मिज़ोरम: मणिपुर शरणार्थियों को राहत के लिए मदद के ‘बार-बार अनुरोध’ को केंद्र ने नज़रअंदाज़ किया

बीते छह महीने से मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के बाद वर्तमान में लगभग 12,000 मणिपुरी मिज़ोरम में शरण लिए हुए हैं. राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा है कि पिछले कई महीनों में ‘बार-बार अनुरोध’ के बावजूद केंद्र सरकार ने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को राहत देने के लिए नकद या अन्य कोई सहायता नहीं दी है. 

(फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

बीते छह महीने से मणिपुर में जारी जातीय हिंसा के बाद वर्तमान में लगभग 12,000 मणिपुरी मिज़ोरम में शरण लिए हुए हैं. राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा है कि पिछले कई महीनों में ‘बार-बार अनुरोध’ के बावजूद केंद्र सरकार ने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों को राहत देने के लिए नकद या अन्य कोई सहायता नहीं दी है.

(फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

नई दिल्ली: राज्य सरकार के अधिकारियों ने कहा कि पिछले कई महीनों में मिजोरम के ‘बार-बार अनुरोध’ के बावजूद केंद्र सरकार ने हिंसा प्रभावित मणिपुर से भागकर आए और आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों (इंटरनली डिस्प्लेस्ड पीपल- आईडीपी) को राहत प्रदान करने के लिए नकद या अन्य प्रकार की कोई सहायता प्रदान नहीं की है.

रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कई महीनों से मेईतेई और कुकी समुदायों के बीच लगातार जारी जातीय हिंसा के बाद वर्तमान में लगभग 12,000 मणिपुरी पड़ोसी राज्य मिजोरम में शरण लिए हुए हैं.

मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने 10 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के लिए केंद्र सरकार को दो पत्र लिखे – एक मई में और दूसरा जून में. बाद में राज्य सरकार ने अपने एक कैबिनेट मंत्री और राज्य गृह विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी को पत्रों पर कार्रवाई करने के लिए दिल्ली भेजा, जिसमें केंद्र से आईडीपी को राहत प्रदान करने में उनका बोझ साझा करने का अनुरोध किया गया था.

ज़ोरमथांगा ने अपने पत्रों में कहा था कि उनकी सरकार के लिए हजारों आईडीपी की देखभाल करना बहुत मुश्किल हो रहा है और राज्य सरकार को एक बड़े मानवीय संकट की आशंका है जब तक कि केंद्र सरकार उनकी देखभाल का बोझ साझा करने के लिए कदम नहीं उठाती.

मिज़ोरम के मिज़ो लोग मणिपुर के कुकी-ज़ो समुदाय के साथ-साथ म्यांमार के चिन समुदाय और बांग्लादेश के बावम शरणार्थियों के साथ समान वंश साझा करते हैं. शरण चाहने वाले मणिपुरियों की आमद के अलावा मिजोरम संघर्षग्रस्त म्यांमार और बांग्लादेश में उत्पीड़न से बचने के लिए शरण की तलाश में भाग रहे कई लोगों को भी आश्रय प्रदान कर रहा है.

दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्रालय में अधिकारियों से मुलाकात करने वाले मिजोरम के अधिकारियों के अनुसार, ‘इस कदम का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला.’ इसके बाद मिजोरम के मुख्य सचिव को सितंबर में केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकारियों से एक फोन आया, जिसमें उन्होंने वित्तीय सहायता प्रदान करने में ‘असमर्थता’ व्यक्त की, लेकिन समर्थन का वादा किया. हालांकि, मिज़ोरम के अधिकारियों के अनुसार, उस फ़ोन कॉल का आज तक कुछ पता नहीं चला.

द टेलीग्राफ ने मिजोरम सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा, ‘इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई, जिससे राज्य के लोग हैरान रह गए. मणिपुर (मिजोरम में) के विस्थापितों और (म्यांमार और बांग्लादेश से आए) शरणार्थियों के साथ व्यवहार के संबंध में केंद्र का नकारात्मक मानसिकता है.’

अधिकारी ने पूछा, ‘जब भारत सरकार फ़िलिस्तीनियों को विभिन्न प्रकार की सहायता और राहत सामग्री देने में बहुत तत्पर है, तो केंद्र को अपने ही नागरिकों को सहायता प्रदान करने में कठिनाई क्यों हो रही है जो भारत के भीतर मणिपुर से मिज़ोरम तक आंतरिक रूप से विस्थापित हो गए हैं?’

अधिकांश भागे हुए मणिपुरी मिजोरम के 11 जिलों में से नौ में शरण ले रहे हैं, जहां राज्य सरकार ने व्यवस्था की है. सैहा और लांग्टलाई जिलों को छोड़कर अन्य सभी जिलों में आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति हैं. अधिकांश राहत कार्य मिज़ोरम सरकार, चर्च और स्थानीय नागरिक समाज संगठनों द्वारा किया जा रहा है.