हरमीत सिंह ग्रेवाल और दीपिंदर सिंह नलवा उन पांच वकीलों में शामिल थे, जिनकी सिफारिश कॉलेजियम ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए की थी. केंद्र सरकार ने तीन अन्य नामों की नियुक्ति को तो अधिसूचित कर दिया, लेकिन ग्रेवाल और नलवा के नामों को मंज़ूरी नहीं दी थी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते सोमवार (20 नवंबर) को हाईकोर्ट जज के रूप में दो सिख वकीलों की नियुक्ति न करने पर केंद्र सरकार को आड़े हाथों लिया. साथ ही एक बार फिर से यह कहा कि न्यायाधीशों के स्थानांतरण और नियुक्ति के लिए ‘पिक एंड चूज’ दृष्टिकोण से शर्मिंदा करने वाले नतीजे सामने आएंगे.
बार एंड बेंच के अनुसार, जस्टिस संजय किशन कौल और सुधांशु धूलिया की पीठ ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जजों के रूप में नियुक्ति के लिए वकील हरमीत सिंह ग्रेवाल और दीपिंदर सिंह नलवा के नामों को मंजूरी देने में सरकार की विफलता का उल्लेख किया.
यह दोनों नाम उन पांच वकीलों में शामिल थे, जिनकी नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने 17 अक्टूबर को सिफारिश की थी. 2 नवंबर को केंद्र सरकार ने तीन अन्य वकीलों की नियुक्ति को अधिसूचित किया, लेकिन ग्रेवाल और नलवा का नाम उनमें नहीं था.
बार एंड बेंच के अनुसार, जस्टिस कौल ने कहा, ‘जिन दो उम्मीदवारों के नामों को मंजूरी नहीं मिली है, वे दोनों ही सिख हैं. यह नौबत क्यों आनी चाहिए? अतीत के मुद्दों को वर्तमान लंबित मुद्दों से न जुड़ने दें.’
अदालत ने अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी से कहा कि ‘पिक एंड चूज’ की नीति अच्छी छाप नहीं छोड़ती है.
एजी ने कहा कि देरी चुनावों के कारण हुई है और दोहराए गए उम्मीदवारों के नामों के संबंध में प्रगति हुई है, जबकि शीर्ष अदालत ने पाया कि 50 फीसदी नामों को भी मंजूरी नहीं दी गई है.
द हिंदू के अनुसार, पीठ ने यह भी चेतावनी दी कि इस तरह की नीति से नए न्यायाधीशों के शपथ ग्रहण को टालने या न्यायाधीशों को न्यायिक कार्य से हटाने जैसे ‘शर्मनाक’ परिणाम सामने आ सकते हैं.
अखबार के मुताबिक, जस्टिस कौल ने एजी को बताया, ‘कुछ स्तर पर यह होगा कि हम उन जजों को उस अदालत में काम नहीं करने देंगे, जिनमें हम उन्हें काम करने देना नहीं चाहते हैं. कृपया ऐसा न होने दें. यह जजों के अधिकार को कमजोर कर देगा. यह इन जजों को शर्मिंदा करेगा.’
हाल ही में, गौहाटी हाईकोर्ट ने वकील कौशिक गोस्वामी का अदालत के जज के रूप में शपथ ग्रहण स्थगित कर दिया था. सरकार ने एन. उन्नीकृष्णन नायर के नाम को मंजूरी नहीं दी थी. उनकी भी सिफारिश कॉलेजियम ने जज बनाने के लिए की थी, लेकिन गोस्वामी के वरिष्ठ के तौर पर. हालांकि सरकार ने केवल गोस्वामी की नियुक्ति को मंजूरी दी. हाईकोर्ट द्वारा गोस्वामी का शपथ ग्रहण स्थगित करने के बाद सरकार ने दो दिन बाद नायर को नियुक्ति दे दी.
द हिंदू के अनुसार, जस्टिस कौल ने सोमवार को एक बार फिर कहा कि अगर किसी उम्मीदवार को नहीं पता कि उसे क्या वरिष्ठता मिलेगी, तो ‘अन्य पात्र और योग्य उम्मीदवारों को पीठ में शामिल होने के लिए राजी करना मुश्किल होगा.’
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने पीठ से कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अगले 24 घंटों के भीतर सभी लंबित नामों को मंजूरी देने के लिए सरकार को एक आदेश जारी करना चाहिए.
एजी द्वारा अदालत को कार्रवाई का आश्वासन दिए जाने के बाद मामले को 5 दिसंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया गया.
शीर्ष अदालत न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी को लेकर बेंगलुरु अधिवक्ता संघ द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
बता दें कि जजों की नियुक्ति और तबादलों को लेकर कॉलेजियम और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच खींचतान चल रही है. सरकार अक्सर कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को मंजूरी देने से इनकार करती रही है.
विशेषज्ञों का मानना है कि इससे कॉलेजियम की शक्ति कम हो गई है और सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से न्यायिक नियुक्तियों को प्रभावित करने की अनुमति मिल गई है.
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