इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एमपी/एमएलए अदालतों से कहा- बिना बाध्यकारी कारणों के सुनवाई स्थगित न करें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संसद और विधायकों के ख़िलाफ़ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रधान ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश इन विशेष अदालतों के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुविधा सुनिश्चित करेंगे और इन्हें ऐसी तकनीक अपनाने के लिए भी सक्षम बनाएंगे, जो प्रभावी कामकाज के लिए व्यवहारिक हो.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Vroomtrapit)

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने संसद और विधायकों के ख़िलाफ़ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि प्रधान ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश इन विशेष अदालतों के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुविधा सुनिश्चित करेंगे और इन्हें ऐसी तकनीक अपनाने के लिए भी सक्षम बनाएंगे, जो प्रभावी कामकाज के लिए व्यवहारिक हो.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो: वूमट्रैपिट/विकिमीडिया कॉमन्स CC0 1.0)

नई दिल्ली: निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ आपराधिक मामलों की सुनवाई के लिए उत्तर प्रदेश की विशेष एमपी/एमएलए अदालतों को निर्देश देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि ये अदालतें ‘दुर्लभ और बाध्यकारी कारणों को छोड़कर मामलों को स्थगित नहीं करेंगी’.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अदालत ने संसद और विधानसभा सदस्यों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के शीघ्र निपटान की निगरानी के लिए स्वत: संज्ञान वाली जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए शुक्रवार (24 नवंबर) को यह आदेश पारित किया.

जनहित याचिका 9 नवंबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में दर्ज की गई थी. अदालत ने विशेष एमपी/एमएलए अदालतों को मामलों की प्रगति पर मासिक रिपोर्ट भेजने का निर्देश दिया है.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस समित गोपाल की पीठ ने आदेश में लिखा, ‘हमें सूचित किया गया है कि सत्र और मजिस्ट्रेट दोनों स्तर पर अलग-अलग अदालतें हैं, जो विशेष रूप से सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों से निपट रही हैं. विशेष अदालतें एक महीने के अंतराल पर निम्न संबंध में रिपोर्ट भेजेंगी: (i) उनके समक्ष लंबित मामलों की प्रगति, (ii) वह मामला जिसमें कार्यवाही रुकी हुई है और उन मामलों का विवरण जिनमें कार्यवाही रोकी गई है.’

हाईकोर्ट ने यह भी निर्देश दिया, ‘ऐसे मामलों से निपटने वाली विशेष अदालतें (i) पहले सांसदों और विधायकों के खिलाफ मौत या आजीवन कारावास की सजा वाले आपराधिक मामलों को प्राथमिकता देंगी, फिर (ii) पांच साल या उससे अधिक की कैद की सजा वाले मामलों को प्राथमिकता देंगी और फिर (iii) अन्य मामले सुनेंगी.’

इसमें यह भी कहा गया है कि ‘विशेष अदालतें दुर्लभ और बाध्यकारी कारणों को छोड़कर मामलों को स्थगित नहीं करेंगी.’

अदालत ने निर्देश दिया, ‘प्रधान जिला एवं सत्र न्यायाधीश विशेष अदालतों के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा सुविधा सुनिश्चित करेंगे और इन्हें ऐसी तकनीक अपनाने के लिए भी सक्षम बनाएंगे, जो प्रभावी कामकाज के लिए व्यवहारिक हो. इस संबंध में अगर इस न्यायालय से किसी अनुमोदन की आवश्यकता है तो उसे प्रशासनिक स्तर से प्राप्त किया जाए.’

हाईकोर्ट ने कहा कि ‘जिन सत्र अदालतों में ऐसी अपील/संशोधन लंबित हैं, वे यह सुनिश्चित करेंगी कि उन पर शीघ्र निर्णय लिया जाए.’

अदालत ने कहा, ‘अगर मामले की सुनवाई करने वाले मजिस्ट्रेट के किसी आदेश के खिलाफ सत्र न्यायालय के समक्ष कोई अपील या पुनरीक्षण लंबित है, तो ऐसे मामलों का विवरण मासिक रिटर्न में भी शामिल किया जाएगा और इस न्यायालय की वेबसाइट पर भी प्रदर्शित किया जाएगा.’

पीठ ने हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वह रजिस्ट्री के संबंधित अधिकारी को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करें कि जिन मामलों में मुकदमे पर रोक लगी हुई है, उन्हें स्थगन आदेश विस्तार/हटाने के लिए उचित पीठ के समक्ष तुरंत सूचीबद्ध किया जाए.

अदालत ने कहा, ‘रजिस्ट्रार जनरल यह भी सुनिश्चित करेंगे कि इस न्यायालय की वेबसाइट पर एक स्वतंत्र टैब शुरू किया जाए, ताकि केस दाखिल करने का वर्ष, विषयवार लंबित मामलों की संख्या और कार्यवाही के चरण के विवरण के बारे में जिलेवार जानकारी स्पष्ट रूप से दिखाई दे.’

इसमें यह भी कहा कि ‘प्रशासनिक पक्ष की ओर से विशेष अदालतों को आवश्यक निर्देश जारी किए जाएं कि उपरोक्त जानकारी भी मासिक आधार पर अपडेट की जाएगी.’

मामले पर अगली सुनवाई 4 जनवरी को होगी.