मणिपुर हिंसा: तीन कुकी विधायकों को राज्य विधानसभा समितियों के अध्यक्ष पद से हटाया गया

मणिपुर विधानसभा बुलेटिन के अनुसार, कुकी-ज़ो समुदाय से आने वाले विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे, हाओखोलेट किपगेन और एलएम खौटे को उन समितियों से हटा दिया गया है, जिसकी ये अध्यक्षता कर रहे थे. इन्हें हटाने के कारणों की जानकारी नहीं दी गई है. इस बीच ताज़ा हिंसा में कुकी-ज़ो समुदाय के एक और युवक की मौत हो गई है.

मणिपुर विधानसभा. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: assembly.mn.gov.in/)

मणिपुर विधानसभा बुलेटिन के अनुसार, कुकी-ज़ो समुदाय से आने वाले विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे, हाओखोलेट किपगेन और एलएम खौटे को उन समितियों से हटा दिया गया है, जिसकी ये अध्यक्षता कर रहे थे. इन्हें हटाने के कारणों की जानकारी नहीं दी गई है. इस बीच ताज़ा हिंसा में कुकी-ज़ो समुदाय के एक और युवक की मौत हो गई है.

मणिपुर विधानसभा. (प्रतीकात्मक फोटो साभार: assembly.mn.gov.in/)

नई दिल्ली: मणिपुर में कुकी-ज़ो समुदाय के तीन विधायकों को राज्य विधानसभा की समितियों की अध्यक्षता से हटा दिया गया है. विधानसभा के एक बुलेटिन में कहा गया है कि विधानसभा अध्यक्ष ने पिछले अध्यक्ष के स्थान पर मायांगलमबम रामेश्वर को सार्वजनिक उपक्रम समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है.

रामेश्वरम काकचिंग विधानसभा क्षेत्र से नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के विधायक हैं. यह पद इससे पहले एलएम खौटे के पास था, जो चुराचांदपुर सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं.

समाचार वेबसाइट एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, एक अलग बुलेटिन में कहा गया है कि माओ निर्वाचन क्षेत्र के नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के विधायक लोसी दिखो को सरकारी आश्वासनों पर बनी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. यह पद पहले सैतु निर्वाचन क्षेत्र के स्वतंत्र विधायक हाओखोलेट किपगेन के पास था.

इसी तरह लमलाई के भाजपा विधायक के. इबोम्चा को चुराचांदपुर जिले के थानलॉन निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे के स्थान पर विधानसभा पुस्तकालय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया.

मणिपुर में जब बहुसंख्यक मेईतेई और कुकी जनजातियों के बीच जातीय हिंसा शुरू हुई तो वाल्टे एक हमले में घायल हो गए थे. विधायक वुंगज़ागिन वाल्टे, हाओखोलेट किपगेन और एलएम खौटे तीनों कुकी-ज़ो समुदाय से आते हैं.

नियुक्तियों से संबंधित बुलेटिन बीते बुधवार (22 नवंबर) को जारी किए गए हैं.

अधिसूचना में इस बदलाव का कोई कारण नहीं बताया गया है, लेकिन विधानसभा के नियम 198 (2) के अनुसार, ‘अगर समिति का अध्यक्ष किसी भी कारण से कार्य करने में असमर्थ है, तो विधानसभा अध्यक्ष उसके स्थान पर किसी अन्य अध्यक्ष को नियुक्त कर सकता है’.

सरकार इंफाल घाटी स्थित विद्रोही समूह के साथ शांति वार्ता कर रही है: मुख्यमंत्री

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, रविवार (26 नवंबर) को मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने कहा कि उनकी सरकार इंफाल घाटी स्थित एक विद्रोही समूह के साथ ‘शांति वार्ता’ कर रही है.

सिंह ने कहा कि बातचीत अंतिम चरण में है, हालांकि उन्होंने विद्रोही समूह के नाम की जानकारी नहीं दी.

मणिपुर में 3 मई को जातीय हिंसा भड़कने के बाद यह पहली बार है कि सरकार की ओर से इस तरह की बातचीत की आधिकारिक पुष्टि हुई है.

इससे पहले सूत्रों ने कहा था कि सरकार प्रतिबंधित यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) के एक गुट के साथ बातचीत कर रही है.

ताज़ा गोलीबारी में 21 वर्षीय युवक की मौत

इस बीच मणिपुर में शनिवार (25 नवंबर) तड़के कांगपोकपी जिले में हुई गोलीबारी की ताजा घटना में 21 वर्षीय एक युवक की मौत हो गई.

एक सुरक्षा अधिकारी के अनुसार, कुकी-ज़ो बहुल कांगपोकपी जिले के एक गांव जौपी के पास लगभग 2:45 बजे गोलीबारी शुरू हुई, जो मेईतेई बहुल बिष्णुपुर जिले से लगभग 8 किमी पश्चिम में स्थित है. अधिकारी ने बताया कि गोलीबारी करीब 45 मिनट तक हुई और तड़के करीब 3:30 बजे खत्म हुई.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, मृतक की पहचान कुकी-ज़ो गांव के स्वयंसेवक खुपमिनथांग हाओकिप के रूप में की गई.

इस सप्ताह की शुरुआत में कांगपोकपी जिले में फिर से कुकी-ज़ो समुदाय के दो लोगों की हत्या कर दी गई थी, जिसे सुरक्षाकर्मियों ने घात लगाकर किया गया हमला बताया था.

घटना के बाद आदिवासी एकता समिति ने जिले में 48 घंटे के बंद का आह्वान किया था. साथ ही कुकी-ज़ो क्षेत्रों के लिए एक अलग प्रशासन की मांग पर और दबाव डाला गया.

मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.