गौहाटी हाईकोर्ट ने बोंगाईगांव के निवासी फोरहाद अली की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया, जिन्हें अक्टूबर 2019 में एक न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित कर दिया गया था. अदालत ने चिंता व्यक्त की कि कई मामलों में बिना कारण बताए या दस्तावेज़ों का उचित विश्लेषण किए बिना लोगों को विदेशी घोषित कर दिया गया होगा.
नई दिल्ली: गौहाटी हाईकोर्ट ने राज्य प्रशासन के एक हलफनामे पर गौर करने के बाद असम सरकार से राज्य के विदेशी न्यायाधिकरणों (Foreigners Tribunals) द्वारा पारित आदेशों की समीक्षा करने को कहा है कि लगभग 85 प्रतिशत मामलों में, जिन्हें संदिग्ध अवैध अप्रवासी घोषित किया गया था, वे अंतत: भारतीय नागरिक पाए गए.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह आदेश जस्टिस अचिंत्य मल्ला बुजोर बरुआ और जस्टिस मिताली ठाकुरिया की पीठ ने बीते 21 नवंबर को जारी किया था, जिसकी एक प्रति शुक्रवार (1 दिसंबर) को उपलब्ध कराई गई थी. अदालत ने यह आदेश बोंगाईगांव के निवासी फोरहाद अली की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है, जिन्हें अक्टूबर 2019 में एक विदेशी न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित किया गया था.
अली ने न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.
विदेशी न्यायाधिकरण असम में अर्ध-न्यायिक निकाय हैं, जो यह तय करते हैं कि जिस व्यक्ति का नाम राज्य के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) से गायब है या जिसके अवैध अप्रवासी होने का संदेह है, वह भारतीय है या नहीं.
मालूम हो कि असम के नागरिकों की तैयार अंतिम सूची यानी अपडेटेड एनआरसी 31 अगस्त, 2019 को जारी की गई थी, जिसमें 31,121,004 लोगों को शामिल किया गया था, जबकि 1,906,657 लोगों को इसके योग्य नहीं माना गया था.
वर्तमान मामले में अपने आदेश में विदेशी न्यायाधिकरण ने फोरहाद अली को विदेशी घोषित कर दिया था, क्योंकि उनके द्वारा प्रस्तुत विभिन्न दस्तावेजों में उनके पिता का नाम हबी रहमान और हबीबर रहमान लिखा गया था.
हाईकोर्ट ने कहा कि नामों में मामूली विसंगतियां हो सकती हैं, लेकिन यह फोरहाद को विदेशी घोषित करने का एकमात्र आधार नहीं हो सकता, जब तक कि इस बात का सबूत न हो कि दोनों नाम अलग-अलग लोगों के हैं.
हाईकोर्ट ने अंतिम निर्णय लेने से पहले मतदाता सूचियों सहित सभी रिकॉर्डों की फिर से जांच करने का निर्देश देते हुए मामले को वापस न्यायाधिकरण को भेज दिया.
हाईकोर्ट को दिए गए एक निवेदन में असम के गृह विभाग ने कहा था कि विदेशी न्यायाधिकरणों को भेजे गए लगभग 85 प्रतिशत मामलों में याचिकाकर्ताओं को नागरिक घोषित किया गया था.
हाईकोर्ट की पीठ ने चिंता व्यक्त की कि कई मामलों में बिना कारण बताए या रिकॉर्ड पर दस्तावेजों का उचित विश्लेषण किए बिना लोगों को विदेशी घोषित कर दिया गया होगा. अदालत ने कहा, इसी तरह न्यायाधिकरणों द्वारा विदेशियों को गलत तरीके से भारतीय घोषित किया जा सकता है.
हाईकोर्ट ने गृह विभाग को रैंडम सैंपल आधार पर न्यायाधिकरणों के निर्णय प्रदान करने का आदेश दिया. जांच के बाद यह पाया गया कि जहां कुछ निर्णय ‘अच्छे, तर्कसंगत आदेश’ थे, वहीं कई अन्य बिना कारण बताए या रिकॉर्ड का विश्लेषण किए बिना जारी किए गए थे.
हाईकोर्ट के आदेश में कहा गया है, ‘हमें गृह विभाग में असम सरकार के सचिव से ऐसे सभी उदाहरणों की विभागीय समीक्षा करने की आवश्यकता है, जिसमें निर्णय न्यायाधिकरणों ने कार्यवाही करने वालों को नागरिक घोषित करते हुए दिया था.’
इसने सरकार को उचित उपाय करने का निर्देश दिया, जहां यह देखा गया कि आदेश बिना कारण बताए या सामग्री का विश्लेषण किए बिना पारित किए गए थे.
आदेश में कहा गया है, ‘इसके नतीजे को सार्वजनिक तौर पर या राज्य के लोगों के सामने उनकी जानकारी के लिए रखा जाए, क्योंकि असम में अवैध अप्रवासियों का मामला एक ऐसा मुद्दा है, जो पूरे राज्य को प्रभावित कर सकता है.’