इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर चीफ जस्टिस के उनके तबादले को उत्पीड़न कहने समेत अन्य ख़बरें

द वायर बुलेटिन: आज की ज़रूरी ख़बरों का अपडेट.

(फोटो: द वायर)

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इलाहाबाद हाईकोर्ट से रिटायर हो रहे मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर ने कहा कि 2018 में कॉलेजियम द्वारा उनका ट्रांसफर उन्हें ‘परेशान करने’ के इरादे से किया गया था. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस दिवाकर मंगलवार को उनके विदाई समारोह में बोल रहे थे. 2018 में तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक ममिश्रा की अगुवाई वाले कॉलेजियम ने उनका तबादला छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से इलाहाबाद हाईकोर्ट में किया था. मंगलवार को उन्होंने कहा कि वे छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट जज के तौर पर काम करते हुए संतुष्ट थे जब अचानक देश के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने ‘अतिरिक्त स्नेह दिखाते हुए’ उनका ट्रांसफर इलाहाबाद कर दिया. ‘ऐसा लगता है कि मेरा ट्रांसफर ऑर्डर मुझे परेशान करने के गलत इरादे से जारी किया गया. हालांकि, क़िस्मत ऐसी रही कि यह अभिशाप मेरे लिए वरदान में बदल गया क्योंकि मुझे अपने साथी जजों के साथ-साथ बार के सदस्यों से अथाह समर्थन और सहयोग मिला.’ इस साल की शुरुआत में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाले वर्तमान कॉलेजियम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पद के लिए जस्टिस दिवाकर के नाम की सिफारिश की थी. इसे लेकर उन्होंने कहा कि वे ‘सीजेआई चंद्रचूड़ के आभारी हैं जिन्होंने उनके साथ हुए अन्याय को सुधारा.’

एक रिपोर्ट में सामने आया है कि अमेरिकी अधिकारियों ने संयुक्त राष्ट्र अमेरिका में खालिस्तान के अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू को मारने की साजिश को विफल किया था और भारत को चेतावनी दी थी. फाइनेंशियल टाइम्स ने मामले से परिचित लोगों का हवाला देते हुए अपनी रिपोर्ट ने बताया है कि उन्होंने यह नहीं बताया कि नई दिल्ली से किए गए विरोध के कारण साजिशकर्ताओं ने अपनी योजना बदली या कि  एफबीआई द्वारा हस्तक्षेप किया गया और पहले से ही चल रही योजना को विफल किया गया. गुरपतवंत सिंह पन्नू अमेरिका में रहने वाले सिख चरमपंथी हैं जो सिख फॉर जस्टिस ग्रुप के प्रमुख हैं. खालिस्तान समर्थक इस समूह को साल 2019 में भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया था. पन्नू को भारत में आतंकवादी के तौर पर नामजद किया गया था. बीते दिनों कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के खालिस्तान समर्थक नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ होने के आरोप के बाद सिख फॉर जस्टिस ने भारतीय मूल के हिंदुओं को धमकी दी थी.

जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने चार सरकारी कर्मचारियों को ‘राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा’ बताते हुए बर्खास्त कर दिया है. ग्रेटर कश्मीर के अनुसार, इनमें से एक कश्मीर के डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं, जिन पर ‘राष्ट्र विरोधी और आतंकी’ गतिविधियों में संलिप्तता का आरोप लगाया गया है. ऐसा ही एक आदेश जम्मू कश्मीर पुलिस के एक कॉन्स्टेबल, एक शिक्षक और शिक्षा विभाग के एक लैब कर्मी के खिलाफ जारी हुआ है. कर्मचारियों को संविधान के अनुच्छेद 311 (2)(सी) के तहत बर्खास्त किया गया है, जो सरकारी कर्मचारियों को उनके आचरण की जांच का आदेश दिए बिना या उन्हें अपनी स्थिति स्पष्ट करने का अवसर दिए बिना बर्खास्त करने की अनुमति देता है. अप्रैल 2021 से अब तक जम्मू-कश्मीर प्रशासन समान कारण का हवाला देते हुए लगभग 55 कर्मचारियों को बर्खास्त कर चुका है.

भारतीय सेना के पूर्वी कमान प्रमुख ने कहा है कि छह महीने से जातीय हिंसा से जूझ रहे मणिपुर को राजनीतिक समाधान की ज़रूरत है. एनडीटीवी के मुताबिक, पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल राणा प्रताप कलीता ने मंगलवार को गुवाहाटी में मीडिया से बात कर रहे थे जहां उन्होंने कहा कि समुदायों के बीच तीव्र ध्रुवीकरण के कारण पूर्वोत्तर राज्य में छिटपुट हिंसा की घटनाएं जारी हैं. उन्होंने यह भी जोड़ा कि जब तक विभिन्न पुलिस थानों और अन्य स्थानों से लूटे गए 4,000 से अधिक हथियार लोगों के हाथों में हैं, मणिपुर में हिंसा ख़त्म नहीं होगी.

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाने के बाद सभी बन हुई वीज़ा सेवाएं दो महीने बाद शुरू हो गई हैं. रिपोर्ट के अनुसार, भारत ने कनाडाई नागरिकों के लिए ई-वीज़ा आवेदन फिर से शुरू कर दिए हैं. हालांकि इस बारे में कोई घोषणा नहीं हुई है, पर आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि बुधवार को कनाडाई नागरिकों के लिए ई-वीजा सेवाएं फिर से शुरू कर दी गई हैं.

केंद्र सरकार द्वारा मिज़ोरम में रह रहे मणिपुरके विस्थापितों को राहत के लिए मदद के ‘अनुरोध’ को नज़रअंदाज़ किए जाने की खबर सामने आई है. रिपोर्ट के अनुसार, पिछले छह महीनों से मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच लगातार जारी जातीय हिंसा के बाद वर्तमान में लगभग 12,000 मणिपुरी पड़ोसी राज्य मिजोरम में शरण लिए हुए हैं. मिजोरम सरकार के अधिकारियों का कहना है कि पिछले कई महीनों में ‘बार-बार अनुरोध’ के बावजूद केंद्र सरकार ने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को राहत देने के लिए नकद या अन्य कोई सहायता नहीं दी है.