कानपुर और गुवाहाटी के आईआईटी में कैंपस प्लेसमेंट के दौरान कुछ कंपनियों ने छात्रों से उनकी जातीय पृष्ठभूमि या संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) में प्राप्त रैंक का उल्लेख करने के लिए कहा था. एसटी/एचसी छात्रों ने आशंका जताई है कि इस डेटा का इस्तेमाल प्लेसमेंट प्रक्रिया के दौरान और संभवत: बाद में कार्यस्थल पर उनके साथ भेदभाव करने के लिए किया जा सकता है.
नई दिल्ली: आईआईटी में कैंपस प्लेसमेंट साक्षात्कार आयोजित करने वाली कुछ कंपनियों ने छात्रों से उनकी जातीय पृष्ठभूमि या तीन साल पहले संयुक्त प्रवेश परीक्षा में प्राप्त रैंक का उल्लेख करने के लिए कहा है, जिसको लेकर भेदभाव को बढ़ावा दिए जाने के आरोप लग रहे हैं.
द टेलीग्राफ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, छात्रों ने आईआईटी प्रशासन पर मिलीभगत का आरोप लगाया है. कुछ छात्रों का मानना है कि यह डेटा अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के छात्रों के करिअर के लिए संभावित जोखिमपूर्ण हो सकता है.
कानपुर और गुवाहाटी के आईआईटी में कुछ एससी और एसटी छात्रों ने ये चिंताएं व्यक्त की हैं, जब उनसे कैंपस प्लेसमेंट साक्षात्कार में उपस्थित होने के लिए फॉर्म जमा करने के लिए कहा गया था, जिसमें जेईई एडवांस्ड में उनकी रैंक और उनके समुदाय के विवरण मांगे गए थे.
उदाहरण के लिए लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने आईआईटी कानपुर के छात्रों के बीच जो फॉर्म बांटें, उनमें उनकी जाति संबंधी जानकारी मांगी गई थी.
निवा बूपा और मेरिलिटिक्स ने जेईई एडवांस में आईआईटी कानपुर के छात्रों द्वारा हासिल की गई रैंक मांगी थी, जो उन्हें 2020 में मिली थी.
जगुआर और लैंड रोवर (जेएलआर) ने आईआईटी गुवाहाटी के छात्रों की जेईई रैंक मांगी थी.
कैंपस प्लेसमेंट प्रक्रिया, जिसमें चौथे वर्ष के बीटेक छात्र भाग लेते हैं, वर्तमान में आईआईटी में चल रही है. भाग लेने वाली सभी कंपनियों ने जाति या जेईई रैंक के बारे में प्रश्न नहीं पूछे हैं.
एससी और एसटी छात्र चिंतित हैं कि उनकी जेईई रैंक से उनके संभावित नियोक्ताओं को पता चल जाएगा कि उन्होंने आरक्षित श्रेणियों में आईआईटी में प्रवेश प्राप्त किया है, जिनके कट-ऑफ अंक सामान्य श्रेणी के छात्रों की तुलना में कम हैं.
आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र धीरज सिंह, जो अब एक कार्यकर्ता हैं, ने एससी और एसटी आयोगों और शिक्षा मंत्रालय के पास अलग-अलग शिकायतें दर्ज की हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि आईआईटी जातिगत भेदभाव करने की कथित कोशिश में कंपनियों के साथ मिले हुए हैं.
उन्हें डर है कि डेटा का इस्तेमाल प्लेसमेंट प्रक्रिया के दौरान और संभवतः बाद में कार्यस्थल पर उनके साथ भेदभाव करने के लिए किया जा सकता है. छात्रों ने विभिन्न वॉट्सऐप ग्रुप में अपनी चिंता व्यक्त की है.
सिंह ने द टेलीग्राफ से कहा, ‘जब इंजीनियरिंग ज्ञान के आधार पर नौकरियां दी जाती हैं तो चार साल के जेईई डेटा का क्या मतलब है?’
