जम्मू कश्मीर पुलिस के नवनियुक्त महानिदेशक आरआर स्वैन ने कहा है कि वे उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करेंगे जो लोगों को भड़काने के लिए बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पीछे छिपते हैं. उनकी यह टिप्पणी जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा पत्रकार फहद शाह को ज़मानत दिए जाने के अगले दिन आई है.
नई दिल्ली: अज्ञात ‘लेखकों’ और कश्मीर में आतंकवाद की भर्ती के बीच संबंध स्थापित करने का प्रयास करते हुए जम्मू कश्मीर पुलिस के महानिदेशक आरआर स्वैन ने बिना कोई उदाहरण दिए चेतावनी दी है कि इस तरह के किसी भी ‘लेखन’ को’ आतंकवादी कृत्य’ माना जाएगा.
शनिवार (18 नवंबर) को श्रीनगर में पत्रकारों से बात करते हुए स्वैन ने कहा कि आतंकवादी गुटों द्वारा कश्मीरी युवाओं की भर्ती को ‘आतंकवादी कृत्य के तौर पर देखा जाएगा’ और और जो लोग कथित तौर पर आतंकवादी भर्ती में ‘मदद या सहयोग’ देते हैं, उन्हें भी ‘समान रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा.’
डीजीपी स्वैन ने कहा, ‘उन लोगों के खिलाफ निरंतर कार्रवाई की जाएगी जो (जम्मू-कश्मीर में युवाओं को आतंकवाद के लिए) प्रेरित और भर्ती करते हैं. यहां तक कि जो लोग बहुत अलग तरह से लिखते हैं, वे भी भर्ती को प्रोत्साहित करने के जिम्मेदार हैं.’
उन्होंने कहा, ‘हम उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे जो लोगों को भड़काने के लिए बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पीछे छिपते हैं. हम इसे बर्दाश्त नहीं करेंगे.’
नवनियुक्त डीजीपी की टिप्पणी जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट द्वारा पत्रकार फहद शाह के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम-1967 (यूएपीए) की धारा 18 (आतंकवादी साजिश) और 121 (देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने) के तहत आरोपों को खारिज करने के एक दिन बाद आई है. हाईकोर्ट ने उन्हें आतंकवाद विरोधी मामले में जमानत दे दी.
राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) ने यूएपीए और विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया था. इसने दावा किया था कि इसे ‘स्रोत से जानकारी’ मिली थी कि शाह द्वारा श्रीनगर में संचालित न्यूज आउटलेट ‘द कश्मीर वाला’ ने एक लेख प्रकाशित किया था, जो ‘भारतीय संघ को तोड़ने’ और ‘जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने और इसके बाद पाकिस्तान में शामिल करने’ के लिए ‘चल रहे अभियान’ का हिस्सा था.
शाह और कश्मीर विश्वविद्यालय के स्कॉलर आला फ़ाज़िली, जिन्होंने ‘गुलामी की बेड़ियां टूट जाएंगी’ शीर्षक से लेख लिखा था, पर इस साल की शुरुआत में मामला दर्ज किया गया था और गिरफ्तार किया गया था.
जम्मू कश्मीर पुलिस की विशेष आतंकवाद विरोधी शाखा, आपराधिक जांच विभाग के प्रमुख के रूप में, डीजीपी स्वैन उस समय एसआईए का नेतृत्व कर रहे थे जब 4 अप्रैल 2022 को जम्मू के सीआईजे पुलिस थाने में मामला दर्ज किया गया था और आला एवं शाह को आरोपी बनाया गया था.
जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के मामलों से निपटने की व्यापक शक्तियां रखने वाली इस विशिष्ट एजेंसी ने अपने आरोप-पत्र में दावा किया था कि यह लेख जम्मू कश्मीर में ‘हिंसा भड़काने’ के लिए पाकिस्तान द्वारा रची गई ‘आतंकवादी साजिश’ का हिस्सा था, जिससे ‘सार्वजनिक व्यवस्था में बाधा उत्पन्न’ हुई.
आला और शाह पर शांति भंग करने, आतंकवाद और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप लगाया गया था.
हालांकि, शाह के वकील और वरिष्ठ अधिवक्ता पीएन रैना ने आरोपों को खारिज करते हुए यह तर्क दिया था कि एसआईए ने लेख के प्रकाशन के 11 साल बाद ‘रहस्यमय तरीके से’ इसे ढूंढ़ निकाला था और लेख के प्रकाशन के बाद हिंसा, शांति भंग या किसी आतंकवादी हमले का कोई प्रमाण नहीं है.
शाह की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने कहा था कि लेख में जम्मू कश्मीर को भारत से अलग करने का आह्वान किया गया है और भारत सरकार पर कश्मीरियों का नरसंहार करने का भी आरोप लगाया गया है.
हालांकि, कथित लेख, जिसे अभियोजन पक्ष ने यूएपीए की धारा 15 (1) (ए) (ii) के तहत ‘आतंकवादी कृत्य’ के रूप में परिभाषित करने की मांग की थी, से जीवन या संपत्ति को हुए भौतिक नुकसान के साक्ष्य के अभाव में पीठ इस बात से सहमत नहीं थी कि विवादास्पद लेख ‘देश पर हमला’ और ‘आतंकवादी कृत्य था.
इसके बजाय, अदालत ने शाह को जमानत देते हुए लेख को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से जोड़ दिया.शाह अब यूएपीए की धारा 13 (गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देना) और एफसीआरए उल्लंघन के तहत मुकदमे का सामना करेंगे.
कोर्ट ने इसी साल मार्च में आला और शाह के खिलाफ आरोप तय किए थे.
शाह, जिन पर जम्मू कश्मीर पुलिस द्वारा तीन अन्य अपराधों में मामला दर्ज किया गया है, को इस साल की शुरुआत में सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) के तहत ऐहतियातन हिरासत में भी लिया गया था. हालांकि, पीएसए की कार्यवाही को भी हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था.
द कश्मीर वाला के खिलाफ मामले की जांच करने वाले एसआईए का गठन जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद ‘आतंकवाद से संबंधित मामलों की त्वरित और प्रभावी जांच और अभियोजन’ के लिए किया गया था. जम्मू कश्मीर के विपक्षी दलों ने इसका यह कहकर विरोध किया था कि इसका उद्देश्य ‘दमनकारी तंत्र को मजबूत करना’ है.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)