हेट स्पीच के लिए प्रशासनिक तंत्र बनाने पर विचार, व्यक्तिगत मामलों से नहीं निपट सकते: अदालत

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि नफ़रत फैलाने वाले भाषण (हेट स्पीच) को अदालत ने परिभाषित किया है. अब सवाल कार्यान्वयन और समझने का है कि इसे कैसे लागू किया जाए. हम व्यक्तिगत मामलों से नहीं निपट सकते. अगर हम व्यक्तिगत मामलों से निपटना शुरू कर देंगे तो इससे मामलों की बाढ़ आ जाएगी.

(फोटो: द वायर)

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि नफ़रत फैलाने वाले भाषण (हेट स्पीच) को अदालत ने परिभाषित किया है. अब सवाल कार्यान्वयन और समझने का है कि इसे कैसे लागू किया जाए. हम व्यक्तिगत मामलों से नहीं निपट सकते. अगर हम व्यक्तिगत मामलों से निपटना शुरू कर देंगे तो इससे मामलों की बाढ़ आ जाएगी.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बीते बुधवार (29 नवंबर) को कहा कि वह देश भर में हेट स्पीच के मामलों से निपटने के लिए एक प्रशासनिक तंत्र स्थापित करने पर विचार कर रहा है और स्पष्ट किया कि वह व्यक्तिगत मामलों से नहीं निपट सकता, क्योंकि इससे मामलों की बाढ़ आ जाएगी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषण (Hate Speech) को अदालत ने परिभाषित किया है, अब सवाल कार्यान्वयन और समझने का है कि इसे कैसे लागू किया जाए.

अदालत ने कहा, ‘हम व्यक्तिगत पहलुओं से नहीं निपट सकते. अगर हम व्यक्तिगत मामलों से निपटना शुरू कर देंगे तो इससे मामलों की बाढ़ आ जाएगी. हम बुनियादी ढांचा या प्रशासनिक मशीनरी स्थापित करना चाहते हैं. अगर उसमें कोई उल्लंघन होता है तो आप संबंधित हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं.’

पीठ ने कहा, ‘हम पूरे भारत में मामले नहीं ले सकते, क्योंकि हमारे लिए इसे संभालना असंभव होगा. भारत जैसे बड़े देश में समस्याएं तो होंगी लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारे पास जरूरत पड़ने पर कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त प्रशासनिक मशीनरी है. समाज को पता होना चाहिए कि अगर आप इसमें शामिल होंगे तो कुछ सरकारी कार्रवाई होगी.’

शीर्ष अदालत ने नोडल अधिकारियों की नियुक्ति न होने पर तमिलनाडु, केरल, नगालैंड और गुजरात राज्यों को भी नोटिस जारी किया.

शीर्ष अदालत ने पहले कहा था कि हेट स्पीच को परिभाषित करना जटिल है, लेकिन इससे निपटने में असली समस्या कानून और न्यायिक घोषणाओं के कार्यान्वयन में है.

मालूम हो कि बीते अप्रैल महीने में सुप्रीम कोर्ट ने हेट स्पीच को एक ऐसा गंभीर अपराध करार दिया था, जो देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को प्रभावित करने में सक्षम है और राज्यों को निर्देश दिया था कि वे ऐसे अपराधों में भले ही कोई शिकायत दर्ज न हो, फिर भी मामला दर्ज करें.

इससे पहले अक्टूबर 2022 में शीर्ष अदालत ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पुलिस प्रमुखों को औपचारिक शिकायतों का इंतजार किए बिना आपराधिक मामले दर्ज करके हेट स्पीच के अपराधियों के खिलाफ ‘तत्काल’ स्वत: कार्रवाई करने का निर्देश दिया था.

इसके अलावा शीर्ष अदालत ने तीनों राज्यों की सरकारों को उनके अधिकार क्षेत्र में हुए हेट स्पीच से संबंधित अपराधों पर की गई कार्रवाई के संबंध में अदालत के समक्ष एक रिपोर्ट दाखिल करने का भी निर्देश दिया था.

पीठ ने कहा था कि राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने के लिए हेट स्पीच देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, भले ही वे किसी भी धर्म के हों.

पीठ ने आदेश में कहा था, ‘भारत का संविधान इसे एक धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र और बंधुत्व के रूप में देखता है, व्यक्ति की गरिमा को सुनिश्चित करता है और देश की एकता और अखंडता प्रस्तावना में निहित मार्गदर्शक सिद्धांत हैं. जब तक विभिन्न धर्मों या जातियों के समुदाय के सदस्य सद्भाव से रहने में सक्षम नहीं होंगे, तब तक बंधुत्व नहीं हो सकता है.’