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक उच्च तापमान का अनुभव किया, जिनमें से 60% से अधिक की संभावना मानव निर्मित जलवायु परिवर्तन के कारण दोगुने से अधिक थी. 1991-2000 की तुलना में 2013-2022 में 65 वर्ष से अधिक आयु के लोगों में गर्मी से संबंधित मौतों में 85% की वृद्धि हुई, जो तापमान में बदलाव न होने पर अपेक्षित 38% वृद्धि से काफी अधिक है.
विश्लेषण में दावा किया गया है कि 1981 और 2010 के बीच सालाना की तुलना में 2021 में 122 देशों में 127 मिलियन से अधिक लोगों को मध्यम से गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना करने के लिए लगातार तेज़ गर्मी (हीट वेव) और सूखा जिम्मेदार था.
इसमें यह कहा गया है कि इसी तरह, बदलते मौसम के मिजाज से जानलेवा संक्रामक बीमारियों का प्रसार तेज हो रहा है. उदाहरण के लिए, गर्म समुद्रों ने विब्रियो बैक्टीरिया के प्रसार के लिए उपयुक्त विश्व के समुद्र तट के क्षेत्र को 1982 के बाद से हर साल 329 किमी तक बढ़ा दिया है, जो मनुष्यों में बीमारी और मौत का कारण बन सकता है, जिससे रिकॉर्ड 1.4 बिलियन लोगों को डायरिया, गंभीर घाव संक्रमण और सेप्सिस का खतरा है. वैज्ञानिकों ने कहा कि खतरा विशेष रूप से यूरोप में अधिक है, जहां विब्रियो-उपयुक्त तट में हर साल 142 किमी की वृद्धि हुई है.
बदलती जलवायु से बढ़ते स्वास्थ्य नुकसान से लोगों को बचाने के लिए स्वास्थ्य सेवा प्रणालियां पहला उपाय हैं. लेकिन विश्लेषण में कहा गया है कि वर्तमान 1.14 डिग्री सेल्सियस तापमान भी स्वास्थ्य सेवाओं पर गंभीर दबाव डाल रहा है, जहां सर्वेक्षण में शामिल 27% (141/525) शहरों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अपनी स्वास्थ्य प्रणालियों के प्रभावित होने पर चिंता व्यक्त की है.
कहा गया है कि 2022 में चरम मौसम की घटनाओं के परिणामस्वरूप होने वाले आर्थिक नुकसान का कुल मूल्य 264 बिलियन डॉलर होने का अनुमान लगाया गया था, जो 2010-2014 की तुलना में 23% अधिक है. गर्मी के संपर्क में आने से 2022 में वैश्विक स्तर पर 490 अरब संभावित श्रम घंटों का नुकसान हुआ (1991-2000 से लगभग 42% की वृद्धि), जो निम्न (6.1%) और मध्यम आय (3.8%) वाले देशों में आय हानि और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बहुत अधिक अनुपात के लिए जिम्मेदार है. ये नुकसान तेजी से आजीविका को नुकसान पहुंचा रहे हैं, साथ ही जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने और उबरने की क्षमता को सीमित कर रहे हैं.