ईडी ने रेत खनन में कथित अनियमितताओं के संबंध में तमिलनाडु के 10 ज़िला कलेक्टरों को समन जारी किया था. इसके ख़िलाफ़ मद्रास हाईकोर्ट का रुख़ करते हुए राज्य सरकार ने कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम के तहत ईडी की यह कार्रवाई उन मामलों में दख़ल है जो राज्य के अधिकारक्षेत्र में आते हैं.
नई दिल्ली: तमिलनाडु सरकार ने प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के खिलाफ मद्रास हाईकोर्ट का रुख किया है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इसने अपनी याचिका में रेत खनन में कथित अनियमितताओं के संबंध में राज्य के 10 जिला कलेक्टरों को जारी एजेंसी के हालिया समन का विरोध किया है.
कलेक्टरों की ओर से सरकार द्वारा लगाई गई याचिका में ईडी द्वारा संवैधानिक उल्लंघन और राज्य के अधिकारियों को परेशान करने का जानबूझकर प्रयास करने का आरोप लगाया गया है.
ईडी ने कथित अनियमितताओं की जांच के तहत पिछले हफ्ते 10 कलेक्टरों को समन जारी किया था, जो रेत खनन के लिए उनके जिलों के सर्वोच्च अधिकारी हैं.
याचिका में तमिलनाडु सरकार ने कहा है कि मनी लॉन्ड्रिंग निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत ईडी की कार्रवाई उन मामलों-विशेष तौर पर खदानों और खनिजों का विनियमन में हस्तक्षेप करती है जो विशेष रूप से राज्य के अधिकारक्षेत्र में आते हैं.
राज्य सरकार ने भाजपाशासित राज्यों में इसी तरह के अपराधों में ईडी द्वारा जांच न किए जाने पर भी सवाल उठाए और मध्य प्रदेश व गुजरात जैसे राज्यों में कथित अवैध खनन के मामलों का हवाला दिया.
याचिका में ईडी पर संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हुए ‘पिक एंड चूज़’ तरीके से अपनी शक्तियों का चयनात्मक ढंग से प्रयोग करने का आरोप लगाया गया है.
तमिलनाडु सरकार की चुनौती ने ईडी की जांच की प्रकृति पर भी प्रकाश डाला और कहा कि मामले में उन लोगों को भी शामिल किया जा रहा है, जिनका इससे कोई संबंध नहीं है. सरकार ने कहा कि जिला कलेक्टर किसी मनी लॉन्ड्रिंग मामले में न तो आरोपी हैं और न ही गवाह हैं.
राज्य ने अदालत से ईडी के समन और आगे की कार्रवाई पर अंतरिम रोक लगाने का अनुरोध किया.
राज्य के एक वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा, ‘ईडी की जांच के राजनीतिक निहितार्थ को कम करके नहीं आंका जा सकता. उनकी कार्रवाई न केवल उनके अधिकार का अतिक्रमण हैं, बल्कि विपक्ष शासित राज्यों को कमजोर करने के लिए भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार का एक रणनीतिक कदम भी हैं. यह ईडी द्वारा ग़ैर-भाजपा शासित राज्यों में जांच शुरू करने के एक पैटर्न की ओर इशारा करता है, जबकि भाजपा शासित राज्यों में इसी तरह के मुद्दों की अनदेखी की जाती है.’
जहां राज्य के सत्तारूढ़ दल डीएमके ने आरोप लगाया है कि खनन क्षेत्र में ईडी की जांच पार्टी को दबाने का एक प्रयास है, वहीं ईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जांच कदाचार के गंभीर आरोपों की हो रही है.
अधिकारी ने कहा, ‘जांच में अब तक जल संसाधन विभाग (डब्ल्यूआरडी) के ठेकेदारों और इंजीनियरों की भूमिका की जांच की गई है. हमने संभावित प्रक्रियात्मक अनियमितताओं और खनन की गई रेत की अवैध बिक्री का खुलासा किया है और यह जिला कलेक्टरों की भी मिलीभगत की ओर इशारा करता है.’
डब्ल्यूआरडी मंत्री दुरईमुरुगन को हाल ही में ईडी और आईटी जांच का सामना करना पड़ा है.
सितंबर में ईडी ने विभिन्न रेत खदान स्थलों पर औचक निरीक्षण किया था, जिसको लेकर अधिकारियों ने कहा था कि उन्होंने सीसीटीवी स्टोरेज उपकरण, कंप्यूटर हार्ड डिस्क और रेत खनन एवं व्यापार से संबंधित दस्तावेज जब्त किए हैं.
ईडी अधिकारियों ने कहा कि इस जांच के केंद्र में कुछ हाई-प्रोफाइल खनन ठेकेदारों के अलावा कुछ ऐसे व्यक्ति भी हैं जो कथित अवैध धन का ऑडिट करने और सरकारी अधिकारियों और राजनेताओं के साथ समन्वय में शामिल हैं.
ईडी के एक अधिकारी ने कहा, ‘सभी आरोपी कई वर्षों से खनन के साथ-साथ खनन लाइसेंस बेचने में भी लगे हुए हैं.’ हालांकि, अधिकारी ने कहा कि जांच पिछले दो वर्षों, जब से द्रमुक सरकार सत्ता में आई है, में केवल अवैधताओं और कथित मनी लॉन्ड्रिंग पर केंद्रित थी.
द्रमुक के एक वरिष्ठ नेता का कहना है, ‘यदि उनका उद्देश्य तथाकथित अवैध गतिविधियों और धन के लेन-देन को समाप्त करना है, तो वे पिछले 10 वर्षों में हुए सौदों की जांच क्यों नहीं करते?’