पूर्वोत्तर राज्यों के मामलों की सुनवाई करने के बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष जस्टिस अरुण कुमार ने कहा कि मणिपुर हिंसा में एक विशेष तारीख तक 180 लोग मारे गए थे, लेकिन 93 लोगों को ही 10 लाख रुपये का मुआवज़ा मिला है. चार सप्ताह के भीतर सरकार सभी को मुआवज़ा जारी करे.
नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बीते शुक्रवार (17 नवंबर) को कहा कि उसने मणिपुर सरकार से मई के बाद से जातीय झड़पों में मारे गए सभी लोगों के परिजनों को चार सप्ताह के भीतर 10-10 लाख रुपये मुआवजा देने को कहा है.
द हिंदू के मुताबिक, पूर्वोत्तर राज्यों के मामलों की सुनवाई के लिए गुवाहाटी में अपना दो दिवसीय शिविर पूरा करने के बाद एनएचआरसी ने मणिपुर सरकार को क्षतिग्रस्त घरों का आकलन पूरा करने और प्रत्येक पीड़ित को छह सप्ताह के भीतर 10 लाख रुपये मुआवजा देने का भी आदेश दिया.
आयोग ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह मणिपुर से गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 2 और 37 पर नाकाबंदी हटाए.
एनएचआरसी के अध्यक्ष जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, ‘हमें बताया गया है कि हिंसा में मारे गए 93 लोगों के परिजनों को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है. एक विशेष तारीख तक 180 लोग मारे गए थे. हमने उनसे शेष लोगों के परिजनों को मुआवजा देने की प्रक्रिया चार सप्ताह के भीतर पूरी करने और हमें रिपोर्ट करने को कहा है.’
उन्होंने कहा कि हिंसा के दौरान क्षतिग्रस्त हुए घरों के पुनर्निर्माण के संबंध में आयोग ने मणिपुर सरकार को मौजूदा योजना के अनुसार मुआवजा वितरित करने के लिए छह सप्ताह के भीतर मूल्यांकन पूरा करने का निर्देश दिया है.
जस्टिस मिश्रा ने कहा, ‘सरकार घरों के पुनर्निर्माण के लिए 10 लाख रुपये के मुआवजे का प्रस्ताव कर रही है. उन्हें इस प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कहा गया है, ताकि घरों का पुनर्निर्माण जल्द शुरू हो सके.’
उन्होंने कहा, ‘यह देखते हुए कि मणिपुर के कुछ हिस्सों में हिंसा अभी भी जारी है, एनएचआरसी ने राज्य सरकार से स्थिति को बहाल करने और राष्ट्रीय राजमार्ग-2 और 37 पर नाकाबंदी को जल्द से जल्द हटाने के लिए एक रोडमैप तैयार करने को कहा है.’
जस्टिस मिश्रा ने आगे कहा कि आयोग ने जिरीबाम को इंफाल के साथ जोड़ने वाली सुरंगों और रेल पटरियों के निर्माण की एक परियोजना के कार्यान्वयन के दौरान पूर्वोत्तर सीमांत रेलवे (एनएफआर) की लापरवाही के कारण हुई 57 लोगों की मौत, 18 घायल और 4 लोगों के लापता होने से संबंधित मामले की भी सुनवाई की.
उन्होंने कहा, ‘बुनियादी सुविधाओं की अनुपलब्धता के कारण चुराचांदपुर में जिला अस्पताल की खराब स्थिति और मणिपुर में हिंसा की घटनाओं की शिकायतें भी सुनी गईं.’
बता दें कि 3 मई को मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेईतेई समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकता मार्च’ आयोजित होने के बाद से हुईं जातीय झड़पों में 180 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है और सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हुए हैं.
मणिपुर की आबादी में मेइतेई लोगों की संख्या लगभग 53 फीसदी है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासी – नगा और कुकी – 40 फीसदी से कुछ अधिक हैं और पहाड़ी जिलों में रहते हैं.