सुप्रीम कोर्ट केरल सरकार द्वारा लंबित विधेयकों को लेकर दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही है. पंजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को लंबित नहीं रख सकते हैं. राज्यपाल ‘एक प्रतीकात्मक प्रमुख हैं और वे राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई नहीं रोक सकते’.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते शुक्रवार (24 नवंबर) को सुझाव दिया कि केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को एक दिन पहले उसके द्वारा जारी फैसले का अध्ययन करना चाहिए, जिसमें राज्य विधानसभाओं द्वारा उनकी सहमति के लिए भेजे गए विधेयकों के संबंध में राज्यपालों की शक्तियों और संबंधित कर्तव्यों का विवरण दिया गया है.
इसके साथ ही अदालत ने केरल राज्य द्वारा दायर याचिका की सुनवाई अगले मंगलवार (28 नवंबर) तक के लिए स्थगित कर दी. पीठ केरल सरकार द्वारा आठ विधेयकों पर जारी गतिरोध के संबंध में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जो राज्यपाल के पास सात से 26 महीने की अवधि से लंबित थे.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार, जब मामला उठाया गया, तो केरल राज्य की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि राज्यपाल की सहमति के लिए भेजे गए कई विधेयक पिछले दो वर्षों से लंबित हैं.
वेणुगोपाल ने कहा, ‘सभी मंत्रियों ने उनसे (राज्यपाल) से मुलाकात की है. मुख्यमंत्री ने उनसे कई बार मुलाकात की है.’ उन्होंने कहा कि अब आठ विधेयक लंबित हैं.
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने तब भारत के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा, ‘हमने कल (23 नवंबर) रात पंजाब मामले में आदेश अपलोड किया है. राज्यपाल के सचिव से आदेश को देखने के लिए कहें और मंगलवार को हमें बताएं कि आपकी प्रतिक्रिया क्या है.’
गौरतलब है कि पंजाब राज्य द्वारा अपने राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के खिलाफ दायर एक ऐसी ही याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर कोई राज्यपाल किसी विधेयक पर सहमति रोकने का फैसला करता है, तो उसे विधेयक को पुनर्विचार के लिए विधायिका को वापस करना होगा.
अदालत ने मौखिक रूप से यह भी कहा था कि राज्य सरकार द्वारा अदालत का रुख करने के बाद ही राज्यपालों द्वारा विधेयकों पर कार्रवाई करने की प्रवृत्ति बंद होनी चाहिए.
राज्यपाल के खिलाफ पंजाब सरकार की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रेखांकित किया है कि ‘राज्य के एक अनिर्वाचित प्रमुख के रूप में राज्यपाल को कुछ संवैधानिक शक्तियां सौंपी गई हैं’, लेकिन ‘इस शक्ति का उपयोग राज्य विधायिका (सरकार) द्वारा कानून बनाने की सामान्य प्रक्रिया को विफल करने के लिए नहीं किया जा सकता है’.
बीते 23 नवंबर को जारी अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘राज्यपाल को किसी भी विधेयक को बिना किसी कार्रवाई के अनिश्चितकाल तक लंबित रखने की आजादी नहीं दी जा सकती.
इसमें कहा गया, राज्यपाल ‘एक प्रतीकात्मक प्रमुख हैं और वे राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई नहीं रोक सकते’.
इस बात पर जोर देते हुए कि राज्यपाल के विवेक पर नहीं सौंपे गए क्षेत्रों में बेलगाम विवेक का प्रयोग राज्य में लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार के कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालने का जोखिम उठाता है.
अदालत ने पंजाब सरकार की राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित के खिलाफ याचिका पर यह आदेश दिया था, जिन्होंने राज्य सरकार द्वारा उन्हें भेजे गए विधेयकों को लंबित रखा था.
यह फैसला ऐसे समय आया है, जब कई राज्यों में राजभवनों (राज्यपाल) का चुनी हुई सरकारों के साथ टकराव चल रहा है. पिछले कुछ महीनों में केरल के अलावा, तेलंगाना, तमिलनाडु और पंजाब ने अपने-अपने राज्यपालों को निर्देश देने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, 20 नवंबर को अदालत ने राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में राज्यपालों की ओर से देरी पर नाराजगी व्यक्त की थी, क्योंकि इसने तमिलनाडु और केरल सरकारों द्वारा अलग-अलग दायर की गई संबंधित याचिकाओं पर विचार किया और उनसे प्रतिक्रिया मांगी. तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर याचिका पर 1 दिसंबर को सुनवाई होने की उम्मीद है.
केरल सरकार ने भी कुछ प्रमुख विधेयकों में देरी के लिए अपने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के खिलाफ शीर्ष अदालत में याचिका दाखिल की है. राज्यपाल को सहमति के लिए भेजे गए कुछ विधेयक लगभग दो साल पुराने हैं. केरल ने खान पर जन स्वास्थ्य, उच्च शिक्षा, लोकायुक्त आदि मुद्दों पर आठ विधेयकों के पारित होने को रोककर इस तरह से कार्य करने का आरोप लगाया है, जिससे ‘लोगों के अधिकारों का हनन’ होता है.