विश्वभर की एक तिहाई महिलाएं जीवन में शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करती हैं: डब्ल्यूएचओ

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, दुनियाभर में तीन महिलाओं में से लगभग एक ने अपने जीवनकाल के दौरान शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करती हैं. दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र इस संबंध में दूसरे पायदान पर है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो साभार: अनस्प्लैश)

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, दुनियाभर में तीन महिलाओं में से लगभग एक ने अपने जीवनकाल के दौरान शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करती हैं. दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र इस संबंध में दूसरे पायदान पर है.

प्रतीकात्मक तस्वीर. (फोटो साभार: अनस्प्लैश)

नई दिल्ली: विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सोमवार को बताया कि दुनियाभर में तीन महिलाओं में से लगभग एक ने अपने जीवनकाल के दौरान शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव किया है.

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि अनुमानों के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 33 फीसदी महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा का अनुभव करती हैं और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र (एसईएआरओ) इस संबंध में दूसरे पायदान पर आता है.

डब्ल्यूएचओ में एसईएआरओ की क्षेत्रीय निदेशक पूनम खेत्रपाल सिंह ने बताया कि ज्यादातर महिलाओं को उन लोगों द्वारा दुर्व्यवहार का अधिक खतरा होता है जिनके साथ वे रहती हैं. उन्होंने कहा, इसमें से अधिकांश अंतरंग साथी द्वारा हिंसा के मामले होते हैं.

उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा, विशेष रूप से अंतरंग साथी द्वारा हिंसा, का स्वास्थ्य पर तत्काल और दीर्घकालिक दोनों तरह से गंभीर प्रभाव पड़ता है. इनमें चोटों के साथ-साथ गंभीर शारीरिक, मानसिक, यौन और प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं भी शामिल हैं.

‘लिंग आधारित हिंसा’ के खिलाफ ‘सक्रियता के 16 दिन‘ की शुरुआत करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा को रोका जा सकता है. उन्होंने कहा, ‘यह लैंगिक असमानता और ख़राब लैंगिक मानदंडों से जुड़ा है, जो महिलाओं के खिलाफ हिंसा को स्वीकार्य बनाते हैं. विशेष रूप से, साक्ष्य बताते हैं कि अंतरंग साथी हिंसा और यौन हिंसा व्यक्तिगत, पारिवारिक, समुदायिक और व्यापक सामाजिक स्तर पर घटित कारकों का परिणाम है.’

2021 में भी डब्ल्यूएचओ ने समान संख्याओं को उजागर करते हुए एक समान रिपोर्ट जारी की थी. इसमें कहा गया था कि पिछले एक दशक में यह संख्या काफी हद तक अपरिवर्तित रही है.

डब्ल्यूएचओ महानिदेशक ट्रेडोस एडहेनॉम घेब्रेयेसस ने कहा था, ‘कोविड-19 की तरह महिलाओं के खिलाफ हिंसा को वैक्सीन से नहीं रोका जा सकता है. हम इससे केवल- सरकारों, समुदायों और व्यक्तियों द्वारा किए गए- गलत दृष्टिकोण को बदलने, महिलाओं और लड़कियों के लिए अवसरों और सेवाओं तक पहुंच में सुधार, और स्वस्थ और पारस्परिक रूप से सम्मानजनक संबंधों को बढ़ावा देने के निरंतर प्रयासों से ही लड़ सकते हैं.’

महिलाओं को होने वाले शारीरिक और मानसिक आघात के संदर्भ में लैंगिक हिंसा के प्रभाव को मापना मुश्किल हो सकता है. ऐसे अनुभव या तो दैनिक आधार पर या कुछ अंतराल पर हो सकते हैं. यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि हिंसा का प्रभाव उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य से परे भी हो सकता है.

लैंगिक हिंसा का सामना करने वाली महिला को अक्सर इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, जिसमें मेडिकल खर्च, भावनात्मक स्वास्थ्य और शिक्षा या रोजगार में व्यवधान शामिल हैं.

2016 में प्रकाशित यूएन वूमेन की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा का अनुभव करने वाली महिलाएं ऐसी हिंसा का अनुभव न करने वाली महिलाओं की तुलना में 60 फीसदी कम कमाती हैं.

रिपोर्ट में शोध का हवाला देते हुए कहा गया था कि महिलाओं के खिलाफ हिंसा की कीमत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 2 फीसदी हो सकती है. यह करीब 1.5 लाख करोड़ के बराबर हो सकती है, जो कनाडा की अर्थव्यवस्था के बराबर है.

मैकिंसे ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने 2018 में कहा था कि अधिक महिलाओं को काम देकर और समानता बढ़ाकर भारत 2025 तक अपनी जीडीपी 770 अरब डॉलर तक बढ़ा सकता है. फिर भी, केवल 27 फीसदी भारतीय महिलाएं कार्यबल में हैं.

अल जज़ीरा ने अप्रैल 2023 में अपनी रिपोर्ट में बताया था कि सेंटर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने पाया कि 2022 में कामकाजी उम्र की केवल 10 फीसदी भारतीय महिलाएं ही या तो कार्यरत थीं या नौकरी की तलाश में थीं. इसका मतलब है कि 361 मिलियन (36.1 करोड़) पुरुषों की तुलना में केवल 39 मिलियन (3.9 करोड़) महिलाएं ही कार्यबल में कार्यरत हैं.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.