उन्होंने कहा, ‘जेईई रैंक या सामाजिक पृष्ठभूमि के डेटा का उपयोग चयन प्रक्रिया के दौरान एससी और एसटी छात्रों को बाहर करने के लिए किया जा सकता है. भविष्य में कार्यस्थल पर डेटा का दुरुपयोग किया जा सकता है. यह निजता का भी उल्लंघन है.’
सिंह और कुछ अन्य पूर्व छात्रों ने कहा कि कुछ कंपनियां हर साल ऐसी जानकारी मांगती हैं, लेकिन छात्रों ने पहले शायद ही कभी इसका विरोध किया हो.
कुछ साल पहले आईआईटी कानपुर में एक विरोध प्रदर्शन हुआ था, जब एक कंपनी ने जेईई एडवांस्ड की सामान्य मेरिट सूची में एक निश्चित रैंक से नीचे के उम्मीदवारों को आवेदन करने से रोक दिया था. इससे अधिकांश एससी और एसटी छात्र वंचित रह गए. विरोध के बाद तत्कालीन आईआईटी निदेशक अभय करंदीकर ने हस्तक्षेप किया और कंपनी ने अपने पात्रता मानदंड में संशोधन किया था.
पिछले साल प्लेसमेंट प्रक्रिया में भाग लेने वाले 2023 के एक स्नातक छात्र ने कहा कि वंचित समुदायों के कई छात्र शर्म के कारण इन फॉर्मों को नहीं भरते हैं और इसलिए प्लेसमेंट के अवसरों से चूक जाते हैं.
अपनी शिकायत में धीरज सिंह ने एससी आयोग से आईआईटी को यह सुनिश्चित करने का निर्देश देने के लिए कहा है कि कोई भी कंपनी छात्रों को उनकी सामाजिक पृष्ठभूमि या जेईई रैंक का खुलासा करने के लिए मजबूर नहीं कर सकती है, जब तक कि भर्ती करने वाली कंपनियां आरक्षण लाभ प्रदान न कर रही हों.
ऐसे डेटा से कार्यस्थल पर होने वाले संभावित भेदभाव से जुड़ा एक उदाहरण अटलांटा में आईटी कर्मचारी अनिल वागड़े ने बताया. विभिन्न भारतीय कॉरपोरेट घरानों के साथ काम कर चुके वागड़े ने कहा कि भारतीय कंपनियों का अपने कार्यबल (Workforce) में सामाजिक विविधता सुनिश्चित करने में खराब रिकॉर्ड रहा है.
उन्होंने कहा, ‘मैं उन्हें इस संदेह का लाभ देने के लिए तैयार हूं कि वे सकारात्मक भेदभाव के लिए ऐसा कर रहे हैं, लेकिन मुझे कैसे पता चलेगा कि डेटा लीक या इसका दुरुपयोग नहीं होगा?’
उन्होंने बताया कि पिछले पांच वर्षों में कैलिफोर्निया में जातिगत भेदभाव से संबंधित कई मामले दर्ज किए गए हैं. 2020 में आईटी फर्म सिस्को के एक दलित कर्मचारी को कथित तौर पर एक परियोजना से स्थानांतरित कर दिया गया था क्योंकि उसके भारतीय सीनियर को उसकी जाति के बारे में पता चल गया था.
द टेलीग्राफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि निवा बूपा और मेरिलिटिक्स ने आरोपों पर अपना दृष्टिकोण रखने के लिए उनके ईमेल प्रश्नों का जवाब नहीं दिया.
एलएंडटी के मुख्य संचार अधिकारी सुमीत चटर्जी ने कहा कि कंपनी जाति, पंथ, रंग या सेक्सुअल ओरिएंटेशन जैसे कारकों के आधार पर समान अवसर और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों को कायम रखते हुए एक समावेशी और विविध कार्यस्थल को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है.
जेएलआर के प्रवक्ता द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान में कहा गया है, ‘जेएलआर अपनी चयन प्रक्रियाओं के दौरान किसी भी कारण से किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ उसके डेटा के दुरुपयोग के किसी भी आरोप का स्पष्ट रूप से खंडन करता है. जेएलआर एक समान अवसर नियोक्ता के रूप में है, जो उन समाजों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक विविध, समावेशी कार्यस्थल को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसमें हम दुनिया भर में काम करते हैं.’